सामाजिक

वाह री आजकल की माँ

आज एक न्यूज़ पढ़ी, मिस वर्ल्ड प्रियंका चोपड़ा सरोगेसी की मदद से माँ बनी। वाह री आजकल की माँ, न पेट बढ़ा, न स्तन फूला, न दर्द सहा, न बच्चे की आहट महसूस की, न भीतर ममता जगी बैठे बिठाए माँ बन गई। सौरी बनी कहाँ सिर्फ़ कहलाएगी। वाह बहुत अच्छी बात है। माँ बनना ईश्वर की तरफ़ से स्त्रियों को दिया हुआ अनमोल उपहार है, सौभाग्य है। एक जीव को अपनी कोख में पालकर जन्म देना एक स्त्री के जीवन का सबसे बड़ा सपना और चाह होती है। गर्भ को अपने भीतर महसूस करना स्वर्ग के सुख से भी सुहाना एहसास होता है।
अपने ही खून से सिंचे पिंड में जीव का संचार होते ही नन्हें-नन्हें, हाथ-पैरों की छुअन से उठती गुदगुदी अपने अंदर महसूस करना एक माँ को आनंद विभोर कर देती है। महज़ अपने देह को कमनीय बनाए रखने की चाह में पैसों के दम पर इस अलौकिक सुख से कोई महिला कैसे वंचित रह सकती है। जिनके नसीब में ये सुख नहीं होता उनसे पूछिए, अपनी कोख में अपने अंश को पालना एक स्त्री के लिए कितने बड़े सौभाग्य की बात होती है।
अगर कोई दंपत्ति शारीरिक रुप से सक्षम है फिर भी किसी गैर की कोख का सहारा लेकर माँ-बाप बनते है तो लानत है। करियर, स्टेटस और फ़िगर को संभालने के चक्कर में बच्चे से अपना हक छीनना सच में गलत बात है। माँ-बाप का अपने बच्चे से भावनात्मक रिश्ता तभी जुड़ता है जब नौ महीने उस एहसास से जुड़े रहें। किसी और की कोख से पैदा हुए जीव पर वो भाव, वो एहसास कभी नहीं आते, जो नौ महीने अपने अंदर पाले हुए पिंड को छूकर आता है। शायद इसलिए इन जैसे माँ-बाप की औलाद इनकी इज्जत नहीं करती है। क्यूँकि ये ना पैदा करने में अपना खून देना चाहती है, न दर्द सहना चाहती है और ना पैदा होने के बाद अपना दूध पिलाना चाहती है। इनकी बॉडी ना ख़राब हो जाये उसी से मतलब होता है।
स्पर्म और एग देने मात्र से बाप कहलाने का हक या माँ कहलाने का अधिकार किसी को कैसे मिल जाता। 9 महीने का बलिदान जो एक मां शारीरिक रूप से कष्ट सहकर देती है तब वह माँ कहलाने योग्य होती है। और एक पति जब इमोशनली 9 महीने अपनी पत्नी की पीड़ा को समझता है, उसके साथ-साथ हर कष्ट महसूस करता है तब वह बाप कहलाने योग्य होता है। मुझे तरस आता है इन बच्चों पर कि यदि बड़े होने पर कोई उनको नाजायज़ कह दे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सरोगेसी तकनीक उन दंपत्तियों के लिए होती है जो बच्चे पैदा करनें में सक्षम नहीं होते। उन महिलाओं के लिए है जिसके भाल पर बांझ का ठप्पा लग जाता है। ऐसी परिस्थिति में एक ऑप्शन की तरह इस्तेमाल करने की बजाय आजकल सरोगेसी को बिज़नेस बना दिया है। पैसों के दम पर अब एहसास भी बिकने लगे है।
सरोगेसी तकनीक के सहारे मां बननी वाली प्रियंका अकेली नहीं है। इससे पहले बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रीति जिंटा, शिल्पा शेट्टी, शाहरुख खान, आमिर खान, करण जौहर, एकता कपूर और तुषार कपूर जैसे कई सितारे सरोगेसी की मदद ले चुके है।
भारत में सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकने के लिए तमाम नियम तय किए गए है। ज्यादातर गरीब महिलाएं आर्थिक दिक्कतों के चलते सरोगेट मदर बनती थीं। सरकार की तरफ से इस तरह की कॉमर्शियल सरोगेसी पर अब लगाम दी गई है। 2019 में ही कॉमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाया गया था। जिसके बाद सिर्फ मदद करने के लिए ही सरोगेसी का विकल्प खुला रह गया है। कॉमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने के साथ ही नए बिल में अल्ट्रस्टिक सरोगेसी को लेकर भी नियम-कायदों को सख्त कर दिया गया था।
पर नियमों की ऐसी-तैसी करते आज बच्चे पैदा करने की झंझट से छुटकारा पाने के लिए लोग सरोगेसी का सहारा ले रहे हैं। और गरीब और जरूरतमंद लड़कियां और औरतें पैसे कमाने का शोर्टकट अपनाते सरोगेट मदर बनने के लिए तैयार हो जाती है। माँ बनने की प्रक्रिया भले कष्टदायक होती है, पर उस अवर्णनीय एहसास का भी एक मजा होता है। माँ कहलाने से बेहतर है माँ बनकर देखें इस सुख के आगे दुनिया का हर सुख बेमानी है।
— भावना ठाकर ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर