इतिहास

राष्ट्रप्रेमी क्रांतिसूर्य वीर सावरकर

चरित्र उम्र

1. सावरकर जवान 25 साल
2. सावरकर अधेड़ उम्र के 72 साल
3. गांधीजी जवान 35 साल
4. गंधीजी अधेड़ उम्र के 75 साल
5. लोकमान्य तिलक 55 साल
6. श्याम कृष्ण वर्मा 35 साल
7. मदनलाल धींगड़ा 25 साल
8. लाला हरदयाल 25 साल
9. येसू वहिनी 35 साल
10. यमुना बाई 23 साल
11. डाक्टर वाधवाणी 50 साल
12. मैडम भीकाजी कामा 30 साल
13. जेलर सख्खर जेल 45 साल
14. जेलर अंदमान निकोबार जेल 50 साल
15. हेमू 20 साल
16. हेमू की माताजी 42 साल
17. जेल में – दो सिपाही 35 साल
18. ऑफिसर 45 साल
19. सुभाषचंद्र बोस 40 साल
20. जेल में – आठ कैदी

सीन नं 1 (एल.ई.डी.स्क्रीन पर)
(पर्दा खुलते ही सादा मंच दिखाई देता है। पीछे ब्लू कर्टेन लगा हुआ है। बीच में डाइस है। इस मंच पर सभी दृश्य अलग अलग जगह पर सिंबालिक रूप में दिखाए जा सकते है। मंच के बीच में एल.ई.डी. स्क्रीन लगा है। कुछ दृश्य इस स्क्रीन पर भी दिखाए जाएंगे और कुछ लाइव। साइक्लोरामा स्क्रीन पर टाइटल शुरू होते हैं। टाइटल चलते हुए नैपथ्य में गीत बज रहा है।)

छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी,
नए दौर में लिखेंगे हम मिलकर नई कहानी,
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी,
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी,

हर ज़र्रा है मोती आँख उठाकर देखो
मिट्टी में सोना है हाथ बढ़ाकर देखो
सोने कि ये गंगा चांदी की जमुना है,
चाहो तो पत्थर पे धान उगाकर देखो
नया खून है नई उमंगें, अब है नई जवानी
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी,
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी,
(सीन समाप्त)

सीन नं 2 (एल.ई.डी. स्क्रीन पर)
(एल.ई.डी. स्क्रीन पर ओम् शब्द विभिन्न दिशाओं में घूमता हुआ दिखाया जाता है। बैकग्राउंड में एकात्मता मंत्र चल रहा है।)
यं वैदिका मन्त्रदृशः पुराणा,
इन्द्रं यमं मातरिश्वानम् आहुः।
वेदन्तिनो निर्वचनीयम् एकं
यं ब्रह्मशब्देन विनिर्दिशन्ति।

शैवा यम् ईशं शिव इत्यवोचन ,
यं वैष्णवा विष्णुरिति स्तुवन्ति।
बुद्धस्तथाऽर्हन्निति बौद्धजैनाः
सत्-श्री-अकालेति च सिक्खसन्तः।

शास्तेति केचित् प्रकृतिः कुमारः
स्वामीति मातेति पितेति भक्त्या।
यं प्रार्थयन्ते जगदीशितारं
स एक एव प्रभुरद्वितीयः।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।

स्त्री सूत्रधार – प्राचीन काल में ऋषियों मुनियों ने जिसे इन्द्र, यम, मातरिश्वा अर्थात् वैदिका देवता कहकर
पुकारा। जिसे वेदान्ती ब्रह्म शब्द से निर्देश करते हैं। शैव जिसकी शिव और वैष्णव जिसकी
विष्णु कहकर स्तुति करते हैं। बौद्ध जिसे बुद्ध,जैन अर्हत् तथा सिख्ख जिसे सत् श्री अकाल
कहकर पुकारते हैं। जिस जगत् के स्वामी को कोई शास्ता, तो कोई प्रकृति, कोई कुमारस्वामी तो
कोई स्वामी, माता, पिता कहकर भक्तिपूर्वक प्रार्थना करते हैं, वह एक ही है। प्रभु अद्वितीय है।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।
(सीन समाप्त)

