कविता

वो

 

पता है क्या खींच रहा हूँ

रिक्शा नहीं !!

लेकिन कई

तहे जिंदगी की

झुर्रियाँ अक्सर कहती हैं

“रूक जाऊँ अब”

मगर जरूरतें

और

आस लगाये दहलीज़

पर बैठा परिवार

रूकने ही नहीं देता

चप्पलें घिस गई हैं

दोनों

फटी एड़ियाँ दर्द करती हैं

मगर फर्क नहीं पड़ता

सिकन तक नहीं आती

चेहरे पर

धक्का देकर चलाता है

कदमों को और रिक्शा को

मगर ये होंसले

वक्त के सामने

झुकने वाले नहीं

 

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733