कहानी

कहानी – मश्विरे का आशीर्वाद

भारत-पाकिस्तान सीमा पंजाब के एक गांव का ज़मीदार (किसान) राज सिंह। तीन कमरों वाला छोटा-सा ग्रामीण घर। करीब पांच एकड़ ज़मीन का मालिक। परिश्रम पर रोटी का जुगाड़। मुश्किल से दसवीं उत्तीर्ण। मेहनती किसान। जी-जान मारकर ज़मीन पसीना एक करने वाला।
राज सिंह के दो लड़के हैं। बड़ा राजेन्दर सिंह जिसने इस वर्ष ही बी.एस.सी. उत्तीर्ण की है द्वितीय दर्ज़े में तथा उसका छोटा लड़का कमल सिंह जो काॅलेज के प्रथम वर्ष में पढ़ाई कर रहा है।
राज सिंह का बड़ा लड़का राजेन्दर सिंह विदेश जाने के लिए ज़िद करने लगा। वह अपने पिता को बार-बार कोसता कि मेरे साथ के सभी लड़के बाहर (विदेश) चले गए हैं, मैंने भी बाहर जाना है, यहां क्या है? न कोई काम न कार। हमारे देश में नौकरियां कहां हैं? ठेके ऊपर प्रत्येक विभाग चल रहा है। सेवा-निवृत अधिकारियों को दोबारा नौकरी पर रखा जा रहा है। पंजाब में न कारखाने, न नौकरियां। पंजाब का अब वैसे भी बुरा हाल है। रिश्वत, ठगी, बेईमानी, नेता लोगों ने अपने घर भर लिए हैं। प्रशासन में छेद ही छेद हैं। गंदी राजनीति, नशों ने बुरा हाल कर रखा है नवयुवकों का। इत्यादि कई शिकवे देते हुए अपने पिता को मज़बूरी की दल-दल में ध्केल दिया, यहां मायूसी की गहरी खाई थी।
राजेन्दर का पिता भी सोचता कि लड़का तो सही है परंतु इतना पैसा कहां से लाऊं? वह दिल में सोच-सोचकर उदास-सा हो जाता। सिर पर एक पहाड़ ठहर जाता। सोच किरचियों में परिवर्तित होकर रह जाती।
बार्डर एरिए के नवयुवक पढ़ने में होशियार कम होते हैं परंतु चुस्त-चालाक, सेहतमंद, हिम्मती तथा मेहनती होते हैं। मेल-मिलाप वाले, सांझ वाले, निर्भीक, दूसरों की मदद करने वाले, ज़ुर्रत वाले, दुख-सुखरा में शरीक होने वाले।
राज सिंह के लड़के राजेन्दर ने विदेश भेजने वाली एक एजैंसी से बातचीत कर ली थी क्योंकि उसके साथ के समस्त लड़के इस एजैंसी के ज़रिए ही विदेश गए थे। विदेश में पढ़ाई के लिए कितना पैसा चाहिए? कौन-कौन सी शर्त पूरी करनी है, समस्त जानकारी ले ली थी।
राजेन्दर ने अपने पिता को कहा था, ‘लगभग 25 से 35 लाख रूपए की ज़रूरत होगी।’
पुत्र की ज़िद तथा मोह करके उसका पिता मान गया था। राजेन्दर की मां ने भी ज़ोर देकर कहा था, ‘सारा ईलाका बाहर जा रहा है, मेरा पुत्र क्यों पीछे रहे?’
राज सिंह ने एक बैंक से ट्टण लेने का मन बना लिया था। बैंक के लोन अधिकारी से बातचीत चल रही थी। लोन अधिकारी ने ज़मीन तथा घर की रजिस्ट्री आदि अन्य क़ागज़ात पूरे करके लाने को कहा था। बैंक अधिकारी दिन प्रति दिन उनको लारे भी लगाता था। कोई न कोई नएं क़ागज़ात की मांग कर देता। सारी का़गज़ी कार्यवाही पूरी होने के पश्चात ही लोन दिया जा सकता था।
काफी भाग-दौड़ के पश्चात वे अब पिता-पुत्र लोन के समस्त क़ागज़ात लेकर बैंक में जा रहे थे कि शहर के एक विख्यात, जाने-पहचाने पत्रकार-लेखक तथा समाजसेवी से उनकी मुलाक़ात हो गई। वह लेखक राज सिंह का मित्र ही था, क्योंकि राज सिंह किसान यूनियन में भी हाथ रखता था तथा क्षेत्र स्तर की राजनीति में भी पांव रखता था, जिस करके पत्रकारों से उसका वास्ता पड़ता रहता था।
उस लेखक ने राज सिंह से पूछा, ‘आप बैंक में जा रहे हैं?’
