कहानी

मैं पवित्र हूं

‘साहिब, लड़की बहुत सुन्दर है, जिस्म की बनावट देखें, सौष्टव खिली हुई ताज़ा गुलदाऊदी, जनाब, कितना रंग रूप चढ़ा हुआ है साली को। जनाब आप तो इस तरह की गुदगुदा रसदार जिस्म वाली लड़कियां ही पसंद करते हो, जनाब उठा लें, फिर मौका नहीं मिलने वाला जनाब?’
जीप से थोड़ी दूर ही हवलदार की नज़र उस लड़की पर जा पड़ी थी। सर्दियों के मज़ेदार दिन। सूरज अम्बर के घौंसले में जा छुपा था। रात ख़तरनाक रूप लेकर और गहरी होती जा रही थी।
एक नव-विवाहित (सुजाता) दंपति हाथ में एक छोटा सा अटैची उठाए प्यार की भविष्यमई दैहिक तथा भौतिक प्राप्तियों के चित्रण मस्तिष्क में लेकर नाजुक-नाजुक प्यारी-प्यारी बातें तथा सरगोशियों भरे गुलचानुमा माहौल को अंगीकार किए तन्मयता से पैदल ही अपने गांव को जा रहे थे। गांव की दूरी लगभग एक किलोमीटर के करीब ही होगी। वे बस से उतरकर थोड़ी ही दूर जा रहे थे कि समीप से पुलिस की जीप आहिस्ता से गुजरी।
इंस्पैक्टर ने ड्राईवर को जोश में आकर कहा, ‘जीप मोड़ लें’ तथा बाहें ऊपर को खींचकर दो तीन लम्बी लम्बी अंगड़ाईयां तोड़ लीं। ड्राईवर ने जीप उस विवाहित दंपति के आगे जाकर खड़ी कर दी। हवलदार तथा इंस्पैक्टर नीचे उतरे और उस लड़के को कहने लगे, ‘ओए, कहां जाना है तू?’
‘जनाब, अपने ससुराल से आ रहा हूं, जनाब! अपने गांव जा रहा हूं। जनाब, कुछ दिन पहले ही हमारी शादी हुई है? ससुराल से आ रहा हूं जनाब!’
‘ओए सालेया, स्मगलिंग करता है, तू फीम (अफीम) बेचता है, इतने अंधेरे में ससुराल से आ रहा है? साले, कुत्ते, हरामज़ादे!’
‘जनाब, इस अटैची में सिर्फ कपड़े है जनाब और कुछ नहीं है।’
‘ओए, तू थाने चल वहां जाकर पता चलेगा कि इसमें क्या है?’
‘जनाब, मेरा कसूर क्या है? मैं कोई फीम नहीं बेचता, कोई स्मगलिंग नहीं करता। जनाब, मेरा अटैची देख लें।’
‘हरामज़ादे! हमें अभी अभी वायरलैस आई है कि एक नवविवाहित दंपति आ रहे हैं, उसके पास फीम है, उन्हों ने सारा हुलिया बताया है कि वह फीम बेचता है।’
‘जनाब एैसी कोई बात नहीं, आपको ग़लतफहमी हुई है मेरे गांव से पूछ लें, मैं प्रीतम सिंह हूं जनाब। मैं रेहड़ा चलाता हूं जनाब। मेरे माता पिता बहन भाई सब घर में हैं आप गांव से पता कर लो।’
‘हरामज़ादे, यह तो थाने जाकर ही पता चलेगा। कैसे साला बक बक करता है। हमको साले कोई ग़लत सूचना मिली है?’ उसने पांच सात बड़े बड़े थप्पड़ प्रीतम सिंह के मुंह पर जड़ दिए। उसकी पगड़ी खुलकर नीचे गिर गई तथा वह भी नीचे गिर गया। उन्होंने लातों बाहों से उसकी खूब सेवा कर दी।’
प्रीतम सिंह की पत्नी राज कौर ने बहुत दीनतापूर्वक विनतियां कीं, लिलकड़ियां निकाली परंतु इंस्पैक्टर पर तो हवस का भूत सवार हो चुका था, उसने राज कौर पर तीन चार थप्पड़ जड़ दिए तथा वह नीचे गिर गई।
इंस्पैक्टर ने हवलदार तथा सिपाही को कहा, ‘उठाकर जीप में फैंक दो, दोनों को, थाने ले चलो, देखते हैं साला कैसे नहीं मानता।’
सिपाहियों ने दोनों को करूण क्रन्दन में सिसकते हुए जीप में धकेल लिया।
दोनों दया पूर्वक मिन्नतें करने लगे, राज कौर रो रोकर कह रही थी कि जनाब छोड़ दो हमें हम निर्दोष हैं। परंतु सिपाही उनको गंदी गालियां निकाले जा रहे थे।
थाने में ले जाकर इंस्पैक्टर ने दोनों को बुरी हालत में हवालात में बंद कर दिया। राज कौर का जूड़ा खुल चुका था। बाल बिखर चुके थे। बुरे हालातों में दोनों रो रोकर बुरा हाल कर रहे थे वे वासते (गिड़गिड़ा) पा रहे थे कि हम बेकसूर हैं, हमें छोड़ दो।
इंस्पैक्टर ने हवलदार को आवाज़ लगाकर कहा, ‘बड़ा सा पैग बनाकर ला।’ उसने अपनी गोगड़ से बैल्ट उतार ली। लगभग 55 वर्षीए इंस्पैक्टर ने अपने सारे वस्त्र ढीले कर लिए तथा गर्म लहू में ऊबलता हुआ टांगे पसार कर कुर्सी पर बैठ गया।
हवलदार बड़ा पैग बनाकर ले आया, ‘जनाब, माल बहुत बढ़िया है, ताज़ा गुलकंद है जनाब, खींच दो जनाब, यह मौका बार बार नहीं मिलेगा। जनाब पहले माल से यह माल अगल ही है ताज़ तरीन, जनाब।’
इंस्पैक्टर ने चूहे की हरकत वाली मुद्रा में अपनी मूंछे अकड़ा कर एक ही सांस में पैग हलक के नीचे उतार लिया। उसकी आंखों के डोरे तंदूर की भांति तपने लगे।
हवलदार ने कहा, ‘जनाब, एक पैग और आए?’
‘अभी नहीं पहले उनकी तसल्ली तो कर करवा दूं।’
इंस्पैक्टर ने जाते ही प्रीतम सिंह को जूड़े से पकड़ लिया, ‘सालेया, कहां है अटैची तेरा ओए?’
‘जनाब, आपके पास ही है, जनाब उसमें कोई फीम नहीं है।’
हवलदार ने अटैची में फीम रख दी थी।
‘जनाब, मैं निर्दोष हूं, जाने दो जनाब! जनाब, हमारे घर वाले इंतज़ार करते होंगे।’
राज कौर ने इंस्पैक्टर के पांव पकड़ लिए। उसने राज कौर का सुंदर मुखड़ा ऊपर उठाकर, कामुकता से निहारा, जिस्म की गोलाईयां उसका नशा और तेज़ कर गईं।
राज कौर समझ गई थी कि कोई बुरा वक़्त आने वाला है। उसने बहुत वासते डाले।
इंस्पैक्टर ने प्रीतम सिंह को नंग धडंग करके उल्टा लिटाकर खूब छितौड़ लगाई तथा वह बेहोश हो गया।
राज कौर रो रोकर तरले मिन्नतें कर रही थी।
इंस्पक्ैटर ने हवलदार को ईशारा किया तो वह एक बड़ा पैग और बनाकर ले आया। उसने एक सांस में ही गटा-गट पूर अंदर उतार लिया। होठों पर लगे पैग को उल्टे हाथ से साफ करते हुए हवलदार को इशारे से समझाया तथा हवलदार प्रीतम को बेहोशी की हालत में खींचकर दूसरे कमरे में ले गया। राज कौर इंस्पैक्टर के पांव पकड़कर वासते डाल रही थी परंतु उस पर हवस का भूत सवार था। उसको महकमें का कोई डर भय नहीं था। उसके हाथ बहुत लंबे थे मिनिस्ट्री तक। उसकी लगामें खुली थीं तथा आंखों का फैलाव कानों को छू रहा था।
इंस्पैक्टर ने नशे में कहा, ‘तेरे जैसा तो मख़मल सा माल तो कभी-कभी मिलता है। तेरे ऊपर केस नहीं डालूंगा, चिंता मत कर। तू किसी से बात मत करना, अगर किसी से बात की तो तेरे पति को जान से मरवा दूंगा, सुना।’
इंस्पैक्टर ने राज कौर के जब्रदस्ती वस्त्र उतार फैंके। उसके करूण क्रंदन में इंस्पैक्टर ने अपनी हवस की आग बुझाने की कोशिश की परंतु गुत्थम-गुत्था से आगे न जा सका तथा शांत होकर अपने कमरे में चला गया।
