सामाजिक

बिखरते वैवाहिक संबंध

समय परिवर्तन शील है इससे भला कौन इंकार करेगा। आने वाले समय के साथ बदलाव की बयार तेजी से बढ़ती जा रही है। शिक्षा के विकास, रहन सहन में बदलाव, बढ़ती सुख सुविधाएं, आधुनिकता का बढ़ता प्रचलन आदि ने हमें बहुत से सकारात्मक बदलाव भी दिए हैं, तो इन्हीं के साथ मानवीय मूल्यों, सामाजिक, पारिवारिक, सैद्धांतिक, व्यवहारिक  सहित अनेक क्षेत्रों में क्षरण भी तेजी से हुआ है।
एकल परिवारों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, लोगों में अपनी जन्मभूमि से मोहभंग हो रहा, पैतृक संपत्तियों से लगाव घटा है।जिसे बेचने और प्राप्त धन से शहरी होने की बयार तेजी से पैर पसार रही है।
कुछ ऐसा ही वैवाहिक संबंधों में बढ़ता विच्छेद हमें ही नहीं समूची भारतीय संस्कृति को मुँह चिढ़ा रहा है।
हिंदुओं में ये कम ही देखने को मिलता था, तो तीन तलाक कानून के बाद मुस्लिम वर्ग में इसमें जरूर कमी आई है। परंतु इसे जाति धर्म के चश्मे के बजाय व्यवहारिक और सामाजिक रुप से देखने की महती जरूरत है।
समाज के हर वर्ग ही नहीं लगभग हर किसी में सहनशीलता और सामंजस्य का ह्रास हुआ है और हो भी रहा है। बढ़ती शिक्षा ने जहां हमें  काफी कुछ दिया है,मगर रिश्तों की मर्यादा का भाव घटाया भी है। इसके कई उदाहरण विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिल जायेंगे।
अब बात संबंध विच्छेदन/तलाक की है, तो इसके लिए एकल परिवारों के तेजी से बढ़ते प्रचलन को मानना गलत न होगा। जीवन की आपाधापी में खुद के लिए भी समय निकालना कठिन है,तब पति या पत्नी और बच्चों के लिए समय कैसे निकलेगा?ऐसे में तनाव तो बढ़ेगा ही। बड़े बुजुर्गों का संरक्षण/सानिध्य न होने से संस्कारों की बात सोचना भी बेमानी है। छोटी छोटी बातों में बढ़ते झगड़े, फिर ससुराल और बाहरी लोगों का हस्तक्षेप, बढ़ती कुंठा, बच्चों का ऐसे माहौल में रहना और बड़े होकर उसी का अनुसरण, अनुशासनहीनता, बड़ों का कोई भय न होना, अपने ही भाई बहनों में बढ़ती दूरियां आदि अनेक कारण है।
साथ ही अहम भी एक बड़ा कारण है। भावनाओं को सम्मान न मिलना, एक दूसरे को न समझने की प्रवृति और सामंजस्य बिठाने के लिए नरम होकर झुकने में नीचा दिखने का अहसास भी बहुत बार संबध विच्छेदन का कारक बनता है।
बड़े बुजुर्गों के डर, हस्तक्षेप और सम्मान के कारण बहुत से संबंध बिखरने से बच जाते हैं, मगर आज हमारे बड़े बुजुर्गों की दशा पर चर्चा से आप हम खुद शर्मिंदा हो जायेंगे।
एक और समस्या है कि पति पत्नी दोनों काम काजी हों तो बहुत बार कमाई, खुद पर घमंड और स्वच्छंद रहने की प्रवृत्ति भी इसके कारणों में एक है।
क्षमा के साथ कहना चाहता हूँ कि अनेक कारण हैं मगर संबंध विच्छेदन अभी भी मध्यम और सामान्य परिवारों में बहुत कम है, जबकि अभिजात्य, धनाढ्य और आधुनिकता के गीत गाने वाले परिवारों में ये सामान्य घटना है। क्योंकि उन पर कोई ऊँगलियाँ भी नहीं उठाता, साथ ही उन्हें दुनिया ,समाज की फिक्र करने का समय नहीं है,और न ही परवाह।वैसे भी उन्हें बिरादरी से भी कोई नहीं निकालता। उनकी कोई बुराई भी  पैसों की चकाचौंध में चमकने लगती है।
संस्कार और संवेदनशीलता  की कमी भी इसके कारणों से अलग नहीं है। फिर अब तो ऐसे कारणों की आड़ में भी संबंध विच्छेद हो जाते हैं, जिन्हें सुनकर ऐसे लोगों पर हँसी आती है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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