कहानी

रिश्तों में बदलाव

मंदिर में गणेश जी की आरती गाते हुए भगवती देवी बहुत खुश नजर आ रही थी । वहां पर खड़ी सभी सखियो ने पूछा क्या बात है दीदी ?आज बहुत खुश नजर आ रही हो ?तब भगवती देवी बोली मेरा बेटा महेश मुझे लेने आ रहा है । बहू को बच्चा होने वाला है । मैं अमेरिका जा रही हूं ।अब बाकी की जिंदगी अपने नाती पोतों के साथ आराम से बिताउंगी । उनके नन्हे बालपन में अपना बचपन फिर से जी लुंगी । भगवती देवी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था । भगवती देवी ने पूरी जिंदगी अकेले ही बिताई थी जब महेश 3 साल का था तभी उसके पिता हार्ट अटैक में चल बसे थे ।
तब से उन्होंने अकेले ही बेटे को बड़ी मुश्किल से मेहनत मजदूरी करके पालपोस के पढाया लिखाया था ।महेश पढ़लिखकर विदेश में काम करने लगा तो भगवती देवी का जीवन फिर से एकाकी हो गया ।
10 दिन बाद बेटे महेश के साथ भगवती देवी विदेश पहुंच गई । बहू के साथ रहने का पहला सौभाग्य था ।
शादी करते ही बहू को बेटे के साथ विदा कर दिया था । भगवती देवी बहू को बहुत प्यार करती थी वो अपनी बहू को वो सब देना चाहती थी जिससे वो खुद महरूम रही थी । वो बहू की पसंद का खाना बनाकर उसको खिलाती और घर के काम की भी सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी।
कुछ दिन बाद घर मे नया मेहमान आया भगवती देवी को पोता हुआ …अब तो भगवती देवी की पूरी दुनियां अपने पोते के इर्दगिर्द ही समा गई । वो नहलाने -धुलाने से लेकर नवजात शिशु के सारे काम बड़े प्यार से करती।
नन्हे पोते “अवि “मैं उन्हें अपने बेटे महेश की झलक मिलती ।
 अवि अभी 4 महीने का हो गया था । वह जब भगवती देवी को देखकर मुस्कुराता तो वो निहाल हो जाती और अपने सारे दुख दर्द भूल जाती ।
 इन दिनों भगवती देवी काफी कमजोर हो गई थी ।और उन्हें सर्दी -जुकाम ने भी पकड़ रखा था ।
एक दिन बहू की सहेलियां आई हुई थी ।वह बहू के कमरे में चाय नाश्ता देने जा रही थी । तभी कुछ आवाजें उसके कानों में पड़ी भगवती देवी के पैर थम से गये ।
 बहू की एक सहेली कह रही थी “अरे मोना! तेरी सास आजकल कितनी कमजोर हो गई है, किसी दिन बिस्तर पकड़ लेगी तो तू बच्चे को और सास दोनों को कैसे संभालेगी ? तुम्हारी पूरी जिंदगी तो सास की सेवा में ही निकल जाएगी ,अभी तुम्हारे घूमने फिरने के दिन है, तू अपनी सास को गांव वापस क्यों नहीं भेज देती ,वहां वह इतने साल आराम से रही है बाकी की जिंदगी भी गुजार देंगी ।”
 तब बहू बोली क्या करूं !मैंने महेश को बोल दिया लेकिन वह बोलते हैं अब बुढ़ापे में मां हम लोगों के साथ ही रहेगी । अकेली गांव में क्या करेगी ?तभी दूसरी सहेली बोली “इस तरह तो तुम्हारी जिंदगी बंधन में बंध जाएगी ,सोचो !अगर ये एक बार बिस्तर पकड़ लेंगी तो फिर तुम इनको कहीं भी नहीं भेज सकोगी ,तुम्हारी डिलेवरी अच्छे से हो गयी है तो अब इनकी यहां क्या जरुरत है?”
 रामादेवी की आँखों मे आँशु आ गये वो चुपचाप अंदर चाय- नाश्ता रखकर वापस आ गई ।
भगवती देवी भी कुछ दिनों से  बहू के स्वभाव में परिवर्तन देख रही थी पर वो नही जानती थी कि” आजकल की बहुएँ सास को इतना बड़ा बोझ समझती हैं “। और उन्हें सिर्फ ‘मतलब’ के समय ही इस्तेमाल करती है । वो तो यहाँ अपना घर समझकर रहने आयी थी ,पर बहू की बातों से तो वो अंदर तक हिल गयी ।  अब तो बहू अवि को भी उसकी गोद में जाने नहीं देती थी ।