वह अपनी इज्ज़त के टुकड़े टुकड़े समेटती हुई प्रीतम के पास जाकर ऊंची ऊंची रोए जा रही थी। प्रीतम सिंह को पता चल गया था पर क्या किया जा सकता था।
प्रीतम ने कपड़े पहने तथा सारी रात दोनों सिसक-सिसक, बुसक-बुसक कर रोए जा रहे थे। परमात्मा को कोसते रहेे। अगले दिन प्रीतम सिंह जेल (हवालात) में था। राज कौर को डरा-धमकाकर छोड़ दिया गया।
इंस्पैक्टर ने राज कौर को कहा, ‘अगर कोई भी बात जुबां से बाहर निकाली तो तेरे पति को जेल में ही मरवा दूंगा, उस पर मुकाबला बनवाकर मार दूंगा। गांव में घर बाहर किसी से कोई बात मत करना, अगर इसकी ज़िंदगी चाहती है तो। गांव में जाकर कहना कि इससे फीम पकड़ी गई थी तथा पुलिस ने उस पर केस डालकर उसको जेल भेज दिया है।’
राज कौर पहले ही इंस्पैक्टर की गुंडागर्दी, दुष्टता, दहशत, तशदद को भलिभांति जानती थी। उसने कई लड़कियों की इज्ज़त से खिलवाड़ किया था तथा कई जायज़-नाजायज़ कत्ल करवाए थे। उसकी सरकारे दरबारे पहुंच थी।
राज कौर ने गांव में जाकर प्रीतम सिंह के अभिभावकों, भाई बहनों को बताया कि प्रीतम सिंह से फीम पकड़ी गई है। वह जेल में है।
इंस्पैक्टर ने प्रीतम सिंह को भी धमकी देकर कहा था, ‘अगर तूने हमारे खि़लाफ कोई भी बात की तो मुक़ाबला बनाकर मरवा दूंगा।’
प्रीतम सिंह के भाईयों ने उसकी जमानत करवा ली।
ख़ैर, केस के दौरान उसको कुछ महीनों की सज़ा हो गई। वह सज़ा काटकर आ गया था।
प्रीतम सिंह तथा राज कौर दोनों घर के कमरे में बैठे चुपचाप अपनी किस्मत पर रो रहे थे।
राज कौर पढ़ाई में बहुत होशियार थी। सुन्दर जवान सौंदर्य की प्रतिमा, पुष्ठ शरीर की मलिका। ग़रीब घर की होने के कारण वह मुश्किल से दस कक्षाएं ही उतीर्ण कर पाई थी। मैट्रिक उसने प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की थी।
प्रीतम सिंह ने पल्स टू उत्तीर्ण की थी प्रथम श्रेणी में। बहुत होशियार था पढ़ने लिखने में परंतु घर की निर्धनता करके आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया था। दोनों की सुन्दरता, मीठे स्वभाव तथा परिश्रमी दंपत्ति की सिफ़तें सारे गांव में थीं।
प्रीतम सिंह तथा उसकी पत्नी सुबह शाम पाठ करने वाले गुरसिक्ख थे। प्रीतम सिंह अपने क्षेत्र में घोड़े वाला रेहड़ा चलाता था। पुश्तैनी धंधा था उसका। सारे गांव में प्रीतम सिंह की सिफ़तें थीं। सरल स्वभाव का लड़का था। सौष्ठव सुन्दर जिस्म था प्रीतम सिंह का।
रात सोते समय राज कौर ने मायूसी में प्रीतम सिंह को धरवास (तसल्ली) देते हुए कहा, ‘मैंने कहा जी, आप दिल छोटा मत करें। आप उस वाहेगुरू पर विश्वास रखें, पाठ करते रहें। जो होना था हो गया, कौन हमारी सुनेगा?’ मैंने कहा, ‘हमारे गुरूयों ने ज़ुल्म का सामना किया। दुश्मनों से बदले लिए। पापी मस्सा रंगड़ का सिर काटकर ले आए थे दलेर निर्भीक योद्धे गुरू के सिक्ख भाई सुक्खा सिंह तथा मेहताब सिंह। इन निर्भीक सिंहों का इतिहास भी हमने पढ़ा है। हम में उन गुरूयों के चिह्न हैं। उनकी जीनवशैली, इतिहास को हमने पढ़ा है। मैं चाहती तो खुदकुशी कर सकती थी। अपने आपको खत्म कर सकती थी। केवल तुम्हारे करके ज़िंदा हूं। देखो मैं बिलकुल पवित्र हूं, पवित्र रहूंगी। परंतु मैं पवित्र तब ही हो सकती हूं अगर आप मेरा एक काम करेंगे तो।’
