कविता

जुगनू और सूरज

अब दिनकर को धौंस दिखाते हैं  जुगनू,
अंधकार   में    हमीं   उजाला करते हैं।
नाहक तुम अपना अधिकार जताते हो,
युगों – युगों  से  हम जलते हैं, मरते हैं।।
आँख  मूँदते  हम  तो  ये  रातें होतीं,
आँख खोलने से ही दिन हो जाते हैं।
धरती   का  सर्वस्व  हमारी  मुट्ठी में,
चंदा – तारे  हमको  शीष झुकाते हैं।।
जगत नियंता, शक्तिमान हम हैं सक्षम,
तुम लम्पट, बंदर के प्रथम निवाले हो।
जाओ, जाकर डूब मरो जग से बाहर,
हम अपना साम्राज्य बढ़ाने वाले हैं।।
हँसकर  थोड़ा  ताप बढ़ाया सूरज ने,
प्रभाकीटगण असमय भस्म लगे होने।
संगी – साथी  भाग  छुप गए  कोटर में,
क्षण भंगुर जीवन की आस लगे खोने।।
बिना काम के गाल बजाना ठीक नहीं,
सबके अपने पृथक दोष- गुण हैं होते।
समय एक-सा नहीं किसी का भी रहता,
धीर- वीर इस हेतु नहीं धीरज खोते।।
— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 Awadhesh.gvil@gmail.com शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन