सामाजिक

अब कहाँ दूसरों की खुशी में खुश होने वाले लोग

जी हाँ आप इस हेडिंग को पढ़कर विचार कर रहे होंगे कि कड़वा सत्य बयां कर दिया ज़िंदगी का | हाँ ! गलत ही क्या है, कलयुग की सच्चाई है जो सभी को दिख रही है और सभी पर बीत रही है | तरक्की की सीढ़ियाँ बढ़ते-चढ़ते हमने जितना पाया है उससे कहीं अधिक खोया है | सफलताएँ हांसिल कीं प्रचुर, हाथ फिर भी रीते ही रह गए | दिखावे ने प्रेम-प्यार,अपनत्व,संस्कारों, नैतिक मूल्यों को चारों ओर से घेर ऐसा जाल फेंका कि ये सब फंस गए, पराधीन हो गए इसके |
इन सब पर हावी होकर अपना राज चला रहा है दिखावा | कुछ नहीं बचा इसके अलावा लोगों के आचरण में | अगर मैं आप सबसे एक सवाल करूँ कि क्या आप अपने घर में भी एक या दो सदस्यों को छोड़कर बाकी सब पर पूर्ण विश्वास करते हैं ? तो क्या उत्तर होगा आपके हृदय में ये आपसे बेहतर कौन जान सकता है |                    बाहर वालों को क्या कहें ? पड़ोसियों को क्या कहें ? किसी के घर में गलती से ठहाके की आवाज़ कोई सुन लेता है या किसी के घर मेहमान आते-जाते रहते हैं, किसी की संतान तरक्की कर ले, या किसी का बड़ा घर बनते देखते हैं, किसी के घर नई गाड़ी आते देखते हैं वगैरह – वगैरह…..
   कानाफूसी, पेट दर्द, सौ तरह की बातें बनाना, बस यही सब बचा है काम आजकल लोगों के पास | एक घर में भाई-भाई हो या भाई-बहन हो, संयुक्त परिवार हों या कैसे भी रह रहे हों पर एक-दूसरे से भीतर से जलन और मुख पर झूठी बधाई देना ! वाह !
   कभी स्वयं का मंथन किया है कि आजतक आपको ऐसा करके क्या लाभ मिला ? किसी की बुराई कर, किसी को मन में गाली दे, या वो कहावत है न ” मुँह में राम बगल में छुरी ” एकदम खरी उतरती है |
  अभी भी सब्जी की दुकान पर या सौदे की दुकान पर ही देख लेना किसी के घर चार झोले सामान जाता देख आँखें वहीं गड़ी रहेंगी, अपने थैले में क्या ईश्वर ने डाला है वो नहीं देखेंगे | हमने एक पाठ पढ़ा था – ” अब कहाँ दूसरों के दुख में दुखी होने वाले ” सब उलट-फेर हो गई रे भैया अब तो किसी के ऊपर विपदा आ जाए सबसे पहले हितैषी बन उसका ही फोन आएगा जो भीतर से आपके दुख से अति प्रसन्न होगा |  चाटुकारिता भरे शब्दों का जाल बुनकर छि: ! दिखावे की बोली परोसेगा |
    अपनी करनी से कोरोना जैसा बुरा वक्त देख लिया सबने फिर भी सीख जाओ | कम-से-कम निंदा करना, बेवजह किसी को अपशब्द कहना, घर बैठे ही किसी की सफलता से जालना, उसे कोसना छोड़ दो और अपने कर्म में विश्वास करना सीखो | मत सोचो कि सामने वाले के पास ये है- वो है, बड़ी गाड़ी है, उसने इतनी तरक्की कर ली है, वो इतना आगे कैसे बढ़ गया और न जाने क्या-क्या सोचते हो कितना वक्त ज़ाया करते हो ?
सोचो कि तुम्हारे पास क्या है तुम कैसे अपनी मेहनत से खुद को अपने परिवार को संतुष्ट रख सकते हो | आगे बढ़ने की सोच पैदा करो, जज़्बा लाओ अपने भीतर, खुद पर भरोसा रखो  बाकी ईर्ष्या, कुढ़न, आदि में समय मत गँवाओ व्यस्त रहो प्रयास करो, और सबसे बड़ी बात खुद में संतुष्ट रहो यही सबसे बड़ी उपलबद्धि है जीवन की |
होड़ के चक्कर में टूट भी रहे हो और सब तोड़ भी रहे हो ! उक्ति को समझो वक्त रहते |
सीखो दूसरों की खुशी में खुश रहना भी क्योंकि इसके अलावा और कोई उपाय ही नहीं है | यदि ऐसा करोगे तो सबसे पहले खुद को पाना सीख जाओगे, आगे बढ़ने की खुद भी सोचोगे किसी को गिराने की नहीं |
क्या पाया है आजतक ऐसी सोच से विचार लो, खुद ही गड्ढे में गिर जाते हो क्योंकि दूसरों को बढ़ते देखते हो, कोसते हो, सामने वाले तक तुम्हारी कोसना पहुंचे या नहीं तुम्हारे भीतर बैठे भगवान तक और खुद तुम तक जरूर पहुँच जाती है |
राजनीति में गलत- सही नेता करते हैं तो झट से हम एक पार्टी को गाली देने लगते हैं और दूसरी को सराहने | उनसे ज़्यादा तो हम अपने निजी जीवन में शतरंज की बिसात दिलों में बिछाकर बैठे हैं, जैसे ही कोई प्यादा सामने से गिरता है तो भीतर से खुश और मन में ताली ठोकते हैं |
शोक बस झूठा |
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।