कविता

तेरी बेटी हूं मां

तेरी बेटी हूं मां
मुझे पराया धन ना कहो

तेरा घरबार संवारू मां
चुन-चुन कर फूलों से सजाऊं मां
पराया धन कहकर इस फूल को मां मुरझाया ना करो!

बुढ़ापे की लाठी बन मां
तुझे चार धाम की यात्रा कराऊंगी
तेरी बेटी हूं मां
इस बेटी का दिल दु:खता है
मुझे पराया धन ना कहो।

आप भी! एक बेटी हो मां!
एक बेटी होकर फिर क्यों भूल गई? मां!
क्यों न समझ पाई मेरे मन को

तेरी बेटी हूं_ मां तेरी बेटी हूं
मुझे पराया धन ना कहो।

— चेतना चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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