कहानी

अंतर्मन

चीनू घर आई तो अलका ने राहत की सांस ली।
वह किचन से बाहर लॉबी में आकर खड़ी हो गई। चीनू उसकी और देखे बिना अपने कमरे में चली गई। सुरेंद्र भी अब अंदर आ गए थे। काफी थके हुए दिख रहे थे। अलका ने पानी दिया तो पूरा गिलास पीकर उन्होंने सांस लिया। फिर कुर्सी पर बैठ गए। अलका भी पास ही खड़ी थी लेकिन बोली कुछ नहीं। शब्द मन में आते लेकिन मुंह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। इसलिए अलका चुपचाप दूसरी कुर्सी पर बैठ गई। “तुम्हारी चीनू से बात हुई”?
थोड़ी देर बाद उन्होंने पूछा। अलका ने गर्दन हिलाकर मना कर दिया। ” मैं बात करता हूं”। कहकर उठे और चीनू के कमरे की ओर बढ़ गए। बाहर आए तो चीनू उनके साथ थी। उसने अलका की ओर देखा और कुर्सी पर बैठ गई। सिर डायनिंग टेबल पर रखा और आंखे बंद कर ली। उसे देखकर अलका की आंखे नम हो गई। चीनू बिल्कुल ऐसी ही लग रही थी जैसे बचपन में दिखती थी। कुछ गलती होने पर ऐसे ही सिर झुकाकर आंखें बंद कर लेती थी और अलका को उस पर प्यार आ जाता। उसे अपने सीने से लगा लेती। अलका फिर से किचन की ओर बढ़ी। सुरेंद्र नहाने के लिए बाथरूम में जा चुके थे। चीनू को कुछ बोलना अभी उचित नहीं था। ” मां तुम तो नहीं सोच रही होगी कि मैं जेल जाने से बच भी सकती हूं।” चीनू की तीखी आवाज़ सुनकर अलका ने पीछे पलटकर देखा। चीनू का चेहरा गुस्से में लाल था। उसकी बात का जवाब दिए बिना ही वह फिर से किचन की ओर बढ़ गई। ” मेरी बात का जवाब दिए बिना क्यूं जा रही हो?” उसका स्वर और भी तीखा हो गया था। अलका ने पीछे मुड़कर देखा और बोली,” चीनू तुम जानती हो ऐसा नहीं है।” चीनू ने अब अपने मन की बात बोली,” फिर तुम क्यूं नहीं आई पुलिस स्टेशन मुझसे मिलने?”
सुरेंद्र नहाकर आ गए थे। अलका के बोलने से पहले ही वो बोल पड़े,” क्यूंकि मां वकील के पास थी। तुम्हारी रिहाई के कागज़ तैयार करवा रही थी। यदि आज कागज़ जमा नहीं होते तो शनिवार और रविवार दोनों दिन तुम्हे जेल में ही बिताने पड़ते।” चीनू चुपचाप पापा की बात सुन रही थी। उसके मुंह से अनायास बस यही निकला,”ओह”। वह बाथरूम की ओर जाते हुए बोली,” मैं नहाकर आती हूं।”
अलका ने सुरेंद्र के लिए खाना लगा दिया। चीनू  खाएगी या नहीं उसे भरोसा नहीं था। खाना खाकर सुरेंद्र अंदर कमरे में चले गए, आराम करने। अलका टीवी के चैनल बदलकर देखने लगी। कुछ देखने का मन नहीं था। मन में उथल पुथल मची थी, अपने घर में हुए एपिसोड को दिमाग से अलग नहीं कर पा रही थी। तभी चीनू बाहर आ गई, उसने अपने बाल धोए थे। चेहरे से तनावमुक्त दिख रही थी। ” कुछ खाने को हो तो दो”। उसने आदेशात्मक स्वर में अलका से कहा।
