कविता

जीवन एक संघर्ष

कितनी भी उपजाऊ हो ज़मीन
बिन बीज डाले कुछ पैदा नहीं होता
मेहनत की कमाई से सींचना पड़ता है
वही पैदा होता जो आदमी है बोता
आंधी तूफान गर्मी सर्दी से है बचाता
दिन रात खेत में पसीना है बहाता
रूखी सुखी धरती पर बैठ कर है खाता
उसका संघर्ष किसी को नज़र नहीं आता
कभी बारिश कभी सूखे ने किया
सारी फसल का यूँ ही काम तमाम
फसल पक कर जब घर पर आ गई
मिलता नहीं उसको उसका वाजिब दाम
साहूकार और बैंक से भी लिया उधार
फसल पर पड़ गई कुदरत की मार
कैसे करूँ अब अपने परिवार का गुजारा
बढ़ती महंगाई ने जीना कर दिया दुश्वार
जीवन एक संघर्ष है आगे बढ़ते जाएंगे
किसी भी मुश्किल से हम नहीं घबराएंगे
तूफान आंधियों से हमें खेलना आता है
अपनी हिम्मत से हम खुशी का दीप जलाएंगे
रवींद्र कुमार शर्मा
घुमारवीं
जिला बिलासपुर हि प्र

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र