कविता

वृक्षों की व्यथा

वृक्षों की व्यथा को महसूस कीजिए
उनके हृदय को अब और छेदिए,
हमें जीने के लिए वृक्ष
जीवन भर त्याग करते हैं,
शुद्ध आक्सीजन देकर
जीवन में प्राण भरते हैं।
छाया देते, वर्षा लाते
स्वादिष्ट पोषक फल देते
धरती की कटान रोकते
अपना जीवन हमारे लिए होम करते
जब तक जीते तब तो काम आते ही हैं
जान देकर भी हमारे वफादार बन
जाने कितने काम आते हैं।
और तो और किसी से
भेदभाव नहीं करते,
हमारी मृत्यु पर खुद जलकर
हमारी अंतिम क्रिया आसान करते।
मगर हम मानव भला
उनकी व्यथा कहाँ समझते?
हम तो निहायत बेशर्म हैं
जीना भी चाहते हैं मगर
अपने जीवन के आधार वृक्षों को
जीने ही नहीं देना चाहते,
तभी तो वृक्षों की व्यथा को हम
समझते हुए भी शायद
समझना ही नहीं चाहते,
वृक्षों का धरा से नामोंनिशान
मिटा देना चाहते हैं,
अपना अभिमान दिखाकर
हम क्या अपना
अस्तित्व मिटाना चाहते हैं?

*सुधीर श्रीवास्तव

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