अलका ने खाना टेबल पर लाकर रखा तो चीनू का चेहरा खिल गया। उसकी पसंद की गोभी की सब्जी, भरवा भिंडी, खीरे का रायता और परांठा। “कितने दिन हो गए इतना अच्छा खाना देखे हुए” उसने कहना चाहा किंतु मुंह में टुकड़ा रखकर खुद को रोक लिया। अलका ने दूसरा परांठा लाकर उसकी प्लेट में रख दिया।तभी दरवाजे की घंटी बजी। अलका दरवाजे की ओर बढ़ गई। दरवाजा खोला तो सामने सोसाइटी के कुछ लोग खड़े थे। अलका ने उनका अभिवादन किया और आने का कारण जानना चाहा। तब तक सुरेंद्र भी बाहर आ चुके थे। दरवाजे की घंटी की आवाज़ से उनकी भी नींद खुल गई थी। सुरेंद्र ने सबको अंदर बुला लिया। सभी लोग सोफे पर बैठ गए। ” किस समस्या से जूझ रहे हो सुरेंद्र?”  गुप्ता जी ने सहानुभूति जताते हुए प्रश्न किया। “कुछ नहीं, सब ठीक ही है। चीनू के हॉस्टल में कोई समस्या हो गई थी इसलिए उसको कुछ दिनों के लिए घर लेकर आया हूं।” सुरेंद्र ने बात को टालते हुए कहा। अलका उठकर अंदर आ गई। चीनू दरवाजे से कान लगाकर सब सुन रही थी। अलका उसे अपने साथ अंदर ले जाना चाहती थी। उसका मन हुआ कि चीनू को सीने से लगाकर कहे ” तुम चिंता मत करो चीनू, अब घर आ गई हो ना, मम्मी पापा सब संभाल लेंगे।” चीनू की प्रतिक्रिया की कल्पना ने उसे मुंह नहीं खोलने दिया।
चीनू अलका को अंदर आते देखकर दूसरे कमरे में चली गई। सुरेंद्र ने बात को दूसरे विषय की ओर मोड़ दिया इसलिए वे लोग जल्दी ही उठकर चले गए। सुरेंद्र अंदर आए तो चीनू कमरे से फिर बाहर आ गई, तपाक से बोली,” पापा इन लोगों को मुंह लगाने की क्या जरूरत थी? किसी को क्या मतलब है हमारी जिंदगी से? क्या इनको बताए बिना हम कुछ नहीं कर सकते हैं ?”  चीनू बोलती जा रही थी और अलका तथा सुरेंद्र दोनों ही चुप थे। उसके चुप होते ही सुरेंद्र ने उसे समझाते हुए कहा,” चीनू हम एक समाज में रहते हैं। जब हम कुछ अच्छा करते हैं तो यही समाज हमारी प्रशंशा करता है और जब हमसे कुछ गलती हो जाती है तो हमसे प्रश्न भी पूछता है। हमें जवाब देना पड़ता है।” चीनू पापा की बात से सहमत नहीं थी। उसका गुस्सा अब भी शांत नहीं हुआ था।” तो आप भी मुझे ही ग़लत मानते हैं ?” उसने सुरेंद्र से प्रश्न किया। “मेरा मतलब यह नहीं था।
मुझे मेरी बेटी जो बताएगी, वही मेरे लिए सच होगा। अगर तुम खुद को ग़लत नहीं मानती हो तो मैं भी नहीं मानूंगा ?” सुरेंद्र बात बढ़ाना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने टीवी चला लिया और समाचार देखने लगे। चीनू को और भी गुस्सा आ गया ” जरूर मां ने ही आपको उल्टा सीधा बताया होगा मेरे बारे में।” कहकर वह पैर पटकती हुई अपने कमरे की ओर बढ़ गई। अलका उसकी बात सुनकर तिलमिला उठी लेकिन उसकी मनस्थिति के बारे में सोचकर इस बार भी चुप ही रही।
थोड़ी देर टीवी देखने के बाद सुरेंद्र सोने चले गए। अलका भी रसोई का काम खत्म करके बेडरूम में आ गई। काफी देर तक नींद नहीं आई। मन बार बार चीनू के बारे में सोचने लगता। कभी चीनू एक नासमझ बच्ची की तरह नज़र आती कभी एक बिगड़ैल आधुनिक युवती। अलका खुद को विश्वास नहीं दिला पा रही थी कि चीनू अभी भी उसकी प्यारी गुड़िया ही है जिसे मन्नतों से उसने अपनी गोद में पाया था। यही सब सोचते सोचते अलका को नींद आ गई।
