कविता

सुबह की चाय

अंग्रेज जाते जाते
चाय की लत हमें लगा गये,
अब तो लगता है कि
चाय के नाम पर हमें नशा दे गये,
अपना उल्लू सीधा कर गए।
आज चाय हमारी कमजोरी हो गई
सुबह की चाय सबसे जरुरी हो गई।
खाने से अधिक सुबह की चाय
प्राथमिक जरूरत बन गई,
एक कप चाय स्टेटस सिंबल बन गई।
घर में कोई पधारे तो
चाय जरूरी हो गयी,
जैसे चाय चाय नहीं
स्वागत का गुलदस्ता हो गयी।
चाय नहीं पिलाया तो
मेहमान की नजरों में
मेजबान की इज्ज़त
दो कोड़ी की हो गई।
अब तो चाय हमारी जिंदगी का
हिस्सा हो गयी।
खाना मिले न मिले ,चल जायेगा
मगर चाय के बिना
गुजारा नहीं हो पायेगा।
आज चाय जीवन सरीखी हो गई
नहीं मिली जो चाय सुबह की
तो लगता है जैसे दिन की
शुरूआत ही नहीं हुई,
चाय अब चाय नहीं
दो घूँट जिंदगी की
अमृत सरीखी हो गयी।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921