कविता

आवरण

आप जो वास्तव में हैं
वही रहिए,
बहुरुपिए मत बनिए।
आवरण डाल लेने भर से
सच क्षणिक ठिठक तो सकता है
पर मिट नहीं सकता,
आपके आवरण से ही झूठ
कभी भी झांक सकता।
झूठ के पाँव नहीं होते जनाब
सच को सामने आने से भला
कब तक रोक पाओगे जनाब?
भ्रम का शिकार होने से अच्छा है
सच का साथ करो जनाब।
क्या पता कब आपका आवरण
तार तार हो जाये,
लाख कोशिशों के बाद भी
असलियत सबके सामने आ जाये।
तब आप लोगों का सामना
कैसे कर पाओगे?
अपने आपसे भला कब तक
सच को छुपा पाओगे?
अपनी असलियत कैसे छुपा पाओगे?
उघड़ चुके आवरण के साथ
क्या सिर उठा कर चल पाओगे?
कब तक अपने आपको छुपाओगे?
या फिर नया आवरण ओढ़कर
सबके सामने आ जाओगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921