सामाजिक

बुजुर्गों की सेवा का फ़ल

गोंदिया – भारत आदि-अनादि काल से ही संस्कारों की खान रहा है। यहां की मिट्टी में ही गॉड गिफ्टेड संस्कारों की ऐसी अदृश्य शक्ति समाई हुई है कि मानवजन्म से ही संस्कारों की प्रतिभा मानवीय जीवों में समाहित हो जाती है इसमें कोई दो राय नहीं है!! परंतु जीव की उम्र बढ़ने के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति की ललक अनेक अपवाद स्वरूपी मनीषियों में समाहित हो जाती है,जो बड़े बुजुर्गों का सम्मान तो नहीं परंतु अनादर करने पर उतारू हो जाते हैं ? जिससे समाज में यह दूषित भावना पनपने का संदेह बना रहता है। इसलिए हम आज के युग में देख रहे हैं कि शासन-प्रशासन सामाजिक संस्थाएं, बुद्धिजीवी वर्ग, बड़े बुजुर्गों का सम्मान सुनिश्चित करने हमारी हजारों वर्ष पुरानी परंपरा,धरोहर और वैचारिक शक्तिबल को संरक्षित, सुरक्षित करने के लिए अनेक वेबिनार, कार्यक्रम, अभियान चलाए जा रहे हैं ।
साथियों बात अगर हम वर्तमान परिपेक्ष्य की करें तो हमारे बड़े बुजुर्गों का ध्यान रखनें की जवाबदारी व जिम्मेदारी युवा वर्ग की अधिक है जिन्हें भारतमाता की गोद से मिले संस्कारों को प्राथमिकता से सजग होकर रेखांकित करना अनिवार्य है। बड़े बुजुर्गों की सेवा का उन्हें मान-सम्मान देकर अत्यधिक पुण्य कमाना है। क्योंकि जब कोई बुजुर्ग निशब्द तुम्हारा तुम्हारे झुके सिर पर अपनी कंपकंपाती उंगलियां फिरा दे तो समझो वरदान ख़ुशी और आशीर्वाद एकसाथ तुम्हें यूं ही मिल गया क्योंकि बड़े बुजुर्गों में ईश्वर अल्लाह का एक रूप समाहित होता है।
साथियों बात अगर हम वरदान ख़ुशी और आशीर्वाद की करें तो वैश्विक स्तरपर भारत सबसे पुरानां आध्यात्मिकता में गहरीआस्था रखने वाला देश है यहां आध्यात्मिकता का विस्तार तेजी से हुआ है जो एक अच्छी बात है परंतु मेरा मानना है कि उसी तेजी के साथ मनीषियों की आस्था माता-पिता, बड़े बुजुर्गों के मान सम्मान सेवाभाव के प्रति अपेक्षाकृत कम होकर संकुचित होने के संकेत हाल के पश्चात संस्कृति की घुसपैठ के चलते मिल रहे हैं।
कई परिवार टूट रहेहैं वृद्धाआश्रमों में बुजुर्गों की तादाद बढ़ रही है आखिर ऐसा क्यों ? मैंने अनेक ऐसे मनीषियों को भी देखा है जो अपने माता-पिता बड़े बुजुर्गों से तो अलग रहते हैं, उनकी सेवा खुशी का ध्यान नहीं परंतु आध्यात्मिकता क्षेत्र में उनके नामपर बहुत बड़े सेवा भावी होंनें और आस्था का डंका बजता है यह देख मुझे बहुत हैरानी होती है!!!
