कविता

/ सोऊँगा नहीं मैं… /

पीड़ा थी मेरे सिर पर
नींद आती है कहाँ
स्मृति की रेखाएँ
घिसने लगी हैं दर्द को
मेरे दिल पर बार – बार
अभावग्रस्त बाल्य
कभी स्वर्णकाल नहीं रहा
फटे – चीथड़ों में
दीनता- हीनता – बेइज़्ज़ती
साथ – साथ चलने लगी थीं
अक्षरों को पकड़कर बैठा तो
प्रमाण पत्र – उपाधियाँ आने लगीं
अस्मिता का चेहरा
संविधान की छाया में
धीरे – धीरे मेरा हो गया
असमानता की इस दुनिया में
जाति जल बुन गयी
मेरा रहन – सहन, ठीक – ठ्याक
समान मंचासन
वह सहन नहीं कर पायी
मेरे दादे – परदादे की
पेशे को लेकर
हीनता की उस परंपरा पर जोर देते
हर जगह वह विष फूँकने लगी
नीचे स्तर का
साबित करने में अपनी चाल चलायी।

जातिदंश से बचना
साधारण बात नहीं
कई हमारे अस्मिता जन
उसके डंक का शिकार हो गये
कई इंसान श्रम के बल पर
स्वाभिमान से जीनेवाले
जातिगत – सांप्रदायिक रौब की चोट खाकर
अपने प्राण गँवाये
आघात, अन्याय, अत्याचार, अपमानों की
उस पीड़ा को, हजारों सालों से
हाशिये की जनता सहनते आये
कैसे भूलूँगा मैं! उपेक्षित जिंदगी हमारी,
खोखले समाज पर
अक्षरों का यह हथौड़ा प्रहार करता रहेगा
समसमाज की सुंदर कल्पना
इस दुनिया में रचता रहेगा।

— पैड़ाला रवीन्द्र नाथ ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।