उन्होंने कहा, ‘हम लोन लेने के लिए बैंक में जा रहे हैं।’
राज सिंह ने कहा, ‘राजेन्दर, बाहर के मुल्क में पढ़ाई करने के लिए जाना चाहता है, वहां की पी.आर. लेना चाहता है, एजैंट से बात कर ली है। इस एजैंट की सभी शर्तें पूरी कर ली हैं। अब तो बस लेन-देन ही बाकी है।’
लेखक ने राज सिह को कहा, ‘आओ, कहीं बैठकर चाय-पानी पीते हैं।’
विदेश जाने की बात शुरू हो गई। आपस में कई बातें सांझी होने लगीं- ‘विदेश में बहुत मौज़ है, नौकरी आसानी से मिल जाती है, श्रम की प्रतिष्ठा है, वहां सबको बराबर समझा जाता है, वहां तो काम की कद्र है, वहां की सरकारों ने प्रत्येक किस्म की सुविधा अपने नागरिकों को दे रखी हैं, अच्छी राजनीति है, बढ़िया माहौल, अनुशासन है, अच्छा मौसम, साफ स्वच्छ शहर, मानव की मानव कद्र करता है, अनेकानेक सुविधाओं से निवाज़ा है मनुष्य को वहां। सख़्त कानून। प्रत्येक कानून सूई के छेद से होकर निकलता है।’ इत्यादि कई बातें चलती रहीं।
देश की गंदी सियासत बारे, बेरोज़गारी बारे, जातिवाद बारे, धर्मवाद, नस्लवाद इत्यादि कई बातें निराशा में चलती रहीं। सभी बातें सही तथा उचित थीं।
उस लेखक ने राज सिंह के पुत्रा राजेन्दर सिंह को बलपूर्वक तथा समझदारी की कई उदाहरणें दीं- अपने देश प्रति, अपनी मिट्टी के प्रति वफ़ादार होना, ईमानदार होना, परिश्रमी होना, सच्चे नेक नीयत इन्सान होना इत्यादि बातों पर प्रभावशाली तथा तर्कशील विचार रखे।
लेखक ने उदाहरणों सहित समझाते हुए कहा, ‘पुत्र, विदेश भांगने से कुछ नहीं होना। देश का निज़ाम बदलने के लिए नवयुवकों, नईं पीढ़ी को आगे आना पड़ेगा। रिश्वत को, गंदी राजनीति को ख़तम करने के लिए विदेशों में जाने की ज़रूरत नहीं बल्कि अपने देश में रहकर लड़ाई लड़नी होगी। माना कि गुंडों तथा सियासी लोगों की तूती ज़्यादा बोलती है, किसी की पेश नहीं जाने देते। प्रत्येक महक़मे में रिश्वत का बोल बाला है, इसको खत्म करने के लिए नवयुवक संगठित हों। पढ़े-लिखे, विवेकशील, ईमानदार नवयुवक सियासत में कूदें। अपनी छोटी-छोटी ईकाईयां बनाएं तथा रिश्वत, बेईमानी के खि़लाफ़ डट जाएं।’
देख, पुत्र, रूस में, फ्रांस में, चीन में, जर्मन में मध्य वर्ग के पढ़े-लिखे ईमानदार, देश प्रेमी नवयुवकों ने क्रांति के बीज बोए। इतिहास पढ़कर देखो। दिल से भय निकालने की ज़रूरत है। गंदे सिस्टम से लड़ने की ज़रूरत है। हमारा देश भी मध्य वर्ग के नवयुवकों ने कुर्बानियां देकर अंग्रेजों से आज़ाद करवाया था।
सभी इन्सानों की बराबरी तथा लोकतंत्र की लड़ाई लड़ने की ज़रूरत है, सियासत में कूदना पड़ेगा हर हाल, आज फ्रांस की क्रांति जैसे हमारे देश के हालात हैं। वहां के मज़दूरों ने, मध्य-वर्ग के नवयुवकों ने राजा-रानी को क़त्ल कर दिया था। बिल्कुल वैसे हालात आज हमारे देश में हैं। स्वल्प ईकाईयों के सामूहिक आंदोलन से ही परिवर्तन आ सकता है। इस कार्य के लिए कई वर्ष लग जाते और कभी-कभी हवा बनने की बात है शीघ्र क्रांति उत्पन्न हो जाती है। लोगों की सोच-विचार बदलने के लिए अच्छी पत्र-पत्रिकाएं तथा इलैक्ट्रिोनिक मीडिया सकारात्मक कार्य कर सकता है। पत्र-पत्रिकाएं मां-बाप की भांति कार्य करते हैं- अच्छी देशपरक तरक्की पसंद सोच पैदा करने के लिए। सच्चाई को लेखन के ज़रिए लोगों तक पहुंचाना चाहिए।
