गज़ल
सितारों से कहीं आगे चाँद के पार चलते हैं,
थाम के हाथ इक दूजे का हम दिलदार चलते हैं
हर जगह पहुँच जाती हैं मेरी बदनामियाँ पहले,
किस्से क्यों आदमी से भी तेज रफ्तार चलते हैं
गया वो दौर झगड़े हल हुआ करते थे बातों से,
ज़रा सी बात पर अब तो चाकू तलवार चलते हैं
मंडी में कुछ ना कुछ तो बिकने आया ही होगा,
है जो दरकार रिश्तों की चलो बाज़ार चलते हैं
कफन क्या चीज़ है मुर्दा भी ऊँचे भाव बिकता है,
हमारे शहर में लाशों के कारोबार चलते हैं
जीते जी जिसे दुनिया ने लटकाया था सूली पर,
उसके नाम से कितनों के अब घर बार चलते हैं
कटी जितनी भी तेरे साथ अच्छी ही कटी लेकिन,
है अब वक्त ए खुदा हाफिज़ अच्छा यार चलते हैं
— भरत मल्होत्रा