कविता

अभिलाषा

जीवन की अभिलाषाओं का
भला अंत कभी हुआ है?नहीं न
फिर भी अभिलाषाएं जागृति होती रहती हैं,
सारी अभिलाषाएं पूरी होंगी
ऐसा भी तो नहीं है।
फिर क्यों न हम कुछ ऐसा करें
जो मिसाल बने ने बने
मगर किसी के काम तो आये।
इसलिए मेरा इरादा है
जीवन में कुछ भले नहीं कर पायें,
जीवन के बाद ये शरीर तो किसी के काम आये।
वैसे भी मरने के बाद
इसे जलकर राख हो जाना है,
इसका अस्तित्व मिट ही जाना है।
तो क्यों न इस शरीर का
कुछ उपयोग ही किया जाये
क्या पता मेरे शरीर का कोई अंग
किसी को जीवन दान दे जाए,
जो जीते जी ने हो सका
क्या पाते मरने के बाद ही काम आ जाए।
शायद मेरे बाद ये शरीर न सही
शरीर का एक अंग कुछ और दिन
इस जहान में जिंदा रह जाये,
मरने के बाद कुछ दिन ही सही
मेरे होने का किसी एक तो
ये एहसास कराए
मेरी अभिलाषा को आयाम दिलाए,
और एक अभियान बन जाते।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921