देख पुत्र, विदेश में रह रहे करोड़ों भारतीय अपनी भाषा से, संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। भूमण्डीकरण और विवेकहीन पश्चिमीकरण की आपा-धापी में कई भाषाएं दम तोड़ गई। मनुष्य को न केवल अपने आप से बल्कि अपने समय से भी संघर्ष करना पड़ता है।
और सुन, भूमि बैंक में रखकर बाप को ऋण (कर्ज़े) के भार के नीचे रखकर बाहर जाएगा, कोई अच्छी बात नहीं। जितना धन तू बाहर जाने के लिए बर्बाद करेगा, उतने धन में यहां भी तो बिज़नैस हो सकता है। बहुत से रास्ते हैं। ढूंढने की ज़रूरत है। मेरी मान, तू ज़मीदार का पुत्र है, ट्रैक्टर चला लेता है। क्या तू ट्रक नहीं चला सकता। इतने धन में तो बढ़िया ट्रक आ सकता है। यहां तक कि आधे धन से ही ट्रक आ जाएगा। तू चुप करके मेरा पुत्र ट्रक ले ले। ज़मीदार का, किसान का मेहनती पुत्र ऐ, हट्टा-कट्टा ऐ। क्यों घबराता है, तेरे लिए यह मुश्किल काम नहीं। इतने रुपए तो तेरे पिता के पास ही होंगे, जिससे ट्रक आसानी से खरीद सकता है। कुछ पैसे इधर-उधर से पकड़ लेना। क्यों बाप को कर्ज़े के पहाड़ के नीचे देकर जीते-जी मारने लगा है। किसान के लिए भूमि तो मां जैसी होती है, जिसके आशीर्वाद से, शुभकामनाओं से घर में बरकतें ही बरकतें होती हैं। किसान की ज़मीन तो उसका सच्चा-सुच्चा क़ीमती अलंकार (गहना) होता है जो बुज़ुर्गों की धरोहर होती है। पीढ़ी दर पीढ़ी इस मां का आशीर्वाद मिलता रहता है। पुत्र, तू अपने बाप को तरसा-तरसा के न मार। मेरी बात मान और चुप करके ट्रक खरीद ले।’
‘अंकल, मैं आपकी प्रत्येक बात से सहमत हूं परंतु इस सारे प्रोसेस से गुजरने के लिए रिश्वत तो देनी ही पड़ेगी वैसे कैसे ट्रक मिल सकता है। यह ट्रक-व्रक तो राजनीतिक पैसे वाले लोगों का खेल है।’
‘पुत्र, घबराने की कोई ज़रूरत नहीं। वह सब कुछ पता चल जाएगा, जब तू कोशिश करेगा। रिश्वत देनी पड़ेगी तो दे देना और क्या किया जा सकता है। कम-ज-कम तुझे यह तो पता चल जाएगा कि देश में किस तरह मज़बूर होकर रिश्वत देनी पड़ती है। यह तर्ज़ुबा भी नवयुवकों के लिए ज़रूरी है। पुत्र, जंगल में मोर नाचा किस ने देखा? अपना हुनर पेश करोगे तो पता चलेगा। ज़रूरत आविष्कार की मां है। हिम्मत मत छोड़ो और मक़सद के लिए उठ खड़े हो जाओ, अवश्य तुम्हारी जीत होगी।’
राजेन्दर के मन-मस्तिष्क में एक शक्ति प्रवेश कर गई। एक हिम्मत उसके जज़्बे में तैरने लगी। भविष्य के ख़ूबसूरत ख़्याल उसके मन-मस्तिष्क में चीटियों की भांति घूमने लगे। जैसे उसको अहसास हो रहा हो कि वह कुछ कर सकता है।
वह सोचने लगा, ‘बाहर जाने के लिए एजैंट को भी कितनी भारी रिश्वत देनी थी।’ बस, उसने पूरा मन बना लिया। उद्यम और धैर्य की एक रौशनी उसके हृदय में टिमटिमाने लगी।
आखिर राज सिंह ने भी पुत्र को समझाया, ‘पुत्र, लेखक भाई साहिब बिल्कुल सही कहते हैं। देख पुत्र, मां-बाप की आंखों के सामने रहेंगा तो कलेज़े में ठंड पड़ती रहेगी।’
