न जाने कितने तूफ़ां यहाँ से गुजर गए
मरहम तेरा क्या करूँ घाव सारे भर गए
डेरा खाली हो गया दर्द सारे डर गए
मझधार में छोंड़ दिया डूबने के लिए
लहरें साथ दे गयीं दरिया पार कर गए
चाहते थे कि हवेली वीरान हो जाये
न जाने कितने तूफ़ां यहाँ से गुजर गए
हमे मालूम था जलजला आएगा एक दिन
देख जरा बरसात में हम और निखर गए
जो दिया है दूसरों को वही तो मिला तुझे
क्या करूँ जो तेरे अरमान आज बिखर गए
ये वक्त है कहा था बदल जएगा एक दिन
बड़ा गुमां था उस दिन और वो मुकर गए
इस (राज) में अब रास्ते बदल लिए मैंने
अतीत दिखाने वाले पता नही किधर गए
— राजकुमार तिवारी ‘राज’