कविता

खामोशियाँ

कितनी खामोशियाँ हैं गिरफ्त में
आंसुओं की ढेर पर लेटा मन
अंदर के द्वंद से
लड़ने की लगातार कोशिश करता

पिछले दिनों, जो देखा
सहा, जिया, नहीं जिया नहीं काटा बस
भगवान के नाम मन्त्रोच्चारण के साथ जो
आस की उम्मीदों को थामें
अपने अच्छे कर्मो का फल का हक मागते
ईश्वर के आगे झोली फैलाए

अपने, अपनों की सलामती के लिए
अनवरत सांसों की रफ्तार के लिए
सम्पूर्ण आसुंओं की धार समर्पण उनके चरणों में

परिस्थितियों ने अब ले ली है करवट
चमका सूरज
छटा ग्रहण
मुस्काई है खुशिया
पर फिरभी सहमा-सहमा सा मन
सिर्फ मन नहीं ये बदन भी
आज भी उस डर की ठिठुरन से कांप उठता है

लड़ रही हूं बीते दिनों के साए से
समझा रही खुद को
दु:ख के बाद सुख का आना होता है

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]