राजेन्दर ने कुछ पल के लिए सोचा तथा स्थिर-मज़बूत मन बना लिया कि वह विदेश नहीं जाएगा। ट्रक ही खरीदेगा।
वे दोनो बाप-बेटा ने नेक-मश्विरे के आगे सिर नतमस्तिष्क कर दिए। लेखक का कोटि-कोटि धन्यवाद किया और दोनों गांव की ओर चल दिए। घर जाकर राजेन्दर ने सारी बात अपनी मां को बताई। वह भी खुश हो गई। पुत्र के सिर से त्यार उतारने लगी। आशीषें देती न थकती।
कुछ महीनों की भाग-दौड़ के बाद राजेन्दर ने लोन रहित (अतिरिक्त ऋण) ट्रक ले लिया था।
गांव से थोड़ी ही दूर एक सैलर था। उसका मालिक राज सिंह का मित्र था। सैलर मालिक को सारी बात बताई। उसने खुशी-खुशी से कहा, आप अपना ट्रक हमारे सैलर के साथ लगा लें।’
ट्रक, सैलर के साथ लगा लिया अनाज इत्यादि की ढोआ-ढोआई (यातायात) के लिए।
साल में ही अच्छी आमदनी आनी शुरू हो गई। कुछ साल बीत गए।
एक दिन अचानक लेखक बाज़ार जा रहा था कि रास्ते में आती एक चमचमाती ख़ूबसूरत कार उसके समीप आकर रुक गई। उस कार में से एक तंदरूस्त ख़ूबसूरत लड़का तथा उसकी छैल-छबीली छरहरी सुन्दर पत्नी तथा साथ एक तीन वर्ष का लड़का उतरे और लेखक को रुकने का ईशारा किया।
लेखक जिज्ञासामई मुद्रा में रुक गया। वे लेखक के समीप आए और उन्होंने लेखक के पांव पर हाथ लगाकर आशीर्वाद लिया। लेखक ने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘जीते रहो, युग युग जीओ, लम्बी उम्रें हों, परमात्मा आपको खुशियां दे।’ और फिर जिझासामई भाव से पूछने लगा, ‘पुत्र, मैंने आपको पहचाना नहीं?’
उस लड़के ने होठों से फूल की तरह मुस्कराते हुए, चेहरे पर आई बहार को बिखेरते हुए कहा, ‘अंकल, आपने मुझे पहचाना नहीं?’
लेखक ने गहरी दृष्टि से ऐनक से झांकते हुए कहा, ‘पुत्र, मैंने नहीं पहचाना!’
उस लड़के ने अतीत को संभालते हुए कहा, ‘अंकल, मैं सरदार राज सिंह जी का पुत्र, राजेन्दर सिंह।’
‘ओह, हो… यार, तू तो बड़ा ख़ूबसूरत निकला है, बड़ी रौनक है चेहरे पर, यार तेरा तो टौहर ही बहुत है। तेरे में तो पहले से ज़मीन-आसमान का फ़र्क है पुत्र। कमाल कर दी ए। तब तू सिर पर पटका बांधता था परंतु अब तो सोहणी दस्तार सजाई हुई है… कमाल आ बई। काफी मोटा हो गया ऐं। और सुना मम्मी-डैडी का क्या हाल है? कारोबार की सुना। कई सालों के बाद मिला है। डैडी तेरे भी कभी नहीं मिले।’
‘अंकल, वह भी मेरे कारोबार में मसरूफ हो गए हैं। सिर खुरकने को समय नहीं मिलता, अंकल जी। यह मेरी पत्नी है तथा यह मेरा लड़का है।’
‘यार, तू शादी पर बुलाया ही नहीं।’
‘अंकल जी, सिम्पल शादी की है। केवल चुनरी ओढ़कर ही शादी कर ली। आपको घर जरूर बुलाना है अंकल जी।’
‘और सुना, कारोबार कैसा है?’
‘सब ठीक है अंकल जी। अब मेरे पास दो ट्रक हैं। यह मेरी पत्नी एक स्कूल में लेक्चरार (प्राध्यापिका) लगी हुई है। परमात्मा की बड़ी कृपा है अंकल जी। एक ड्राईवर भी रखा हुआ है। एक ट्रक मैं खुद चलाता हूं तथा दूसरा ड्राईवर चलाता है। ट्रक यूनियन का प्रधान भी हूं मैं। अंकल, नया घर बनवा लिया है, कुछ भूमि (खेत) भी खरीदे हैं। वाहेगुरू की बड़ी कृपा है अंकल। अंकल, सब तुम्हारे नेक मश्विरे का आशीर्वाद है।’

— बलविन्दर ‘बालम’

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409