सीन नं 3 (स्क्रीन पर)
(अब एल.ई.डी.स्क्रीन पर अखंड भारत का चित्र दिखाया जाता है। उसके बाद बारी बारी से वीर सावरकर
और उनके परिवार के चित्र दिखाए जाते हैं। वीर सावरकर के आज़ादी के आंदोलन के भी चित्र दिखाए जाते
हैं।)
पुरूष सूत्रधार – दुनियाभर के लोग जानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे ज्यादा सांस्कृतिक, राजनैतिक,
सामरिक और मौजूदा दौर में आर्थिक हमले हुए हैं। यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, फ्रेंच,
सीरियन, पुर्तगाली, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल और अंग्रेज सभी हमलावरों ने भारतवर्ष
पर आक्रमण किया। अखंड भारत के कई टुकडे़ किए। हमारे वीर जाबाज़ों ने हर बार इनका
डटकर मुकाबला किया है। हमे गर्व होना चाहिए अपने इतिहास पर।
स्त्री सूत्रधार – इतिहास के बारे में असत्य जानकर हमारी मानसिकता में जो परिवर्तन आ गया है उससे हमें
बाहर आना होगा। सत्य को उजागर करना होगा।
पुरूष सूत्रधार – ‘‘अनादि मी आणि अनंत मी, अवघ्य मी भला,
मारिल रिपु जगतिं, असा कवण जन्मा।’’
वीर सावरकर भारत माता के ऐसे सपूत हैं जिन्होंने अपना सारा जीवन देश और देशवासियों
के उत्थान एवं कल्याण हेतु समर्पित कर दिया। जिनके विचारों और कार्यों से देश का मस्तक
ऊंचा हुआ है।
स्त्री सूत्रधार – राष्ट्रप्रेमी विनायक दामोदरपंत सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के
पास एक छोटे से गांव भागूर में हुआ था। उनकी माता का नाम राधाबाई था। उनके परिवार
में उनके दो भाई और एक बहन थे। बड़े भाई बाबाराव और छोटे भाई डा.नारायण सावरकर
और एक छोटी बहन मैनाताई भास्कर काळे।
पुरूष सूत्रधार – जब विनायक केवल नौ वर्ष के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया और 16 वर्ष के हुए
तो पिताजी गुज़र गए। उनके बड़े भाई गणेश उर्फ बाबाराव की पत्नी येसुवहिनी ने उनकी
देखभाल की। वे बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और कुशाग्र बुद्धि के थे। वे वक्तृत्व कला और
कविता लेखन में पारंगत थे। सावरकर भारतीय राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण राजनेताओं में
से एक थे। उन्होंने 17 वर्ष की उम्र में सन् 1900 में अपने जन्म स्थान भगूर गांव में ‘मित्र
मेळा’ नामक संगठन बनाया था। 1904 में उनका छात्र समूह ‘अभिनव भारत’ नामक संगठन में
परिवर्तित हो गया।
स्त्री सूत्रधार – सावरकर ने मार्च 1901 में यमुनाबाई से शादी की जब वे मैट्रिक पढ़ रहे थे। 1902 में उन्होंने
पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज में भी वे अज़ादी के आंदोलन में भाग लेने लगे।
छात्रों का एक समूह बनाकर उन्होंने विदेशी सामानों का बहिष्कार शुरू किया, 1905 में पुणे में
विदेशी कपड़ों की होली जलाई। सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पहली बार विदेशी कपड़ों की
होली जलाई। तब उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया और उनपर दस रुपए जुर्माना भी लगाया
था। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक सावरकर की गतिविधियों से बहुत प्रभावित हुए और उसे
अपने स्वराज्य दल में शामिल कर लिया।

(सीन समाप्त)

