भाषा-साहित्य

कब तक उपेक्षित रहेगी हिन्दी?

विश्व में प्रचलित भाषाओं में संस्कृत को छोड़कर सबसे प्राचीन हिंदी भाषा है। हिंदी भाषा वैज्ञानिक भाषा है। हिंदी साहित्य दुनिया का सबसे श्रेष्ठ साहित्य है। भारतवर्ष की मातृभाषा है। १४ सितंबर १९४९ को हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया, परंतु आज विडंबना यह है कि भारत वर्ष में ही हिंदी उपेक्षित है। कहने को तो हिंदी राजभाषा है लेकिन वास्तविकता कुछ और है। आज भारत वर्ष में हिंदी के साथ दोहरा व्यवहार किया जाता है। आजादी के ७५ वर्ष बीत जाने के बाद भी न्यायालय, तहसील व अन्य सरकारी कार्योंलयों में भी हिंदी का प्रयोग हीन भावना के साथ किया जाता है। हिंदी बोलने में लोगों को हीनता महसूस होती है। अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में अपने बच्चों का प्रवेश कराने की स्पर्धा है, घरों से भी हिंदी भाषा के  संस्कार, शिष्टाचार गायब हो रहे हैं। यहां तक कि अपने सगे संबंधियों के नाम भी अंग्रेजी में लिए जाते हैं। जैसे- मम्मी, डैडी, अंकल, सिस्टर इस प्रकार हिंदी का स्वाभिमान नष्ट हो रहा है। स्थिति यह है कि आज के  विद्यार्थी जो राष्ट्रवाद, स्वदेशी का भाव भरते हुंकार  करते दिखाई देते हैं, उनमें स्वभाषा के प्रति कितना लगाव है उनसे बात करने पर पता लग जाता है। जिन विद्यार्थियों को हिंदी दिन के नाम, भारतीय महीनों के नाम, भारतीय उत्सव, पर्व कब मनाए जाते हैं इसका भी ज्ञान नहीं है, ऐसे में हम कैसे कहें हिंदी भाषा के प्रति हमारा प्रेम है। विद्यालयों में जहां हिंदी बोलने पर दंड दिया जाता है ऐसे स्थान पर जा कर लगता है, कि वास्तव में हम भारत में है या इंग्लैंड में यह तो स्थिति है। हमारे देश में हिंदी दिवस के अवसर पर तो कुछ कार्यक्रम, गोष्ठी, सेमिनार होकर रह जाते हैं यहीं तक उनकी इतिश्री हो जाती है। स्वतन्त्र भारत वर्ष में हिंदी का अपमान कब तक होता रहेगा। केवल भाषणों में बोलकर हिंदी का स्वाभिमान जाग्रत नहीं होता, इसे व्यवहार में उतारना में होगा। सरकार व आम जनमानस में हिंदी के प्रति स्वाभिमान विकसित करना चाहिए। हीन भावना का अंत हो। विद्यालयों में अध्ययन हिंदी भाषा में अनिवार्य किया जाए। ऐसे विद्यालय परिसर जहां हिंदी बोलना अपराध है उनकी मान्यता रद्द कर कठोर कार्रवाई की जाए इसके लिए एक सार्थक पहल की आवश्यकता है तब हम स्वभाषा,  स्वराष्ट्र, स्वदेशी की चर्चा विश्व पटल पर आत्मविश्वास और स्वाभिमान के साथ कर सकेंगे।

स्वतन्त्रता के ७५ वर्षों के बाद भी हिन्दी उपेक्षित है। आधुनिक युग की भाषा अंग्रेजी बन कर रह गई। पूरे राष्ट्र को एक करने के लिए जिस भाषा का आज़ादी की लड़ाई में प्रयोग किया वह हिन्दी थी। हिन्दी हमारी राजभाषा है। ये जन जन की भाषा बने इस हेतु हम सभी प्रयासरत हैं।  आज हम हिन्दी बोलना पसन्द नहीं करते। हम सब दोषी हैं हम अंग्रेजी माध्यमों के विद्यालयों में हमारे बच्चों को मोटी फीस देकर पढ़ने भेजते हैं। जब वही बच्चा अंग्रेजी कविता सुनाता है तो हमें गर्व होता है। हम प्रतिवर्ष हिंदी दिवस मनाते हैं वक़्ता मंच पर जो विराजित रहते हैं उनके पुत्र भी अंग्रेजी माध्यमों के विद्यालयों में पढ़ते हैं । वही मंच पर बड़े बड़े भाषण देकर कहते हैं हिन्दी बोलो। अपने बच्चों को हिन्दी मे पढ़ाओ। अरे हम कहाँ तक झूँठ बोलेंगे। हिंदी उपेक्षित नहीं रहेगी तो क्या होगा।

“सबकी जुबान पर जब अंग्रेजी होगी।
फिर कैसे उनन्त हमारी हिंदी होगी।।”

