कविता

जाति है नाम मेरा

जाति है नाम मेरा मैं सब कुछ करवाती हूँ
पैदा होते ही मैं सबके साथ चिपक जाती हूँ
कर्म से मेरा कुछ नहीं लेना देना
मैं तो बस जन्म से ही पहचानी जाती हूँ
जाति है नाम मेरा……
दफ्तर में यदि किसी काम के लिए जाते हैं
तो सबसे पहले फार्म पर मेरा नाम लिखवाते हैं
नेताओं ने मेरे नाम पर बांट दिया समाज को
दंगा फसाद हो जाये तो पहले मैं ही याद आती हूँ
जाति है नाम मेरा…..
मेरे नाम पर ऊंच नीच का खेल खेला जाता है
मुझे समझ नहीं आता हर जगह मुझे क्यों घसीटा जाता है
पैदा होते ही लिख दिया जाता है माथे पर मेरा नाम
जितने मुंह उतनी बाते मैं सब सुनती जाती हूँ
जाति है मेरा नाम…..
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र नाम दिए थे मुझे
फिर बांट दिया उप जातियों में क्या मिल गया तुझे
मेरे नाम पर तूने खोखला कर दिया समाज
भाई चारे को तो बिल्कुल कर दिया बर्बाद
चुपचाप रहती हूं मैं चुपचाप सहती जाती हूँ
जाति है नाम मेरा….
भगवान मंदिर में तो प्रतिदिन आते है
पर मुझे देख कर बाहर बैठा अंदर नहीं बुलाते है
भगवान ने ही मुझे बनाया फिर भी मेरा इतना तिरस्कार
क्यों नहीं वो करवाता मुझसे भी अपना श्रृंगार
अंदर ही अंदर घुट कर मैं रोज़ मरी जाती हूँ
जाति है नाम मेरा……..
न मैं हिन्दू न मुस्लिम न सिख न मैं हूँ ईसाई
सबकी हूँ मैं बहन वो सब हैं मेरे भाई
फिर मेरे नाम पर ही क्यों करते हैं सब लड़ाई
यह बात आज तक मैं नहीं समझ पाई
अगड़ी पिछड़ी के नाम पर फुसलाई जाती हूँ
जाति है नाम मेरा मैं सब कुछ करवाती हूँ
— रवीन्द्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र