बोलती थी “आपको सर्दी- जुकाम हो रखा है मेरे बेटे को भी पकड़ लेगा ।”
एक दिन बहू बाथरूम में नहा रही थी । अवि सो रहा था अचानक वह उठा और बिस्तर से गिर कर रोने लगा ।भगवती देवी भाग कर उसको गोद में लिया और चुप कराने लगी ।तभी बहू बाथरुम से आई और जोर -जोर से चिल्लाने लगी ” आपको मना किया हुआ है ना अवि के पास जाने के लिए फिर भी आप मानती ही नहीं है ” ।
भगवती देवी बोली बहू ! अवि गिर गया था इसलिए मैंने इसे गोद में लिया है ।
हां !मैं सब समझ रही हूं ,आपने ही इसे गिराया होगा ताकि इसी बहाने इसको गोद में ले सको ।
बहू क्यों  बेकार की बातें कर रही हो ? में भला इसको क्यों गिराउंगी ?
 हां! अब तो मेरी सारी बातें आपको बेकार ही लगती है ।बहू चिल्लाने लगी। पूरा दिन बहू का बड़बड़ाना जारी था ।भगवती देवी को समझ में तो सब कुछ आ रहा था, लेकिन वह भी नियति के हाथों मजबूर थी रात को महेश आया तो बहू का मूड उखड़ा उखड़ा ही था ।रात को बहू के कमरे से जोर-जोर से आवाज नहीं आ रही थी ।भगवती देवी ने कान लगाकर सुना तो बहू कह रही थी ” अब या तो आपकी माँ इस घर में रहेगी या मैं रहूंगी ” दोनों में से किसी एक को आपको चुनना होगा ,आज तो उन्होंने हद ही कर दी मुझे चुड़ैल बोला “
 महेश बोला! मेरी मां कभी ऐसा बोल ही नहीं सकती। तुम ही सारा दिन उनसे झगड़ा करती रहती हो।
बहू चिल्लाई” हां हां मैं ही झगड़ालू हूं, आपको अपनी मां में क्यों कमी दिखेगी? बहूजोर जोर-जोर से रो रही थी ।
झगड़ा बढ़ता जा रहा था ।अचानक महेश बोला” ठीक है! मैं मां को पूछता हूं मेरी मां आज तक कभी झूठ नहीं बोली है अगर उन्होंने तुम्हें चुड़ैल बोला है तो मैं कल ही मेरा दोस्त इंडिया जा रहा है , मैं मां को उनके साथ वापस गाँव भेज दूंगा और अगर तू झूठ बोल रही है तो मैं तेरे साथ सारे रिश्ते खत्म कर लूंगा तुम रोज माँ को लेकर झगड़ा करती हो आज फैसला हो कर रहेगा ।
 तब बहू बोली ” हां !आपकी मां इतनी सच्ची है तो पूछ लो “
तभी भगवती देवी के कमरे का दरवाजा धड़ाम से खुला और महेश मां के पैर पकड़ कर बोला “माँ मुझे पता आप कभी झूठ नहीं बोलती!  क्या आपने आज मोना को चुड़ैल बोला ! भगवती देवी मुश्किल से बस इतना ही बोल पायी “हां बेटा !मैंने बोला था “
 महेश कुछ नहीं बोला बहू दरवाजे पे खड़ी मुस्कुरा रही थी ।
भगवती देवी जाने की तैयारी करने लगी ।महेश दूसरे दिन टिकट लेकर आ गया वह जानता था मां पहली बार झूठ बोली है लेकिन वह यह भी जानता था यहां रहेगी तो बेचारी घुट घुट के मर जाएगी । जाते समय भगवती देवी नन्हे  अवि को जी भरकर देख रही थी । उनकी आंखों में आंसू थे ।वो नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से बहू और बेटे के रिश्ते में दरार आये । उसका क्या है वो तो पूरी जिंदगी ही एकाकी संघर्ष में बिताई है । बाकी की जिंदगी भी काट लेगी ।
 महेश की आंखों में भी आंशू बह रहे थे । वह जानता था माँ ने उसे कितनी मुश्किलों से बड़ा किया था ।
वह माँ के पैर पकड़ कर बस इतना ही बोल पाया  माँ !मुझे माफ़ कर देना ।
— सीता देवी राठी

सीता देवी राठी

कूचबिहार पश्चिम बंगाल (असम मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित लेखिका)