अगले दिन, आदतन अलका जल्दी उठ गई। चीनू के कमरे में गई तो वह सो रही थी। अलका थोड़ी देर खड़ी होकर उसे निहारती रही। सोते हुए चीनू एक अनजान बच्ची की तरह नज़र आ रही थी। जल्द ही अलका उसके कमरे से बाहर आ गई। चाय पीकर नाश्ता बनाया। सुरेंद्र भी तैयार होकर, नाश्ता करके ऑफिस के लिए निकल गए। सुरेंद्र के जाने के कुछ देर बाद ही दरवाजे की घंटी बजी। अलका ने दरवाजा खोला तो सामने मेघा खड़ी थी। मेघा, सुरेंद्र की छोटी बहन थी। शादी के बाद पति के साथ इसी शहर में रहती थी। मेघा ने अंदर आते ही सवाल किया,” चीनू कहां है भाभी? पता नहीं लोग क्या क्या बोल रहे हैं, मैं तो सुन सुन कर थक गई हूं। किसी को क्या जवाब दूं, समझ नहीं आता। इसीलिए यहां चली आई।”
“चीनू कहां है?” मेघा ने फिर पूछा। “चीनू अपने कमरे में सो रही है, अभी उठा देती हूं।” अलका ने उत्तर दिया। मेघा ने मुंह बनाया और लॉबी में कुर्सी पर आकर बैठ गई। अपने पति को फोन करके बताया कि वह भाई के घर पहुंच गई है। सुरेंद्र को भी फोन किया कि जल्दी घर पर आ जाए, फिर उसे छोड़ने भी जाना है। अलका ने चाय नाश्ते के लिए पूछा तो बोली,” चाय नाश्ता तो कर चुकी हूं बस खाना ही खा लूंगी।”
खाना ख़त्म हुआ तब तक सुरेंद्र भी आ गए थे। मेघा भाई से बातें करने लगी तो अलका चीनू के कमरे की ओर बढ़ी। चीनू मोबाइल में कुछ टाइप कर रही थी। ” चीनू, मेघा बुआ आईं हैं तुमसे मिलने। उन्हें जल्दी ही वापस भी जाना है। पापा भी आ गए हैं, ऑफिस से जल्दी। बाहर आकर उनसे मिल लो।” चीनू ने सर झुकाए हुए ही जवाब दिया,” आती हूं।” अलका भी मेघा और सुरेंद्र के पास ही बैठ गई। चीनू ने आकर मेघा को नमस्ते किया और वापस जाने के लिए मुड़ी। “ऐसा कौन सा महत्वपूर्ण काम कर रही हो चीनू ? कबसे आकर बैठी हूं, तुम शक्ल दिखाकर फिर वापस चल दी।” मेघा ने भाई की ओर देखते हुए कहा। “ऑफिस का कुछ जरूरी काम है बुआ, वही ख़त्म कर रही थी।” कहकर चीनू पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
“सुना है, थाने जाकर आई हो। ऐसा क्या कर दिया था तुमने ?” मेघा ने व्यंग्यात्मक लहजे में मेघा से सवाल किया। ” हां बुआ, सोचा पुलिस स्टेशन भी देख लेना चाहिए, बस शौंक पूरा हो गया।” चीनू ने भी उसी लहजे में जवाब दिया।