कहानी

इंतेज़ार

कई दशकों के बाद श्रेया को सहारनपुर जाना पड़ा , रीना ने फ़ोन पर बताया, भाई साहब की तबियत बहुत खराब चल रही है आ जाइये । उम्र भी हो रही थी उनकी, इसलिए प्रोग्राम बनाया और चल पड़ी  पहुचते ही , शहर की हर पुरानी चीजो को नजरे ढूंढ रही थी, पर लग रहा था, सबकुछ बदल गया है ।
नौकरी के कारण श्रेया बहुत व्यस्त रही, फिर अनिल को भी इन वर्षों में अकेले सम्हाला, मैके से ही अधिकतर लोग मिलने आ जाया करते थे । एक तलाकशुदा नारी वैसे भी किसी से ज्यादा मिलना नही चाहती । अब रिटायरमेंट के बाद समय मिला, बेटे को भी विदेश मे नौकरी मिल गयी ।
आज फिर अपने घर पहुँचकर भाई साहब से मिली, बहुत अधिक हालात खराब थी, किसी तरह पहचान सके । उनके पास एक और सज्जन बैठे थे, श्रेया को देखते रहे पर वो पहचान नही पायी । बाद में रीना से पूछा,” बहू , ये जो साथ में बैठे थे उन्हें मैंने नही पहचाना, बहुत ध्यान से मुझे देख रहे थे ” ।
“अरे, आप जानती होंगी, पापा के कॉलेज के दोस्त हैं, श्याम काका ” ।
श्रेया के कानों में घंटिया बजने लगी, दिल के तार झनझना उठे, 45 वर्षो बाद एक मधुर नाम,  बहुत कुछ पलों को,  परदों से बाहर करने को बेताब था । फिर से इस उम्र में भी शर्माते हुए, वहां पहुची, अब उनकी बारी थी । श्याम जी ने उत्सुकतावश कहा,” आप पहचान नही पायी, पर देखिए एक लंबे अंतराल के बाद भी, मैंने पहचान लिया ” ।
उनके जाने के बाद भी वो अतीत में खोई रही, कॉलेज में सालभर का साथ था,  एक दिन भी मिले बिना नही रहते । अब उसको अच्छी सरकारी नौकरी लग गयी, मिलना कम हो गया, फिर किसी तरह एक दिन कहीं मिलने का प्लान बनाया, आफिस में कुछ काम आ जाने के कारण  कुछ देर से पहुची, एक घंटे इंतेज़ार किया, वो नही आये, आज तक उसके  दिल के कोने में एक प्रश्न कौंधता रहा, वो क्यों नही आये………..। कोई औचित्य तो नही है, फिर भी दिल इस बात का उत्तर उनसे मांगता रहा ………।
दूसरे दिन अचानक वो उसे मॉर्निंग वॉक के समय मिल गये, दिल बेकाबू हो रहा था, सीधे पूछ बैठी, “उस दिन क्यों नही आये” ? उनका जवाब था ” मैं तो समय से आधे घंटे पहले पहुच कर 1 घंटे तक इंतेज़ार करता रहा, फिर मायूस होकर घर पहुचा । घर में मेरा इंतेज़ार मेरा आर्मी का अपॉइंटमेंट लेटर कर रहा था , और मुझे दूसरे दिन निकलना पड़ा, उसके बाद बहुत कोशिश की तुमसे मिलने की, पर असमर्थ रहा  । ” वे बहुत देर पुराने एक एक पल को याद करते रहे और फिर दोनो के मन में शांति थी, कहीं कोई शिकवे गिले नही थे ।
दूसरे दिन घर मे सबसे बिदा लेकर श्रेया अपने शहर की ओर चल पड़ी ।

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर