कविता

धैर्य

कब तक मेरे धैर्य की
परीक्षा का ये क्रम चलेगा,
मेरे सब्र का बांध आखिर
कब तक मजबूत रह सकेगा।
आखिर इसे भी एक दिन टूटना ही है
आज, कल या फिर आने वाले कल में।
क्योंकि हर चीज की एक सीमा होती है
और मेरे धैर्य की सीमा
अब सीमा पार कर रही है,
मेरे धैर्य की पतवार फिसल रही है
मुझे उलाहना देती कोस रही है।
कब तक यूं धैर्य संग खुद को मिटा पाओगे
किसी दिन तो विद्रोह पर उतर ही  आओगे।
तब वो विद्रोह आज ही क्यों नहीं?
हौसला क्यों नहीं करते
धैर्य की परीक्षा में भला
पास कब तक हो सकते हो?
यूं ही धैर्य पर धैर्य रखो हार जाओगे
कल खुद ही यकीन नहीं कर पाओगे
फिर भी कुछ नहीं कर पाओगे
धैर्य, धैर्य, धैर्य और सिर्फ धैर्य का
झुनझुना बजाते रहो जाओगे।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921