साथियों बात अगर हम ऐसे बड़े बुजुर्गों की करें जिनको अपनों ने ठुकराया है तो मैंने स्वयंम कुछ बुजुर्गों से बात की तो उनका बड़प्पन देखिए कि अपने दुख दर्द बांटने की अपेक्षा उन्होंने अपनों की तारीफ ही की!!! वाह क्या बात है!!! आप ईश्वर अल्लाह के तुल्य हैं कहकर अनायास ही मेरे हाथ उनके चरणों में झुक गए तो उनकी आंखों में आंसू आ गए।
साथियों ऐसे अनेक पीड़ित हर मेट्रोसिटी, शहर, गांव में हैं ऐसे किस्से हमें अपने शहरों में भी ज़रूर देखने को मिलते होंगे जिसे हम सब को मिलकर इस स्थिति को बदलना की ओर कदम बढ़ाना ही होगा।
साथियों बात अगर हम बड़े बुजुर्गों के वरदान खुशी और आशीर्वाद की करें तो मेरा मानना है कि इनकी आशीर्वाद वरदान इस सृष्टि में सबसे बड़ा है इसके तुल्य किसी आध्यात्मिक आस्था में आशीर्वाद वरदान नहीं होंगे बस हम मनीषियों को यह बात अपने हृदय व मस्तिष्क में फिट करनी होगी।
साथियों बात अगर हम नई पीढ़ी, युवकों की करें तो, बूढ़े व्यक्ति के पास स्मृतियां, जवान के पास कल्पनाएं हैं, यदि घर-घर दोनों का मेल बने तो कमाल हो जायेगा। धरती पर स्वर्ग उतर आयेगा!!! जबकि नई पीढ़ी को चाहिए माता-पिता के उत्तम गुणों के वारिस बनें, अपने बड़ों को मान दें, क्योंकि वृद्धों का जो वर्तमान है, वही युवाओं का भविष्य है। इसलिए यदि नई पीढ़ी अपने बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद वरदान लेंने, उनका देवताओं की तरह पूजन करने, मिलकर रहने, सहयोग करने की सोच अपना ले, तो घरों के अन्दर प्रेम, सद्भाव जाग जाएगा और धरती में स्वर्ग उतर आयेगा।
साथियों जरूरत है युवा-वर्ग माँ-बाप की अवहेलना न करे। बड़ों के प्रति सम्मान की भावना रहे। क्योंकि बूढ़ी आंखों में जब आंसू आते हैं, हृदय पर जब व्यंग बाण लगते हैं, शरीर काम नहीं करता और नींद आती नहीं तो ऐसे में व्यक्ति का जीना कठिन हो जाता है। वैसे भी बड़े-बुजुर्ग हमारी अमूल्य सम्पत्ति हैं। उनके पास अनुभवों का खजाना है, अतः उनके अनुभवों का लाभ उठाएं। कभी भूलकर भी उनसे अपशब्द न कहें। साथ ही अपने बच्चों को बड़ों के पास बैठने का अवसर दिया करें, क्योंकि उनके आशीर्वादों से बच्चे फलते-फूलते हैं। अन्य लोग स्वयं भी बुजुर्गों के पास दो मिनट बैठकर उनकी बात सुनें, उनका हाल-चाल पूछें।
जिस व्यक्ति के सिर पर माँ-बाप का साया है, वह धन्य है। घर में बड़े बुजुर्गों का होना बहुत सौभाग्य माना जाता है और माँ-बाप की सेवा करने वाली सन्तान श्रेष्ठ। बच्चे को माता-पिता से आशीर्वाद माँगना नहीं पड़ता, अपने आप हृदय से मिल जाता है और माँ-बाप के हृदय से निकले हुए इस आशीष की कोई समानता नहीं है।
बड़ी विडंबना का समय है पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव के कारण आज के युवा माँ-बाप को नमन-वन्दन करने में लजाते हैं,जब कि कोई बच्चा व युवा जब अपने माता-पिता, दादा-दादी अथवा सद्गुरु के चरणों में शीष झुकाता है, तो उनके दिल में आनन्द की हिलोर उठने लगती है और तेजरूपी प्रकाश की किरणें विनम्र् होते ही चरणों में झुके सुपुत्र, सदशिष्य के अन्दर प्रवेश कर जाती हैं। जिसके प्रतिफलस्वरूप उस युवा को आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है। ये चारों अनमोल उपहार किसी अन्य कीमत एवं किसी अन्य स्थान से प्राप्त नहीं हो सकते। इनका केन्द्र तो माता-पिता, वृद्धजन एवं गुरुजन ही हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बुजुर्गों की सेवा का फल बहुत मीठा हैं, जब कोई बुजुर्ग निशब्द तुम्हारे झुके सिर पर अपनी कंपकंपाती उंगलियां फ़िरा दें समझो वरदान ख़ुशी और आशीर्वाद एक साथ मिला!!! बड़े बुजुर्गों माता पिता की सेवा तुल्य कोई पुण्य नहीं जीवन का सुख इनके श्री चरणों में है।
— एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया