राजनीति

प्रदेश में समाजवाद का सुपर गठबंधन कितना कामयाब होगा ?

आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर प्रदेश के सभी राजनैतिक दलों में गहमागहमी तेज हो गयी है। समाजवादी पार्टी ने भी अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं और समाजवादी नेता अखिलेश यादव पूरे दमखम के साथ एक बार फिर तैयार हो गये हैं और अपनी जनसभाओं तथा विजय यात्रा में अपनी ताकत का प्रदर्शन भी करने लगे हैं। अखिलेश यादव समाजवादी दल की सत्ता में वापसी कराने के लिए इतने अधिक बैचेन हैं कि वे और उनके सहयोगी देशविभाजक जिन्ना के समर्थक भी हो गये हैं। सपा नेता भी ंमदिर-मंदिर जा रहे हैं- हालांकि वह अभी तक अयोध्या नहीं गये हैं और न ही ‘जय श्रीराम’ खुलकर बोल पा रहे हैं। सपा ने समाज में फैली नफरत को दूर करने के लिए इत्र भी मैदान में उतारा है। वहीं अखिलेश यादव का कहना है कि वह सुपर गठबंधन के सहारे एक गुलदस्ता बना रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने अपने गीत भी लांच कर दिये हैं, जिसमें बंगाल की तर्ज पर प्रदेश में अगली बार खदेड़ा होइबे की बात कही जा रही है।

सेकुलर राजनैतिक विश्लेषक कह रहे है कि सपा नेता अखिलेश यादव में अब काफी बदलाव आ रहा है। यही कारण है कि प्रदेश में भाजपा विरोधी सभी ताकतें उनकी साइकिल की सवारी पर चढ़ना चाहती हैं। समाजवादी पार्टी के साथ ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा आ चुकी है। महान दल, एनसीपी और जनवादी पार्टी सोशलिस्ट का भी सपा के साथ गठबंधन हो चुका है, लेकिन अभी सीटों का बंटवारा होना बाकी है। पश्चिम में रालोद के साथ बात बन गयी है और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर (रावण) भी अब सपा के ही साथ गठबंधन करेंगे। पूर्वांचल में अपना दल (कृष्णा पटेल) और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी प्रदेश की राजनीति में अपना जनाधार बनाने के लिए सपा के साथ ही सवारी करने जा रही है।

किसान आंदोलन की आढ़ में आम आदमी पार्टी ने भी उप्र मे अपनी जमीन की तलाश शुरू कर दी थी और 170 विधानसभा सीटोें को चिह्नित करने के बाद वह भी सपा की ओर मुड चली है। एक बहुत छोटी सी पार्टी है गोंडवाना गणतंत्र पार्टी वह भी सपा के साथ मिलकर दो-तीन सीटों पर अपना दमखम दिखाना चाहती है। अभी दो-तीन कुछ और छोटे दल समाजवादी दल की साइकिल पर सवार हो सकते हैं।

राजनैतिक विश्लेषक समाजवादी गठबंधन की ताकत को अपने हिसाब से भी बता रहे हैं। माना जा रहा है समाजवादी नेता अखिलेश यादव जिस प्रकार से गठबंधन को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं उससे उनका नुकसान भी हो सकता है और यह बात कुछ सीमा तक सही प्रतीत भी हो रही है। आज जिन दलों को सपा के साथ जाता हुआ बताया जा रहा है। इन सभी दलों की ताकत 2014, 2017 और 2019 में देखी जा चुकी है। सपा के साथ जितने भी दल जा रहे हैं उनमें केवल सुभासपा ही एकमात्र ऐसा दल है जिसका पूर्वांचल की 30 सीटों पर कुछ प्रभाव है। सपा के साथ कांशीराम बहुजन मूल समाज पार्टी, पालिटिकल जस्टिस पार्टी और अपनादल (कमेरावादी) भी हो गयी है। वहीं दो छोटी पार्टियों लेबर एस पार्टी और भारतीय किसान सेना ने तो स्वयं का सपा में विलय ही कर लिया है। इसके अलावा वह दूसरे दलों के नेताओं को भी सपा में शामिल कर रहे हैं। वह अपना यह काम हर रोज कर रहे हैं कि ताकि बीजेपी के खिलाफ एक माहौल बनाया जा सके। वैसे सपा ने हर चुनावों में किसी न किसी दल के साथ गठबंधन किया लेकिन वह सुपर फ्लॉप होती चली गयी।

