लघुकथा

लघुकथा : प्रतीक्षा

 उस दिन खुशियाँ पंखुड़ियों की तरह बिखर गयी थीं घर भर; आखिर क्यों नहीं…? शादी के तेरह वर्षों की प्रतीक्षा के बाद अजित और सुनंदा की दुनिया में नन्ही-परी सी प्रतीक्षा जो आई थी। नन्हीं बिटिया प्रतीक्षा को देखकर अजित-सुनंदा फूले नहीं समाते थे। ज्यादातर प्रतीक्षा का समय बिस्तर पर कम मम्मी-पापा की गोद में बीतता था। घर भर आनंद ही आनंद।
          वक़्त अपनी धुरी पर गतिमान था। अजित व सुनंदा को छः-सात माह बाद उनकी बिटिया प्रतीक्षा असामान्य लगी। उसकी शारारिक व मानसिक स्थिति यथाआयु नहीं लगी। चिंतित व दुखी अजित और सुनंदा ने डाॅक्टरों से सम्पर्क किया। डाॅक्टरों ने प्रतीक्षा को जन्म से लाईलाज बीमारी होने की बात बताई। अजित और सुनंदा तो टूट गये। ईलाज चलता रहा। डाॅक्टर, वैद्य, हक़ीम की दवाइयाँ व सलाह कुछ काम नहीं आये। मंदिर, मस्जिद, चर्च की दर पर अजित-सुनंदा ने कितनी बार माथा रगड़े होंगे, उन्हें याद नहीं।
        अजित व सुनंदा की किस्मत तो आज फूट ही गयी। बिटिया ने सदा के लिए अपनी आँखें बंद कर ली। अजित भरे मन से अपने आँसू अंदर धकेल रहे थे। सुनंदा बिलख रही थी। “ले बिटिया, ले पहन ले इसे; मैनें ही तो तुम्हें पहली बार पहनाई थी एक नई फ्राॅक…” अपनी तर्जनी से आँसू पोंछती हुई प्रतिक्षा की निष्प्राण देह पर कफन डाल दी।
         श्मशानधरा में अजित की मुट्ठी से मिट्टी व आँखों से आँसू कब्र पर एक साथ गिरे। कुछ शब्द निकले- ” अरी ! बहुत देर से आई; और इत्ती जल्दी चली भी गयी। सम्भव हो तो और आना; हम तुम्हारी प्रतीक्षा करेंगे।” सबकी आँखें भीग गयीं।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”

टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"

शिक्षक , शासकीय माध्यमिक शाला -- सुरडोंगर. जिला- बालोद (छ.ग.)491230 मोबाईल -- 9753269282.