कविता

अनुशासन

अनुशासन के नियम सीखना है तो
सीखो प्रकृति से
सीखो परिंदों से
सीखो पशुओं और जानवरों से
जो बिना बात नहीं मारते किसी को
अपने अंहकार में नहीं रौंदते किसी को
उतना ही लेते प्रकृति से
जितनी आवश्यकता हो जिंदगी की
मगर क्या कहें मानव को
जिसे कोई नियम रोकती नहीं
जिसे कोई अनुशासन बांधती नहीं
जिसने उसे जीवन दिया
उसी को नष्ट करते रहे
हवा पानी के मोल को समझते नहीं
अपनी तबाही की गाथा लिखते रहे
कहने को इंसान प्रकृति की अनुपम कृति है
मगर ज्ञान उसमें जरा नहीं
बैठते है जिस डाल पर
काटते हैं उसी को
जिस प्रकृति ने उसे जीवन ,अस्तित्व दिया
उसी प्रकृति को विनष्ट किया
अपने ही हाथों अपना विध्वंस किया
इस मानव को कोई तो रास्ता दिखाएं
नियम से चलना कोई तो सिखाएं
अनुशासन की महत्ता कोई तो समझाएं
जिससे वो अपना अस्तित्व बचाएं।

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P