कविता

अधूरा प्रेम

प्रेम अधूरा किसे कहें
भाव के पट खोलें कैसे,
प्रेमरस बरसायें किस पर
प्रेम राग किसको सुनाएं।

भावनाएँ हैं मधुर पर
प्रकट न हो मौन हैं,
बोलने को आतुर बहुत
मौन स्वर न गुनगुनाएं।

नजरों नजरों में ही हम
कर लेते हैं दिल की बात,
अपने अधूरे प्रेम की
व्यथा हम कैसे सुनाएं।

रुसवा न हो प्रेम मेरा
इसलिए भी डर रहा,
दिल ये घायल हो रहा
कैसे हम सबको बताएं।

खुश हैं फिर भी बहुत
दिल में बहुत सुकून है,
प्रेम पूरा न हो सका फिर भी
प्रेम की गंगा का स्पर्श तो पाये।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921