कविता

इनको चाहिए झंडी और कार

 

चुनाव में जब हुए खड़े
कपड़े साधारण जेब थी खाली
चुनाव जीता बने विधायक
चेहरे पर पर अब आ गई लाली
पहले थे आम अब बन गए खास
वोट मांगने लोगों के दर दर जाते थे
अब सफर के लिये चाहिए बड़ी बड़ी कारें
भूल गए वह दिन जब बसों में धक्के खाते थे
आधुनिक लोकतंत्र में अब
यह बन बैठे हैं राजा
पांच वर्ष तक सुख पाओगे
फिर जनता बजा देगी बाजा
सोच रहे हैं अब यह मौका
नहीं मिलेगा बार बार
लोग मर रहे कोरोना से
इनको चाहिए झंडी और कार
जनता के सेवक हैं अगर
तो फिर यह आडंबर क्यों
झंडी कार नहीं है अगर
तो फिर यह बबंडर क्यों
जनता की जो सेवा करनी
तो जनता के बीच रहो
सर्दी गर्मी भी तुम झेलो
सुख दुख में उनके साथ रहो
कैसा खेल अब चल रहा है
सत्ता की इस आड़ में
पांच साल अब ऐश करेंगे
जनता जाए भाड़ में
महंगाई इनको नज़र न आये
कीमतें जा रही हैं आसमान
अपने लिए यह झंडी मांग कर
काम कर रहे बड़ा महान
शर्म हया है थोड़ी भी तो
लोगों के कुछ काम करो
नाजायज मांगे रख कर न
जनता को बदनाम करो
सच्चे सेवक हो अगर तो
शास्त्री जी का अनुकरण करो
चाय भी पीओ तो बिल
उसका अपनी जेब से भरो
सता तो आनी जानी है
झंडी में भी नहीं है वो मज़ा
काम कुछ ऐसे कर जाओ
कि लोग रखें तुम्हें याद सदा
रवींद्र कुमार शर्मा
घुमारवीं
जिला बिलासपुर हि प्र

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र