कविता

मैं मौन

अपाहिज सा गुजर जाता हूं मैं मौन

उस फुटपाथ से

उस फ्लाईओवर के नीचे से

और बहुत सारे मेट्रो स्टेशन से

अपाहिज सा गुजर जाता हूं मैं मौन

जब चलता हूं सड़क पर

किसी गाड़ी में बैठता हूं

हृदयाघात सा होता है जब

किसी बूढ़ी औरत को

मैं भीख मांगते देखता हूं

कितने लोग इन रास्तों में मेरे सामने आए होंगे

और कितने रोते-बिलखते छोटे-छोटे इनके साए होंगे

आखिर कौन है ?

बस सब मुंह मोड़ गुजर जाते हैं

मगर मैं अपाहिज सा महसूस करता हूं

कि मैं क्यों कुछ नहीं कर सकता

जब भी लगाता हूं हाथ

किसी रेस्तरां में जाकर एक ड्रिंक पर

याद आते हैं मुझे वही लोग जो

हाथ फैलाए मिले थे मुझे रास्ते में

और जब भी किसी टीवी चैनल को खोलता हूं

अखबार को खोलता हूं

तो छाए रहते हैं इस देश के नेता

प्रथम पृष्ठ पर होती है खबरें टिकट बंटवारे को लेकर

किसी अभिनेता के जन्मदिन को लेकर

या किसी की खाँसी का लाइव

टेलीकास्ट चल रहा होता है

मुझे लग रहा है कि कितनी सरकारें आई हैं

सब की सब मौन चली गई है

कोई नहीं सोचता इन लोगों के बारे में

किसकी जिम्मेदारी है ये क्यों सब मौन है !!!

कब आवाज निकलेगी बंद तालों से

मेरे देश का भविष्य

कभी-कभी मैंने फुटपाथ पर भी देखा है

बड़ी चाहत है कि मैं बोलूं

मेरे साथ एक जनसैलाब भी बोले

की अपने ही हैं बस भटके हुए हैं

बस रास्ता दिखाना है

गुजारिश है सभी से कि मौन ना चलकर

अपाहिज ना होकर अपना कर्तव्य निभाओ

जरा सीख दो थोड़ी सी ,

इन अपनो को अब जीना सिखाओ

हम अपाहिज नहीं हैं

हम इन अपनों को जीना सिखाएंगे

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733