भाषा-साहित्य

अनुस्वार का उपयोग

अधिकतर नये और कई धुरन्धर लेखक भी हिन्दी लिखते समय अनुस्वार (बिन्दी) लगाने में बहुत मनमानी करते हैं। वे इसे फालतू का चिह्न समझते हैं और इसे उपेक्षित करने में अपनी शान समझते हैं। वे ‘में’ को ‘मे’ और ‘नहीं’ को ‘नही’ इतने अधिकार से लिखते हैं कि उनके साहस पर आश्चर्य होता है। वे एकवचन और बहुवचन में भेदभाव नहीं करते, इसलिए ‘है’ और ‘हैं’ को एक दृष्टि से देखते हैं। ऐसे लेखकों की रचनाओं को सम्पादित करते समय सम्पादक को बहुत खीझ होती है।

 यह बात मान लेनी चाहिए कि अनुस्वार कोई अनावश्यक चिह्न नहीं है, बल्कि व्याकरण और भाषा की शुद्धता की दृष्टि से अति आवश्यक चिह्न है। इसलिए जहाँ भी आवश्यक हो, वहाँ अनुस्वार का उपयोग अवश्य करें। विशेष रूप से में, मैं, हैं, हां, नहीं, दोनों, करेंगे आदि ऐसे बहुप्रचलित शब्द हैं, जिनमें अनुस्वार का प्रयोग आवश्यक है।
कई लोग अनुस्वार की जगह आधा ‘न’ लिख देते हैं, जैसे अन्डा। यह गलत है। अनुस्वार की जगह आधा न केवल त वर्ग के अक्षरों (त, थ, द, ध) के साथ लिखा जा सकता है, जैसे- अन्त, मन्द, गन्ध आदि। इनको अंत, मंद और गंध भी लिखा जा सकता है। अंडा को यदि हम अनुस्वार के बिना लिखना चाहते हैं, तो उसे अण्डा लिखना चाहिए, यद्यपि इसकी आवश्यकता नहीं है, ‘अंडा’ भी शुद्ध है।

कई लोग अज्ञान के कारण अनुस्वार लगाने में गलती कर जाते हैं, जैसे वे करेंगे को करेगें लिखते हैं। यह भी गलत है। यदि वे शब्दों के उच्चारण पर ध्यान देे, तो ऐसी गलतियाँ नहीं होंगी। नागरी लिपि में उच्चारण और लेखन में जो एकरूपता है, उसका पूरा लाभ उठाना चाहिए, क्योंकि यहाँ अंग्रेजी की तरह वर्तनी नहीं रटी जाती।

— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com