कविता

स्नेह बंधन

राखी त्योहार है
भाई बहन के स्नेह बन्धन का,
कच्चे धागों में भी
रेशमी अहसास का,
राखी के मूल्य का नहीं
भावों के आभास का।
रोली कुमकुम चन्दन आरती हो
या महज हल्दी के टीके,
मँहगी मिठाइयाँ हों
या मात्र गुड़ या शक्कर,
कोई अंतर नहीं होता
इस रिश्ते में स्नेह, दुलार
अपनेपन के अहसास का।
रानी कर्णवती ने
हुमायूँ को भाई बनाया,
रक्षा का संदेश भिजवाया,
हुमायूँ ने बहन की आन की खातिर
भाई होने का फर्ज निभाया,
हिंदू मुस्लिम की बात का
ख्याल भी मन में न लाया।
द्रौपदी ने जब अपनी
लाजरक्षा की खातिर
कन्हैया को था पुकारा,
तब कन्हैया दौड़कर आये
बहन के सम्मान को
आगे आकर था सँवारा।
बहन भाई के रिश्तों में
जाति धर्म ऊँच नीच नहीं होता।
खून के रिश्तों से ही ये संबंध हो
जरूरी भी नहीं होता,
ये रिश्ता महज विश्वास पर ही
मील के पत्थर गढ़ रहा होता।
कच्चे धागों में ही तो
बहन का स्नेह बसता है,
उसी स्नेह की खातिर भाई
कुछ भी करने को तैयार रहता है।
इस रिश्ते का कोई
मापनी नहीं है,
भाई के लिए बहन की खुशियाँ ही
जैसे सब कुछ हैं,
बहन के लिए उसके भाई से प्यारा
इस संसार में कोई नहीं है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921