रही बात पश्चिम में रालोद की तो वह किसान आंदोलन के कारण बीजेपी से नाराज होकर सपा के साथ चली गयी है, क्योंकि उसे लग रहा था कि केंद्र की मोदी सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी और वह किसानों की नाराजगी को अपने पक्ष में मोड़ लेगी लेकिन अब मोदी सरकार ने अचानक से देशवासियो को चौंकाते हुए कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। भाजपा सरकार द्वारा कृषि कानून वापस लिये जाने के बाद अब किसान आंदोलन का कोई मतलब नहीं रह गया है और चुनावों के नजदीक आते-आते किसानों की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो जायेगा और इसके साथ ही पश्चिम जहां बीजेपी को कुछ नुकसान होता दिखायी पड़ रहा था वह भी कम हो जायेगा। सपा नेता एक गुलदस्ता तो जरूर बना रहे है लेकिन अगर वह नाकाम रहे तो यह गुलदस्ता बिखरने में देर भी नहीं लगायेगा। यह गुलदस्ता कितनी सीटें जीतकर आता है यह भी देखना दिलचस्प होगा।

सपा मुखिया अखिलेश यादव पूरे जोश में हैं और कह रहे हैं कि वह इस बार गुलदस्ता बनाकर और समाजवादी इत्र देकर अपनी सरकार बनाकर रहेंगे। लेकिन उनका यह जोश दिखावटी भी साबित हो सकता है क्योंकि अखिलेश यादव गठबंधन बनाने के नाम पर कुछ अधिक ही झुक रहे हैं। समाजवादी गुलदस्ता बन तो रहा है लेकिन इसके कारण सपा में पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओं में बैचेनी भी हो रही है। सपा मे अंदरूनी बैचेनी आने वाले समय में सपा को गहरा झटका भी दे सकती है।

सपा नेता अखिलेश यादव एक बहुत ही सोची समझी रणनीति के अंतर्गत अयोध्या, मथुरा और काशी का नाम नहीं ले रहे हैं। सपा मुखिया ब्राह्मण समाज को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये जगह-जगह भगवान परशुराम की मूर्तियां बनाने की बात कह रहे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव सभी जातियों को खुश करने के लिये महापुरुषों की जयंती पर अवकाश घोषित करने का ऐलान कर रहे हैं। सपा मुखिया आजकल जिस प्रकार से जोश में बोल रहे हैं यह उनके लिये घातक भी हो सकता है। सपा को अयोध्या में बन रहा भव्य राम मंदिर कतई रास नहीं आ रहा है वह अयोध्या में हर साल बनायी गयी दीपावली का फिजूलखर्ची बता रहे हैं। अयोध्या में समाजवादी नेताओं ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर जमीन घोटाले का आरोप लगाया और कहा कि पहले जमीन घोटाले की जाच हों और फिर भव्य मंदिर निर्माण। सपा नेता सीएए और एनआरसी का लगातार विरोध कर रहे हैं। इसी कारण कहा जा रहा है कि वह कतई नहीं बदले हैं। वह जिस प्रकार से जिन्ना का महिमा मंडन कर रहे हैं उससे पता चल रहा है कि वह विभाजनकारी मानसिकता वाले हैं। सपा नेता अखिलेश यादव ने सरदार पटेल की जयंती के अवसर पर मोंहम्मद अली जिन्ना को स्वतंत्रता सेनानी बताकर मुस्लिम तुष्टिकरण का एक बहुत ही घटिया और शर्मनाक काम किया है। इससे संदेश जा रहा है कि वह हिंदू समाज के खिलाफ हमेशा थे और रहेंगे। समाजवादी मुखिया ने जिन्ना का महिमामंडन करके उस समय हुए दंगों और हिंदुओं की हत्याओं का भी समर्थन कर दिया है। यह सपा नेता कतई नहीं बदले हैं और वास्तव में वे बहुत खतरनाक हो गये हैं तथा हिंदू समाज और राष्ट्रवाद के खिलाफ एक बहुत ही जहरीला कॉकटेल बना रहे हैं।

