कविता

यादें

सुनो !
अक्सर तुम्हें सोचते हुए
सोचती हूँ
कुछ सम्बन्धों के नाम नहीं होते
पर फिरभी वो अहम होते हैं

जैसे पथ पर चलते हुए राही
जिसका मंजिल ठिकाना कहीं और होता है

पर जीवन के कभी पथरीले, कंक्रीट भरे रास्तों पर
चलते-चलते दर्द भरे कदमों को जब
बारिश की ठंडी बूंदों का स्पर्श मिलता है, तो
शीतलता उसके पूरे दैहिक आवरण में बिखर जाती है
जो आगे बढ़ने के लिए दम भरता है

जैसे चिलचिलाती धूप में
छायादार वृक्ष का सहारा
जो समेट लेटा है राही को अपनी परिधि में
एक समय और एक ही बिंदु पर

जीवन के कुछ क्षण साथ जी लेते हैं दोनों
जो ताउम्र सुखद एहसास बनकर रहते हैं

मैंने महसूस किया है
कुछ ऐसा ही तुम्हारा और मेरा नैसर्गिक सम्बंध है
मैं अपने मन को जी रही हूं
बस जीने देना।

*बबली सिन्हा

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