प्रीतम सिंह ने उसको कहा, ‘राज कौर तू निर्दोष है, मेरे लिए तो तू पवित्र ही है। तेरा बड़ा जिगरा है, अगर और कोई लड़की होती तो कब की खुदकुशी कर गई होती, परंतु तेरा जिगरा देखकर मुझे और ताक़त मिली है। तू मुझे बता मैं तेरी हर एक बात मानूंगा।’
‘सरदार जी, मुझे केवल मक्खन (इंस्पैक्टर) का सिर चाहिए। जैसे कैसे हो। कोई एैसी जुगत बनाई जाए कि हींग लगे न फटकड़ी। मक्खन हमसे ज़्यादा नहीं पढ़ा लिखा, वह सिपाही से इंस्पैक्टर बना है, निर्दोष लड़कों को मार मारकर।’
‘मैं आपको एक तरकीब बताती हूं। आप जेल में रहे। सारे गांव को पता था कि आप निर्दोष हैं परंतु किया क्या जा सकता था? मक्खन सिंह से सारा इलाका डरता है। उसकी ओर कोई मुंह नहीं कर सकता।’
दिन बीतते गए। प्रीतम सिंह ने सारा भेद अपने दिल में ही रखा। किसी से ज़िक्र नहीं किया। सुबह शाम वे पाठ करते तथा वाहेगुरू से इंसाफ मांगते।
राज कौर तथा प्रीतम सिंह ने कई दिनों के बाद एक योजना बना ली। इस योजना को अंज़ाम देने के लिए रास्ते ढूंढने शुरू कर दिए।
मक्खन सिंह उनके गांव से लगभग 15 किलोमीटर दूर वाले गांव का रहने वाला था। वह प्रत्येक शनिवार शाम को गांव आता था तथा सुबह तड़के अकेला ही सैर करने जाता था। मक्खन के घर परिवार के बारे में सारी जानकारी एक दो माह में एकत्रित कर ली थी।
प्रीतम ने अब एक इंट भट्टे से इंटें लाने का काम शुरू कर लिया था। वह भट्टे के आर्डर मुताबिक इंटें गांव गांव पहुंचाता था। मक्खन सिंह के गांव की ओर भी ईंटें छोड़ने जाना शुरू कर दिया था। उसने मक्खन सिंह के आने जाने की समस्त जानकारी हासिल कर ली थी। उसने देखा कि वह प्रत्येक शनिवार रात को घर आता है और रविवार को दोपहर को जाता है। सुबह पांच बजे के करीब अकेला ही सैर करता है।
इस तरह कुछ माह व्यतीत होते गए। एक दिन प्रीतम सिंह ने पूरी जानकारी रखी। उसने पता किया कि आज शनिवार की शाम को वह घर आ चुका है, सुबह सैर पर जाएगा।
प्रीतम सिंह रात को ही रेहड़े पर ईंटें लादकर घर ले आया। रात उन दोनों ने रेहड़े ऊपर लादी हुई ईटों के बीच में से ईंटें इधर-उधर करके खाली जगह बना ली। एक दो खाली बोरे तह लगाकर रख दिए तथा एक लम्बी तीखी तलवार नीचे छुपाकर रख ली। यह तलवार प्रीतम सिंह ने स्पैशल बनवाई थी। तलवार इतनी तेज़ धार वाली थी कि वृक्ष के तने में मारें तो एक टक में वृक्ष को काट दे।
दोनों सुबह 4 बजे उठे, गुरूद्वारे गए, पाठ किया। वाहेगुरु के आगे अरदास की तथा दोनों तड़क सवेरे रेहड़े पर बैठकर घर से निकल पड़े। पौने पांच के करीब मक्खन सिंह की कोठी से थोड़ी दूर जाकर अंधेरे में रेहड़ा खड़ा कर दिया तथा घोड़े की लगामें कसने लगा।