,” भले घर की लड़कियों को ऐसे शौंक नहीं पालने चाहिए जिससे घर की बदनामी हो।” मेघा, चीनू पर व्यंग्य कसे जा रही थी। अब चीनू भी गुस्से से भर गई। उसने कटाक्ष किया,” यह बात आप कह रही हो बुआ? आप भूल गई कैसे आपके कारण पापा और दादाजी को आपकी ससुराल वालों से माफी मांगनी पड़ी थी।” सुरेंद्र ने चीनू को डांट दिया,” बुआ से ऐसे बात करते हैं, चीनू? वो तुमसे मिलने आई और तुम उनके अतीत पर कीचड उछाल रही हो।” अब तो मेघा और भी बिफर पड़ी,” भैया कितनी मुंहजोर हो गई है आपकी लाडली। बड़े छोटे का लिहाज, लाज शर्म, सब भूल गई है।” चीनू अब तिलमिला उठी,” किसने आपको बुलाया मुझसे मिलने? बेहतर होता आप नहीं आती। मेरा दिमाग खराब कर दिया है आपकी बातों ने।” सुरेंद्र अपने ऊपर काबू नहीं रख पाए और चीनू को थप्पड़ मारने के लिए उनका हाथ उठ गया। अलका ने दोनों के बीच में खड़े होकर उनके हाथ को पकड़ लिया।,” मारो पापा रुक क्यों गए, मार ही दो ना, आपकी बदनामी जो करवा दी है मैंने।” चीनू अपमान से तिलमिला उठी।,” अब बस, चीनू। पापा को एक शब्द भी तुम नहीं बोलेगी। तीन दिन से उनकी जो हालत है, तुम नहीं जानती हो। कैसे तुम्हे वापिस लाए हैं, मै जानती हूं।” चीनू की आंखों से टप टप आंसु बह रहे थे लेकिन मुंह बंद था। उसने ना विरोध किया ना तर्क दिया ना कानों पर हाथ रखा बस चुपचाप अलका की बात सुनी और रो दी।
” चीनू मेघा से माफी मांगो।” सुरेंद्र का आदेशात्मक स्वर गूंजा। “मैं माफी नहीं मांगूंगी इनसे।” चीनू ने रोते रोते ही जवाब दिया। मेघा ने इस बार अलका के ऊपर व्यंग्य कसा।” बचपन से डांटा होता तो आज इतनी हिम्मत नहीं होती इसकी।” सुरेंद्र ने मेघा को चलने का इशारा किया। अलका ने हाथ जोड़कर कहा,” मेघा, चीनू की तरफ से मैं माफी मांगती हूं।” मेघा ने मुंह बनाया, चीनू की और गुस्से से देखा और चली गई। अलका ने चीनू को चुप नहीं कराया, उसे वहीं छोड़कर काम में व्यस्त हो गई। चीनू रसोई में आईं,” मां थोड़ा पानी मिलेगा?” आंसु पोंछते हुए उसने पूछा। अलका ने गिलास में पानी भरकर उसके सामने रख दिया। ” मेघा बुआ ने एक बात तो सही कही है, आप डांटते रहते तो मैं घर से जाने की हिम्मत नहीं कर पाती और सब ठीक रहता।” पानी पीकर चीनू बोली। अलका भी इस बार चुप नहीं रही,” चीनू तुम किसी की बात नहीं सुनती थी तब,मेरी तो बिल्कुल नहीं। मेरे डांटने से यही होता कि तुम मेरे ऊपर चिल्लाती और गुस्से से घर छोड़कर जाती। तुम्हारी दोस्त ने तुम्हारा दिमाग जो फेर रखा था।” अलका बात करना चाहती थी फिर से बोली,” मां एक बार रोकती तो सही, मैं रुक जाती। तुम्हारी डांट अब भी असर करती है। पर तुम तो कुछ कहती ही नहीं थी।” अलका ने नम आंखों से चीनू की ओर देखा।” अच्छा बताओ हुआ क्या था?” अलका ने प्यार से पूछा तो चीनू आकर उसके सीने से लिपट गई। ” गीतू ने मुझसे झूठ बोला था मां। उसका एक शादीशुदा आदमी से अफेयर था। उस आदमी के साथ वो गायब हो गई। उसकी पत्नी ने थाने में शिकायत दर्ज कराई तो पुलिस मुझे साथ ले गई।” अलका यह सब सुनकर कुर्सी पर बैठ गई। चीनू ने नीचे बैठकर उसकी गोद में सिर रख दिया। ” अभी कहां है वो तुम्हारी दोस्त?” उसने बातचीत जारी रखी। चीनू ने सिर उठाकर जवाब दिया,” अपने पापा के घर। उस आदमी ने