आज हम पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करने लगे हैं । जूते पहन कर खड़े खड़े भोजन करना। किट – पिट अंग्रेजी बोलना। किटी पार्टी,टी पार्टी । ये सब क्या है? इससे क्या हिंदी समान्नित होगी। आज विवाह होता है। निमंत्रण अंग्रेजी में छपे होते हैं। ऑनलाइन सभी काम हो रहे हैं। व्यक्ति डिजिटल युग मे जी रहा है। हिंदी कहाँ है अब। बोलबाला अंग्रेजी का चारों ओर दिखता है।
बड़े समारोहों में हिंदी भाषी को मंच नहीं दिया जाता। देश के नेता अभिनेता दूरदर्शन ,आकाशवाणी के साक्षात्कार में हिन्दी कम अंग्रेजी अधिक बोलते हैं। उन्हें गर्व होता है। लोग हमसे कितने प्रभावित होंगे हमें अंग्रेजी बोलना होगा ये उनकी सोच बन गई है।
हिन्दी आज भी राजभाषा है राष्ट्रभाषा नहीं। हिन्दी १५० विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है लेकिन हमारे देश मे हिंदी उपेक्षित हैं। भारतेंदु ने कहा था
“निज भाषा उन्नति अहै , सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा के, मिटत न हिय को सूल ।।”
जिस देश की भाषा प्रगति पर है वह देश उन्नति करता है। हिन्दी राजभाषा संपर्क भाषा और राष्ट्रभाषा के तौर पट देश को एकता के सूत्र में बांध सकती है।
आज अहिन्दी राज्यों ने हिन्दी भाषा के आयोजन करना प्रारम्भ कर दिया है जो हम सब के लिए खुश खबरी है।हिंदी भाषा लोक भाषाओं की विशेषताओं से सम्पन्न होती है।हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है। मात्राएं,स्वर व्यंजन,अनुस्वार आदि देवनागरी में सम्मिलित हैं। हिंदी सीखना आसान है। भाषा मे वर्ण,शब्द, वाक्य संरचना आदि सरल तरीके से सीख सकते हैं।

आज कम्प्यूटर के युग मे हिंदी का प्रचलन समाप्त हो रहा है। हिंदी विदेशी सीखने लगे हैं लेकिन अपने देश के लोगों का रुझान कम होता जा रहा है। वार्तालाप के दौरान अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है।

रोजमर्रा के काम में हम अंग्रेजी का प्रयोग करने लगे हैं। आज हिंदी दोयम दर्ज़े की भाषा बन गई है।१४ सितंबर १९४९ को संविधान ने हिंदी को राजभाषा घोषित की।आज हम सुबह उठते ही एक दूसरे से गुड़ मॉर्निंग बोलते हैं। सुप्रभात। शुभ प्रभात। ये शब्द अब सुनाई नहीं देते। जब दोपहर होती है गुड नून, शाम ढलते ही गुड इवनिंग रात होते ही गुड नाईट । ये सब हम ही बोलते हैं। हिन्दी की उपेक्षा का कारण हर वह व्यक्ति है जो भारत मे रहकर भी हिंदी नहीं बोलता नहीं हिंदी लिख पाता है। आज हमारे बच्चे न अंग्रेजी ठीक से बोल सकते है न हिन्दी का शुद्ध उच्चारण करते हैं।

हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि कबीर,तुलसी,सूरदास,रसखान, बिहारी के साथ ही सभी कवियों ने हिन्दी में ही साहित्य को जन जन तक पहुँचाया। हमारे शास्त्रों की भाषा हिंदी है। हम स्वयं की भाषा का कैसे त्याग कर सकते हैं। बच्चा जब छोटा होता है सबसे पहले माँ बोलता है। माँ हिंदी का शब्द है।

आज हिन्दी वैश्विक स्तर पर सम्मान पा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रधानमंत्री जी हिंदी में भाषण देते हो। लेकिन आज भी हिंदी उपेक्षित है। हिंदी भाषा जन जन की भाषा तभी बनेगी जब हिंदी का प्रचार प्रसार होगा। हर क्षेत्र में हिंदी लिखना व बोलना सरकार अनिवार्य न कर देगी।

आज हिन्दी सीख कर विदेशी शोध कर रहे हैं। हमारे देश की सभ्यता व संस्कृति सीख रहे हैं । हिंदी से फायदा लेकर भारतीय संस्कृति के मुख्य विषय योग सीखने लगे है। लेकिन हम अपने ही घर मे अंग्रेजी के मोह में पड़े हैं। हिंदी अभी भी वीर विहीन और विचार विहीन नहीं हुई है बस इतना ध्यान रखें। हिन्दी का प्रचार प्रसार स्वामी दयानंद व महात्मा गांधी जी ने गुजरात मे किया था। सुभाष चंद्र बोस व रवींद्रनाथ टैगोर ने बंगाल में किया था। तिलक ने महाराष्ट्र में हिंदी का प्रचार किया। जब अंग्रेजों का शासन था। कड़ा पहरा था। अंग्रेज यातना देते थे। ऐसे समय मे हमारे क्रांतिकारियों ने हिंदी का प्रचार कर दिया था तो आज हम क्यों नहीं कर सकते। आज तो हम आजाद हैं। आइये हिंदी का प्रचार करें।स्वर्गीय अटल बिहारी जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना भाषण दिया था। आज हमें उनके बताए मार्ग पर चलना होगा। हम सभी को संकल्प लेना होगा जन-जन तक पहुंचना होगा। इस प्रकार हिंदी भाषा दुनिया की सबसे अग्रणी भाषा हो। इस ओर सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है।

*बाल भास्कर मिश्र

पता- बाल भाष्कर मिश्र "भारत" ग्राम व पोस्ट- कल्यानमल , जिला - हरदोई पिन- 241304 मो. 7860455047