कविता

खुशियां

खुशियां तो बेवजह होती हैं,
मिल जाये गली मोहल्ले में।
किसी की प्यारी मुस्कान में,
कभी बच्चों के हल्ले में।।
सुबह पक्षी जब चहचहाये,
मन आनंदित कर जाए।
जब प्रकृति हवा चलाती है,
मन को शीतलता पहुंचाती है।।
कभी किसी ठेले तो कभी,
किसी चाय की दुकान में।
लहलहाती फसल देख,
एक किसान की मुस्कान में।।
खुशियां ढूंढने या पैसों से,
नहीं मिला करती है।
गाड़ी, बंगला से यह असली,
मुस्कान नहीं खिला करती है।।
हर छोटी- छोटी बात में,
जो खुशियां ढूंढ़ लेते हैं।
कुछ लम्हों में ही वो पूरी,
दुनियां जीत लेते हैं।।
— शहनाज़ बानो

शहनाज़ बानो

वरिष्ठ शिक्षिका व कवयित्री, स0अ0,उच्च प्रा0वि0-भौंरी, चित्रकूट-उ० प्र०