सीन नं 4 (लाइव सीन)
(लोकमान्य तिलक के कार्यालय का दृश्य। तिलक और सावरकर आपस में बातें कर रहे हैं।)
तिलक – सावरकर, विदेशी कपड़ों की होली जलाकर तुमने युवाओं के मन में देशप्रेम की ज्वाला को हवा दे दी
है। अगर हम अंग्रजो का बनाया हुआ कपड़ा नहीं खरीदेंगे तो उनकी कमाई का ज़रिया खत्म हो
जाएगा।
सावरकर – हम अंग्रजो की किसी चाल को कामयाब नहीं होने देंगे।
तिलक – एक छात्र के रूप में तुम देश के लिए अच्छा कार्य कर रहे हो।
सावरकर – केसरी पत्रिका में आपके लेख पढ़कर ही हमें इन सब कार्यों की प्रेरणा मिलती है तिलक जी।
तिलक – सावरकर, सच कहूं तो मैं देश में चल रही गतिविधियों से बहुत आहत हूं। मैं चाहता हूं इसके
विरोध में बड़े रूप में आवाज उठाई जाए।
सावरकर – आप भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के जनक के रूप में जाने जाते हैं। आपके कथन ‘स्वराज्य मेरा जन्म
सिद्ध अधिकार है और हम इसे पाकर ही रहेंगें।’ ने बहुत से लोगों को प्रोत्साहित किया है। कई
लोग अहिंसा का रास्ता छोड़ रहे हैं। आप मेरे आदर्श हो। आप बस आज्ञा कीजिये मुझे क्या करना
है।
तिलक – लोग कहते हैं मैं महात्मा गाँधी का विरोधी हूं। सावरकर, मैं उनके अहिंसा के नारे का विरोध नहीं
करता लेकिन पूरी तरह समर्थन भी नहीं करता। मुझे लगता है अहिंसा का सत्याग्रह पूरी तरह से
अपनाना सही नहीं है, ज़रूरत पड़ने पर हिंसा का उपयोग भी करना चाहिये।
सावरकर – आप सही कह रहे हैं तिलक जी।
तिलक – अब आगे क्या करने का विचार है?
सावरकर – मैं लंडन जाकर एल.एल.बी. करना चाहता हूं।
तिलक – तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली सावरकर। मुझे खुद एक नौजवान की ज़रूरत थी जो लंडन
जाकर वहां भारतीय छात्रों को एक जगह एकत्रित करे। मैं तो कहता हूं तुम जल्द से जल्द जाने की
तैयारी करो। तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे की चिंता मत करो।
सावरकर – उसकी चिंता नहीं है। मेरे ससुरजी मेरी पढ़ाई का पूरा खर्च वहन करने के लिए तैयार हैं।
तिलक – वहां तुम्हें क्रांतिगुरू श्याम कृष्ण वर्मा मिलेंगे जिन्होंने लंडन में इंडिया हाउस की स्थापना की है। मैं
उन्हें चिट्ठी लिखता हूं। वे विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों को एकत्रित कर स्वराज आंदोलन के
लिए संगठन बना रहे हैं। वहां तुम्हें मदनलाल धींगड़ा और लाला हरदयाल भी मिलेंगे जो छात्र
आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। तुम्हारी सेवाओं से उनके इस आंदोलन को बल मिलेगा।
(सीन समाप्त)

सीन नं 5 (लाइव सीन)
पुरूष सूत्रधार – देश प्रेम कभी सिखाया नहीं जाता। वह तो खून में होता है, मनुष्य के संस्कारों में होता है।
सावरकर को भी देश प्रेम का पाठ अपने माता पिता से मिला। संतों की कथाएं, मराठाओं का
इतिहास, रामायण और महाभारत के किस्से, हमारे पराक्रमी पूर्वजों के बहादुरी के गुणगान
सावरकर के पिताजी सभी बच्चों को बैठकर सुनाते थे। माता पिता के बहुत जल्द गुज़र जाने के
पश्चात् बड़े भाई बाबाराव की धर्मपत्नी येशूवहिनी परे सारे बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी आ
गई जो उन्होंने बखूबी निभाई। वो खुद भी क्रांतिकारी महिला थीं।
(सीन समाप्त)

सीन नं 6 (लाइव सीन)
(सावरकर के घर में सावरकर के कमरे का दृश्य। वे अपनी धर्मपत्नी यमुनाबाई से बात कर रहे हैं। यमुनाबाई
की गोद में नन्हा बच्चा प्रभाकर सो रहा है।)
सावरकर – कल सवेरे मैं लंडन के लिए निकल जाऊंगा। तुम अकेले सब संभाल पाओगी ना।
यमुना – क्यों नहीं। जब आपने देशसेवा का निश्चय कर लिया है तो आपकी अर्द्धांगिनी होने के नाते मेरा भी
कुछ फर्ज़ बनता है ना।
सावरकर – प्रभाकर अभी छोटा है। मुझे ये ही चिंता सताए जा रही है कि इतने छोटे बच्चे को तुम्हारे हवाले
छोड़कर जा रहा हूं।
यमुना – मेरी इतनी चिंता हो रही है तो ले चलो ना अपने साथ।
सावरकर – वो भी तो नहीं कर सकता। मैं वहां इधर उधर भटकते रहूंगा। तिलक जी ने मुझे वहां भारतीय
छात्रों के संगठन को आज़ादी के आंदोलन को मज़बूत बनाने का कठिन कार्य सौंपा है। पढ़ाई के
साथ साथ उसे भी तो देखना है।
यमुना – आप तो निश्चिंत होकर जाइये जी। येशूवहिनी और मैं मिलकर सब कुछ संभाल लेंगे।
सावरकर – तुम्हारे पिताजी भाउराव चिपलूनकर ने मेरा इंग्लैंड जाने का, पढ़ाई का,पूरा खर्च उठाया है। उसके
लिए मैं उनका कृतज्ञ हूं।
(सावरकर और यमुनाबाई की बातें चलते हुए येशूवहिनी का प्रवेश होता है।)
येशूवहिनी – शेर की मांद में घुसकर शेर का शिकार करने जा रहे हो भाउजी।
सावरकर – भाभी आप ये मत सोचो कि मैं दुबला पतला हूं तो उनका मुकाबला नहीं कर सकता।
येशूवहिनी – नहीं नहीं, मैं तो तुझसे मज़ाक कर रही थी। तुम्हारे बारे में मैं ऐसा बिल्कुल नहीं सोच सकती।
यमुना, तू बता क्या मैं अपने बेटे से हंसी मज़ाक भी नहीं कर सकती?
यमुना – आप तो इनके कान पकड़कर डांट भी सकते हो भाभी।
येशूवहिनी – जब छोटा था तो बहुत डांटती थी। शरारत करता था तो कान पकड़कर सज़ा भी देती थी। पर अब
ये बड़ा हो गया है। (सावरकर की ओर मुखातिब होकर) विनायक जब तेरे बारे में पेपर में पढ़ती
हूं या लोगों से तेरी बातें सुनती हूं तो बहुत अच्छा लगता है।
यमुना – ये सब आपकी परवरिश की फल है वहिनी।
सावरकर – वहिनी मेरे जाने के बाद यमुना और प्रभाकर का ख्याल रखना।
येशूवहिनी – हां हां सबका ख्याल रखूंगी। तेरी बीबी का, तेरे बड़े भाई का, छोटे भाउजी का और इस नन्हें
बदमाश का भी। तू निश्चिंत होकर जा। तू भी वहां जाकर हमको भूल मत जाना। पत्र लिखते
रहना। सवेरे जल्दी उठ जाना, योगा करना। देश सेवा के कार्य में व्यस्त रहकर अपने शरीर का
ख्याल रखना मत भूलना। वापस आकर तुझे हम सबको संभालना है। तब तक प्रभाकर भी बड़ा हो
जाएगा। उसे पढ़ाना लिखाना।
सावरकर – बस एक बार भारत देश आज़ाद हो जाए तो मैं पूरे घर को संभालूंगा वहिनी। आपको कुछ भी नहीं
करने दूंगा। आप तो बस खटिया पर बैठकर हम पर हुकुम चलाना। बहुत सहा है आपने। आई के
जाने के बाद आपने हमें मां की तरह पाला पोसा है।
यमुना – हां भाभी। ये सच कह रहे हैं। आपने हमें कभी भी आई की कमी महसूस होने नहीं दी।
(यमुना और येशूवहिनी गले मिलते हैं। सावरकर की आंखों में आंसू आते हैं पर वो उनको पोंछ लेता है ताकि ये
दोनों न देख सकें।)
(सीन समाप्त)

