कहानी

रिश्तों की डोर

अंततः वो समय आ ही गया जिसकी प्रतीक्षा रवि को थी।
फ़ोन पर साहित्यिक आयोजन से शुरू हुई बातचीत से यदा कदा चलने वाला सिलसिला कब अनजाने रिश्तों की डोर मजबूत करता चला गया कि पता ही न चला।
अधिकार से किए आग्रह को अब रवि के लिए टालना संभव नहीं था।
आज वो सीमा से मिलने जा रहा था। मन में ख्यालों का सिलसिला जारी था।
दोनों पहली बार आमने सामने मिले। सीमा ने आगे बढ़कर उसके पैर छूए ,तो रवि भावुक हो गया और अपना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में सीमा के सिर पर रख दिया।उसे उठाया और गले लगा लिया। मगर अपने आंसू पी गया।
सीमा रवि का हाथ थाम अंदर ले गई। उसके बेटे को भी शायद पता था। उसने बिना किसी संकोच मेरे पैर छुए। रवि ने उसे गोद में उठा लिया।
तब तक उसकी मकान मालकिन आ गई। सीमा ने बड़ा भाई कहकर परिचय कराया और रवि से बोली – भैया, आप हमारी मकान मालकिन आंटी हैं, मगर मेरी मां का दर्जा रखती हैं।
रवि ने उनके पैर छुए और बैठने के लिए बोला।
आंटी रुकी नहीं और जाते जाते खाने के लिए आ जाने को कह गईं।
हम तीनों खाने के लिए गए। वापसी में मुझे कुछ बात करने के लिए आंटी ने रोक लिया।
सीमा कमरे में चली गई।
पहले तो आंटी ने मुझे जी भरकर डांटा, फिर मुझसे जो कुछ कहा -उससे सचमुच रवि अपराध बोध से ग्रस्त हो गया।
रवि कुछ बोल ही न सका। कैसे बताता कि सीमा से वो पहली बार मिल रहा है।
बड़ी मुश्किल से क्षमा माँगकर सीमा के पास आ गया।
सीमा रवि को देखते ही समझ गई कि आंटी ने सब कुछ कह दिया।
रवि की आँखों से बहते आँसू उसकी पीड़ा का अहसास करा रहे थे।
सीमा भी रो पड़ी। रवि ने उसके आँसू पोंछे और  सांत्वना देते हुए पूछा- पहले तो तू ये बता कि आंटी ने जो कहा वो सच है।
हाँ भैया। सीमा ने हाँ में सिर हिलाया
मगर तूने ये सब मम्मी पापा और भाइयों से नहीं कहा?
सबको पता है, मगर……..?
बस अब तू सारी चिंता छोड़ और बता अब तू क्या चाहती है।
आप बताओ मुझे क्या करना चाहिए?
मेरा विचार मायने नहीं रखता। जो तू चाहती है,वो मायने रखता है।
मुझे नहीं पता कि ये सब जानने के बाद आप मेरे बारे में क्या सोचते हैं। मगर आप से पहली बार बात करते हुए ऐसा लगा था कि आप से कोई न कोई संबंध पूर्वजन्म का जरुर है।
फिर तूने अब तक कुछ बताया क्यों नहीं? क्या तुझे रिश्तों की डोर कमजोर लग रही थी।
ऐसा नहीं था भाई, पर मैं यह जरूर सोच रही थी कि जिसे देखा तक नहीं, उसे मिलने से पहले कहीं खो न दूं। ऊपर से डरती थी कि पता नहीं आप मेरे बारे में क्या सोचते। अब तो खुशियां भी डराने लगी हैं। जब पापा और भाइयों को सब जानने के बाद भी मेरा दृष्टिकोण सही नहीं लग रहा है, वे शायद सब कुछ ठीक हो जाने को लेकर आश्वस्त हैं। मगर मैं क्या करूं? सिर्फ अपने तक होता तो भी कोई बात नहीं थी। मगर अब मैं अपनी औलाद को खौफ के साए में नहीं रख सकती। जिससे रिश्ता जुड़ा,वो ही हैवान बन वेश्या बनाने पर आमादा हो ,तब आप बताइए, मैं क्या करती। कायरों की तरह ज़हर खाकर जान भी दे दूं, तब भी मेरे ही बच्चे का भविष्य अंधकारमय होगा। वो तो आंटी का खौफ है कि जब तक मैं यहां हूं किसी की हिम्मत नहीं हो रही।
एक लम्बी गहरी सांस लेकर सीमा बोलती जा रही थी -मुझे नहीं पता कि आप मुझे लेकर क्या सोचेंगे। मगर आपने पहली बार जब मुझे बहन कहकर पुकारा था, तो मैंने आपकी छवि में बड़े भाई का अक्स देखा ही नहीं महसूस भी किया, मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों है, परंतु मेरा आत्मविश्वास तभी मजबूत होता जा रहा है। अब मैं उस छवि पर आँच नहीं आने दे सकती। आप जिस ढंग से बातें करते रहे, रास्ता दिखाते रहे,बड़े भाई की तरह डाँटते रहे, समझाते रहे, हौसला देते रहे। उससे मुझे कितना आत्मविश्वास मिलता रहा, मैं बता नहीं सकता। भले आपको मैंने देखा नहीं था, पर जाने क्यों सुरक्षा का भाव महसूस होता रहा है। सच भैया मैं आपको खोना नहीं चाहती। सीमा के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
रवि ने उसके आँसू पोंछे और उसके सिर पर हाथ रखकर विश्वास दिलाते हुए बोला- पगली कौन छीन रहा है, मुझे। मैंनें सिर्फ कहने के लिए बहन नहीं कहा है। जरूरत पड़ेगी तो तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूं।बस अब सो जाओ।समझ लो तुम्हारे दुःख के दिन गये। अब तेरी ओर कोई आँख भी उठाने से पहले सौ बार सोचेगा। ये इस भाई का वादा है।
सीमा रवि से लिपटकर रो पड़ी। रवि ने उसे रोने दिया, ताकि उसकी पीड़ा कुछ कम हो सके।
काफी देर तक दोनों बातें करते रहे फ़िर सो गए।
सुबह नाश्ता करके रवि जाने को हुआ तो सीमा सिसक पड़ी।
ये पगली अब क्यों रो रही है, तूझे भरोसा नहीं है क्या? विश्वास करो बहन,जब तक तुझे न्याय नहीं दिला देता, तब तक तुझे मुँह नहीं दिखाऊँगा। रवि सीमा के पैरों में झुक गया।
सीमा ने रवि को उठाया और अपने बाँहों में भरकर बोली – जब आप जैसा भाई है मेरे साथ तो फिर मैं क्यों रोऊँगी भैया।
मुझे आप पर विश्वास है कि आप मुझे मेरी खुशियां जरुर लौटा देंगे।
सीमा के बेटे को दुलार कर रवि निकल पड़ा, रिश्तों की मजबूत डोर सीमा को आश्वस्त कर रही थी।

*सुधीर श्रीवास्तव

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