सपा मुखिया बहुत बैचेन हो रहे हैं। प्रदेश में अगर कहीं कोई आपराधिक घटना घट जाती है तो वहां पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने के लिए पहुंच रहे हैं। अभी यूपी टीईटी की परीक्षा का पर्चा लीक हो जाने के बाद सपा ने सरकार पर हमला बोला लेकिन वह अपनी सरकार की नाकामियों को भूल गये कि उनकी सरकार में किस प्रकार से परीक्षा आयोजित होती थीं और किस प्रकार से अकूत भ्रष्टाचार था।

सपा नेता अखिलेश यादव एक बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत अपना प्रचार कार्य कर रहे हैं। वह जनसभाओं में केवल बीजेपी पर ही हमलावर हैं तथा कांग्रेस और बसपा के खिलाफ चुप्पी साध ली है। वह इसीलिए कि अगर उन्हें कुछ सहयोग की आवश्यकता पड़ी तो कांग्रेस, बसपा और ओवैसी की मदद लेकर भी सरकार बनायी जा सकती है। यही कारण है प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अब कहना शुरू कर दिया है कि ओवैसी सपा का सहयोग कर रहे हैं। वे दावा करते हैं कि भाजपा सरकार उनके किये कामों का उद्घाटन कर रही है, शिलान्यास कर रही है। चाहे वह कानपुर की मेट्रो हो या फिर पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का उदघाटन हर जगह वह अपना काम ही बता रहे हैं जिसे जनता भी अच्छी तरह से समझ रही है। जेवर एयरपोर्ट के शिलान्यास के अवसर पर भी सपा की ओर से कहा गया कि पीएम मोदी जेवर एयरपोर्ट भी बेच देंगे।

सपा मुखिया कह रहे हैं कि वह सरकार में आने के बाद एक-एक उत्पीडन का हिसाब लेेंगे और बदला लेंगे जिसका अर्थ यह है कि सपा सरकार की वापसी के बाद वह एक बार फिर हो सकता है जिस प्रकार से हिंदू समाज व रामभक्तों पर उनके पिता मुलायम सिंह यादव ने गोलियां चलवा दीं थी। सपा सरकार में हिंदू समाज के लोग अपने घर पर लाउडस्पीकर लगाकर रामायण और सुंदर कांड का पाठ नहीं करवा सकते थे। सपा मुखिया अखिलेश यादव में कतई बदलाव नहीं आया है। यह अपने पिता की राह पर चलते हुए दलित, पिछड़ा और मुस्लिम समीकरण साधने में जुटे हैं।

बहरहाल सुपर महागठबंधन और अपने कथित मुस्लिम तुष्टिकरण और जातिवाद के बल पर बीजेपी को घेरने में कितना सफल रहते हैं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। चुनाव सभाओं में सपा और उनके सहयोगी जिस प्रकार से जिन्ना-जिन्ना की रट लगा रहे हैं यह एक बहुत ही खतरनाक टेंªड है। जिसके कारण ही कहा जा रहा है कि यह एक बहुत ही जहरीला काकटेल बनाया जा रहा हैं। अतः प्रदेश की जनता को भी बहुत सोच समझकर अपने मतों का इस्तेमाल करना होगा ताकि प्रदेश में उग रही जिन्नावादी सोच का अंत हो सकेगा। प्रदेश की जनता को अब सोचना होगा और त्रिपुरा के नगर निकायों की तरह परिणाम देना होगा ताकि प्रदेश का शांति के साथ विकास हो सके।

– मृत्युंजय दीक्षित