सामाजिक

देशभक्ति

देशभक्ति सामान्य शब्द नहीं है।इस एक शब्द का फलक असीमित है। एक जज्बा, एक भाव, एक समर्पण और देश के लिए कुछ भी करने और अपनी जान तक न्योछावर करने का संकल्प ही देश भक्ति है।
सामान्यतया देशभक्ति को सेना और सीमा पर युद्ध का द्योतक माना जाता है, परंतु ऐसा कुछ भी नहीं है।
देश के विकास, सुरक्षा, संपन्नता, सुदृढ़ता, शिक्षा, कला, संस्कृति, खेल, विरासत, सभ्यता और गौरव बढ़ाने की दिशा आदि आदि में हम सबके द्वारा किया जाने वाला छोटे से छोटा कार्य भी देशभक्ति की ही श्रेणी में आता है।
विभिन्न क्षेत्रों में हम अपने कार्यों से देश को किसी भी रुप में आगे बढ़ाने, गतिशीलता और विकास के साथ गौरवमयी बनाने की दिशा में हम जो भी योगदान देते हैं, वही देशभक्ति है।
एक श्रमिक भी अपने श्रम से अपनी. देशभक्ति ही प्रदर्शित करता है। आयकर दाता टैक्स के रुप में, शिक्षक शिक्षा के रुप में, कलाकार कला के माध्यम से, कलमकार लेखनी के माध्यम से, किसान खेती के माध्यम से, चिकित्सक इलाज के माध्यम से, शोधकर्ता नये अनुसंधान और खोज के माध्यम से, खिलाड़ी के रुप में, वैज्ञानिक नये नये शोध के रुप में,  व्यापारी व्यापार के माध्यम से उद्योगपति उद्योगों के माध्यम से अपनी देशभक्ति का भाव ही प्रदर्शित करता है।
यही नहीं एक सफाईकर्मी अपनी सफाई की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा कर देशभक्त की ही श्रेणी का हकदार है।
आशय सिर्फ़ इतना है कि देशभक्ति कोई वस्तु नहीं है,जिसे बेच या खरीद सकते हैं।
एक राष्ट्र विश्व पटल पर तभी छा सकता है ,जब उसके नागरिकों में देशभक्ति की भावना का संचार होता रहे। कूटनीतिक स्तर पर सुदृढ़ हो, और ऐसा तभी संभव है जब देश का हर एक व्यक्ति देशभक्त हो और उसके अंदर देश के लिए कुछ करने की मजबूत भावना हो
अमीर, गरीब, छोटा, बड़ा, कम या ज्यादा से ऊपर उठकर पूरी ईमानदारी, लगन, समर्पण से किया जाने वाला हमारा हर कार्य हमारी देशभक्ति को ही दर्शाता है।
अब ये हमें सोचना है कि हम खुद को देशभक्त होने का संतोष कैसे और किस रुप में पा सकते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921