सामाजिक

समय तो आयेगा ही

कहते हैं समय कभी ठहरता नहीं है,बस चलता रहता है।इसी पर मैंने कभी लिखा था कि -“समय समय के साथ यूँ भी चला जायेगा, समय ठहर कर भला क्या पायेगा?”
जीवन और समय का तारतम्य कुछ ऐसा है कि जन्म के उपरांत हम सब भले ही जन्मोत्सव / जन्मदिन मनाने में हर्ष का अनुभव करते हों, उल्लास मनाते हों ,परंतु वास्तविक तथ्य तो यह है कि हमनें अपनी जिंदगी के उतने दिन बिता लिए। हर पल हम अपने ही अंत की ओर गतिशील हैं यानी समय तो आएगा ही जब हम अपने जीवन के अंत समय का दीदार कर इस संसार को अलविदा कह देंगें,न चाहते हुए भी कहना ही पड़ेगा अर्थात समय आयेगा और हमें इस संसार के बंधनों से मुक्त करा ही देगा।
इसी तरह सुख, दुख, यश, अपयश, जन्म मृत्यु सभी कुछ समय के इशारों पर नाचने को विवश हैं। कहावत भी है कि घूर के दिन भी फिरते हैं। कुछ भी स्थाई नहीं है। मान, सम्मान ,पद, प्रतिष्ठा ,अमीरी, गरीबी सब कुछ समय के फेर में है। बस केवल समय समय की बात है। कठिन और दुष्कर समय भी समय की प्रतीक्षा करते करते आखिर समय मिलन के साथ चले ही जाते हैं।
समय को रोकना ईश्वर के वश में भी नहीं है, समय अपनी ही चाल से चलता ही रहेगा। समय को आना ही है, बस अंतर सिर्फ़ इतना है कि आने वाला समय हर किसी के लिए समान नहीं होता ,लेकिन समय है तो आना ही है और वो आकर ही रहेगा। समय किसी के लिए खुशियाँ लाता है तो किसी के जीवन में गम तो किसी के जीवन में उजालों की चमक बिखेरता है,तो किसी के जीवन में घटाटोप अँधेरा भी फैलाता है, परंतु स्थाई न दिन है रात ,न उजाला है न अँधेरा और न ही समय।सब कुछ. गतिमान है। बस समय तो आयेगा ही और हर किसी के लिए अपनी मुट्ठी में कुछ न कुछ जरूर लायेगा भी। क्योंकि सार्वभौमिक सत्य है कि समय तो आयेगा ही।

*सुधीर श्रीवास्तव

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