लघुकथा

कारगुजारियां

अपनी सहेलियों के साथ विनीता कला दीर्घा में संदेशों पर विशेष चित्र प्रदर्शनी देखने गई थी. अनेक कलाकारों द्वारा बहुत खूबसूरती से कबूतरों द्वारा चिट्ठी पहुंचाने से लेकर आज की ई.मेल तक की यात्रा चित्रित की गई थी.
विनीता ने साइकिल पर चिट्ठियां बांटते हुए एक डाकिये की तस्वीर देखी, तो चित्रलिखी-सी रह गई. 50 साल पहले की उसकी स्मृति मुखर हो उठी थी.
”शादी को एक महीना होने को आया था, पर मैं मायके नहीं जा सकी थी. दिल्ली में शादी होने के कारण दूसरे दिन ही मेरे परिवार वाले कोटा लौट गए थे.” वह सोच रही थी.
”बड़ी मुश्किल से दो-तीन दिन के लिए मुझे मायके जाने के लिए ससुराल से छुट्टी मिली थी, घर में और कोई महिला जो नहीं थी!” उसकी सोच आगे बढ़ी.
”सबके खाने-पीने का विशेष प्रबंध करके बड़ी हसरतों से मैं शाम को अपने पति दिनेश के साथ कोटा के लिए रवाना हुई और हम सुबह कोटा पहुंच गए. अपने परिवारीजन से मिलकर मैं बहुत खुश थी. अभी मिलना-जुलना चल ही रहा था, कि साइकिल की घंटी घनघनाते हुए डाकिया आ पहुंचा और मेरे नाम की चिट्ठी दे गया.
”ससुर जी की कमर में बल पड़ गया है, जल्दी आने को लिखा है. मैंने चिट्ठी पढ़ते हुए कहा, तो सभी आश्चर्यचकित भी हो गए और हमारे जल्दी जाने के दुःख से दुःखी भी.” अभी भी वह उस दुःख से दुःखी थी.
”अरे, यह चिट्ठी तो हमारे घर से निकलने से पहले पोस्ट की गई है!” चिट्ठी निकलने की तारीख देखकर दिनेश के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा था.
”उसी दिन शाम को हम वापसी के लिए निकल पड़े थे.” उस मंजर को याद कर उस समय भी उसके चेहरे की उदासी नमूदार थी.
”बचपन से ही साइकिल पर आते हुए डाकिये को चिट्ठी पहुंचाते हुए देखा था और उस दिन के बाद भी कितनी चिट्ठियां आती-जाती रहीं, किसको याद हैं! पर उस दिन की चिट्ठी को भुलाना मुश्किल है!” उसकी उदासी के बादल अभी भी नहीं छंटे थे.
”कहां खो गईं विनीता, घर नहीं चलना है क्या?” शेफाली की बात से विनीता की तंद्रा टूटी.
”अब हमारे बेटे की भी तो शादी होने वाली है, ऐसी कारगुजारियां हमसे न होने पाएं, दिनेश को याद दिलाना होगा.” सोचते हुए विनीता सखियों के साथ घर को चल पड़ी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244