कविता

एकाकीपन

समय के साथ साथ
एकाकीपन का घाव
नित गहरा हो रहा है,
समय पूर्व मौत की ओर
हमारे बुजुर्गों को ढकेल रहा है।
इसके जिम्मेदार भी
हम और आप तो हैं ही
आधुनिकता का चढ़ता रंग और
एकल परिवारों का बढ़ता चलन है।
माना की कुछ मजबूरियां होंगी
पर हमारे बुजुर्गों की भी
हमारे पालन पोषण में भी
क्या कम दुश्वारियां रही होंगी?
मगर उन्होंने अपने कर्तव्य
तब भी तो निभाए,
हमारी खातिर जाने कितने कष्ट
खुशी खुशी उठाये।
बदले में हमनें सिवाय एकाकीपन के
और क्या कुछ दिया?
बहुत किया तो कर्तव्य के नाम पर
पैसों का घमंड दिखा
सुख सुविधा के नाम पर
जीने खाने रहने का इंतजाम भर किया,
पर उनके जीवन से अपनेपन का
हर अहसास नोच लिया।
सच कहें तो उन्हें आपकी जरूरत है,
आपकी फेंकी हुई सुख सुविधा की नहीं
आपकी और आपके अपनेपन की
उन्हें ज्यादा जरूरत है,
मगर आपको शायद अपने लिए
उनसे भी ज्यादा जरूरत है।
आपको तो भरे पूरे परिवार का
माहौल ही नहीं
प्यार, दुलार भी मिला था,
तब आपकी सोच ऐसी है,
जरा सोचिये! आपके बच्चे को तो
रिश्तों का अहसास तक न हो पाया,
सिर्फ़ माया से संवेदनाओं का भाव
कभी भी नहीं जग पाया।
अब आप भी अपने बच्चे से
सारी उम्मीदें छोड़ दीजिए,
जिंदगी को पैसों के सहारे
एकाकीपन में जीने का अभ्यास
अभी से करना सीख लीजिये।
आपने तो समाज के डर से
अपने माँ बाप का
अंतिम संस्कार भी किया होगा,
अपने बच्चों से ये उम्मीए भी न कीजिये,
एकाकीपन की सजा के लिए
अभी से खुद को तैयार कर लीजिये।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921