गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जब भी धरती पर कभी कोई पयम्बर आया
चाँद बनके वो अमावस में भी नजर आया

प्यास को दरिया बुझा पाया न होगा बेशक
वरना क्यूँ चल के यहाँ तक ये समन्दर आया

जुल्म आकाओं के जब हद से बढ़ गये यारो
तब कहीं मुट्ठी में इन्सान के पत्थर आया

जैसे सीने में समन्दर के जलजला उट्ठे
खून आँखों में गरीबों की उतर था आया

ताने सुन सुन के वो वापस न क्यूँ चला जाए
सुबह का भूला जो कोई लौट कभी घर आया

मैं मनाता ही रहा और वो रुका ही नहीं
‘शान्त’ हिस्से में मेरे खूब मुकद्दर आया

— देवकी नन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