कविता

परमहंस

मन ,वचन, कर्म से
पवित्र है जो,
नीति, नियम, धर्म का
भाव जिसमें है,
लोभ, मोह से मुक्त हो,
दया,करुणा से युक्त हो
समभाव का गुण हो जिसमें
चाल,चरित्र ,चेहरे में
समग्रता ,सद्व्यवहार लिए
भय, क्रोध, लालच से
मुक्त है भक्तिभावी
ज्ञान की गंगा में
नित स्नान करे,
देता ही रहे सबको
लेने की भावना न रखे
निंदा, नफरत, ईर्ष्या से
कोसों दूर हो,
जाति,पंथ,धर्म, मजहब
ऊँच नीच का भेद न करे,
आत्मज्ञानी, तत्वदर्शी
परमसत्ता से संबद्ध हो
हरहाल में सम हो जो
मन से वैरागी हो
तन से साधुसम
सभी जीवात्मा में
देखता हो ईश्वर को
ऐसा पुण्यात्मा ही
ईश्वर का दूत बन धरा पर
जीवन बिताता है
परमहंस कहलाता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921