पूरे पांच बजे मक्खन सिंह अकेला (एकाकी) ही घर से बाहर निकला। चारों ओर सनाटा पसरा हुआ था। हाथ में लिश्कती स्टिक तथा सफेद कुत्र्ता पायजामा पहने, मक्खन सिंह सहज स्वभाविक अपनी मस्त चाल में आराम से चलता जा रहा था।
प्रीतम सिंह तथा राज कौर ने हिम्मत समेटकर रेहड़ा चला लिया। मक्खन सिंह अपनी मस्त चाल में चलता जा रहा था। गांव के बाहर थोड़ी दूर जाकर प्रीतम सिंह ने तलवार अपने दाएं हाथ की मुट्ठी में मज़बूती से पकड़ ली। राज कौर निर्भीकता से बैठी रही। आहिस्ता से रेहड़ा नज़दीक करते हुए प्रीतम सिंह ने दिल ही दिल में ललकारा छोड़ते हुए कहा, ‘ओए पापिया, तेरी एैसी की तैसी, सालेया…’ जब मक्खन सिंह ने उसकी ओर देखा तो प्रीतम सिंह ने पूरी जान लगाकर इतनी तेज़ी से तलवार को उसकी गर्दन पर दे मारा कि उसका सिर कटकर दूर जा पड़ा। उसकी चीक भी निकलने नहीं दी। प्रीतम सिंह ने ज़ल्दी ज़ल्दी उसका सिर बोरी में लपेटकर उठा लिया तथा ईटों के बीच खाली जगह पर रख लिया।
रेहड़ा आसमान से बातें करने लगा। किसी को कोई खबर तक नहीं लगी। पांच छह किलोमीटर दूर जाकर नहर के किनारे पर जाकर राज कौर ने मक्खन सिंह का सिर निकाला तथा तलवार से उसके सिर के छोटे छोटे टुकड़े करके नहर में फेंक दिए तथा दोनों घर आ गए।
राज कौर घर के अंदर चली गई तथा प्रीतम सिंह ईटों का रेहड़ा लेकर किसी के घर पहुंचाने चला गया।
इलाके में ख़बर फैल गई कि मक्खन सिंह का कोई सिर काटकर ले गया है। उसके सिर काटने की खबर सुनकर इलाके में ठंड पड़ गई। खुद पुलिस ने कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की। केवल कानूनी दिखावे मात्र ही सारी कार्यवाही की गई। पुलिस ने बहुत भाग दौड़ (गंवेषणा) की परंतु कोई खोज ख़बर हाथ नहीं लगी। लोगों ने सुख की सांस ली।
कई लोग कहते सुने गए कि किसी मां के बहादुर निर्भीक पुत्र ने परोक्ष तथा ज़ुर्रत से काम किया है। इलाके का कलंक खत्म कर दिया। एक महाराक्षस का अंत कर दिया है।
शाम को प्रीतम सिंह रोज़मर्रा की तरह रेहड़ा लेकर घर आता है। राज कौर नव ब्याही दुल्हन (नवोढ़ा) सी सजी संवरी सी काम कर रही थी। उसके दिल में कोई भय नहीं था। अब बेशक उसको मौत भी आ जाए कोई प्रवाह नहीं। बेशक फांसी क्यों न हो जाए अब उसके चेहरे पर अलग किस्म का नूर था।
गुरूओं की तस्वीरों के आगे देसी घी की ज्योति प्रज्जवलित हो रही थी। जैसे यह तस्वीरें उनको आशीर्वाद, शुभकामनाएं दे रहीं हों। खुशी-खुशी से रात का खाना (भोजन) बनाया।
प्रीतम सिंह नहा-धेकर अच्छे वस्त्र पहनकर कमरे में दाखिल हुआ तो राज कौर ने शरमाकर प्रीतम सिंह के गले में अपनी बाहें डालते हुए कहा, ‘सरदार जी, मैं पवित्र हूं, सरदार जी मैं पवित्र हूं।’
प्रीतम सिंह ने राज कौर को ज़ोर से छाती से लगा लिया।
— बलविन्दर ‘बालम’

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409