पुलिस को झूठा बयान दिया कि वो जबरदस्ती उसके पीछे पड़ी थी, उनका कोई अफेयर नहीं था।” अलका सुनकर हतप्रभ थी,” शुक्र है, अपने घर में है।” उसने लंबी सांस लेते हुए कहा। “अब कहीं मत जाने देना मुझे, डांटकर रोक देना।” चीनू ने अलका के गले में बांहे डालकर कहा। ” मैं चाहती थी तुम सही और ग़लत में अंतर करना सीख लो। मां की डांट की कीमत पहचान लो, बस।” अलका ने उसके बाल सहलाते हुए कहा। आज उसका अंतर्मन आह्लाद कर रहा था।
— अर्चना त्यागी 

अर्चना त्यागी

जन्म स्थान - मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश वर्तमान पता- 51, सरदार क्लब स्कीम, चंद्रा इंपीरियल के पीछे, जोधपुर राजस्थान संपर्क - 9461286131 ई मेल- tyagiarchana31@gmail.com पिता का नाम - श्री विद्यानंद विद्यार्थी माता का नाम श्रीमति रामेश्वरी देवी। पति का नाम - श्री रजनीश कुमार शिक्षा - M.Sc. M.Ed. पुरस्कार - राजस्थान महिला रत्न, वूमेन ऑफ ऑनर अवॉर्ड, साहित्य गौरव, साहित्यश्री, बेस्ट टीचर, बेस्ट कॉर्डिनेटर, बेस्ट मंच संचालक एवम् अन्य साहित्यिक पुरस्कार । विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा, बाल प्रहरी संस्थान अल्मोड़ा द्वारा, अनुराधा प्रकाशन द्वारा, प्राची पब्लिकेशन द्वारा, नवीन कदम साहित्य द्वारा, श्रियम न्यूज़ नेटवर्क , मानस काव्य सुमन, हिंदी साहित्य संग्रह,साहित्य रेखा, मानस कविता समूह तथा अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। प्रकाशित कृति - "सपने में आना मां " (शॉपिजन प्रकाशन) "अनवरत" लघु कथा संकलन (प्राची पब्लिकेशन), "काव्य अमृत", "कथा संचय" तथा "और मानवता जीत गई" (अनुराधा प्रकाशन) प्रकाशन - विभिन्न समाचार पत्रों जैसे अमर उजाला, दैनिक भास्कर, दैनिक हरिभूमि,प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका,पंजाब केसरी, दैनिक ट्रिब्यून, संगिनी मासिक पत्रिका,उत्तरांचल दीप पत्रिका, सेतू मासिक पत्रिका, ग्लोबल हेराल्ड, दैनिक नवज्योति , दैनिक लोकोत्तर, इंदौर समाचार,उत्तरांचल दीप पत्रिका, दैनिक निर्दलीय, टाबर टोली, साप्ताहिक अकोदिया सम्राट, दैनिक संपर्क क्रांति, दैनिक युग जागरण, दैनिक घटती घटना, दैनिक प्रवासी संदेश, वूमेन एक्सप्रेस, निर्झर टाइम्स, दिन प्रतिदिन, सबूरी टाइम्स, दैनिक निर्दलीय, जय विजय पत्रिका, बच्चों का देश, साहित्य सुषमा, मानवी पत्रिका, जयदीप पत्रिका, नव किरण मासिक पत्रिका, प दैनिक दिशेरा,कोल फील्ड मिरर, दैनिक आज, दैनिक किरण दूत,, संडे रिपोर्टर, माही संदेश पत्रिका, संगम सवेरा, आदि पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। "दिल्ली प्रेस" की विभिन्न पत्रिकाओं के लिए भी लेखन जारी है। रुचियां - पठन पाठन, लेखन, एवम् सभी प्रकार के रचनात्मक कार्य। संप्रति - रसायन विज्ञान व्याख्याता एवम् कैरियर परामर्शदाता।