कविता

कारगिल विजय दिवस

ऐ पाक कहने को तू पाक है,
फिर इरादे नापाक क्यों?
क्या तुझे तनिक इल्म न था,
मेरे भारत के शेरों का,
साधा था जब तेरे कपटी इरादों ने ,
टाइगर हिल की चोटी पर निशाना,
शायद तब तुझको इल्म न था,
भारत माँ का एक बेटा सौरभ ही काफी था,
जो झुका न था तेरे आगे,
बस तेरे छल पर शौर्य प्राण वो हारा था,
शीश का अपने भेंट चढ़ा
भारत का मान बढ़ाया था
विक्रम बद्रा और मनोज से भी
नाकों चने तूने चबाया था
कारगिल घाटी की बेदी पर
वीरों ने भेंट शीश के चढ़ाये थे
विजय दिवस की शौर्य गाथा,
आज भी गाता कारगिल है
गौरवान्वित हो तिरंगा
वीरों का यशगान सुनाता है!

— सुनीता सिंह सरोवर

सुनीता सिंह 'सरोवर'

वरिष्ठ कवयित्री व शिक्षिका,उमानगर-देवरिया,उ0प्र0