सीन नं 7 (स्क्रीन पर)
स्त्री सूत्रधार – लंडन पहुंचकर सावरकर इंडिया हाउस में आए और क्रांतिगुरू श्याम कृष्ण वर्मा से मिले जिन्होंने
उनका दिल खोलकर उनका स्वागत किया। सभी छात्रों से उन्हें मिलवाया। सावरकर ने भी
खुशी खुशी छात्र आंदोलन का पूरा भार अपने सर पर ले लियां
(सीन समाप्त)

सीन नं 8 (लाइव सीन)
(लन्दन स्थित भारत भवन (इंडिया हाउस) में सावरकर के रूम का दृश्य। वे किचन में झींगे तल रहे हैं। इतने में
गांधीजी उनसे मिलने आते हैं। गांधीजी फुल सूट में हैं और सर पर अंग्रेजी हैट लगाए हुए हैं।)
गांधीजी – गुड मार्निंग सावरकर।
सावरकर – आइये आइये मिस्टर गांधी। बैठिये।
गांधीजी – मैं सभी भारतीय छात्रों से मिलना चाहता हूं ताकि साउथ अफ्रीका में रेशियल डिस्क्रिमिनेशन
सावरकर – खाना खाएंगे ना आप भी।झींगे तल रहा हूं।
गांधीजी – कैसी बात कर रहे हो सावरकर। तुम तो जानते हो कि मैं शाकाहारी हूं। फिर तले हुए झींगे कैसे
खा सकता हूं?
सावरकर – एक बात कहूं गांधीजी। आज हमारे देश की हालात ऐसी है कि हमें तले हुए झींगे खाने वाले लोग
नहीं अंग्रेजों को तलकर खाने वाले वीरों की ज़रूरत है। अगर आप प्रोटीन नहीं खाएंगे तो अंग्रेजी
साम्राज्यवाद से कैसे लड़ेंगे।
गांधीजी – मैं समझ रहा हूं तुम क्या कहना चाहते हो। सावरकर मैं क्रांति का विरोधी नहीं हूं। मेरा इस बात
पर विरोध है कि क्रांति शस्त्रों से न की जाए। अहिंसा से भी तो आज़ादी मिल सकती है।
सावरकर – अहिंसा से सारी समस्याओं का हल हो जाता तो पूरी दुनियां में शांति नहीं रहती। हर तरफ मार
काट क्यों लगी रहती? आज तक हमें स्वराज क्यों नहीं मिला? इतने क्रांतिकारी अपनी जान कुर्बान
कर रहे हैं वे सब सिरफिरे हैं क्या? महाभारत में भी सभी तर्कों में असफल रहने के बाद कृष्ण ने
अर्जुन को यही कहा था कि अब समय आ गया है कि तुम शस्त्र उठाओ।
गांधीजी – माने तुम यह कहना चाहते हो कि हर लड़ाई शस्त्रों से जी जीती जाती है
सावरकर – नहीं मैं ये नहीं कहता कि सब कुछ शस्त्रों से संभव है। अहिंसा का परिणाम तो आप देख ही रहे
हो। इतना सब करने के बाद भी अंग्रेजों के कानो पर जूं तक नहीं रेंग रही।
गांधीजी – इन सब चीज़ों में समय लगता है। जवानी के जोश में होश नहीं गंवाया जाता। अहिंसा का मतलब
जान जाओगे तो उसका महत्स भी समझ सकोगे।
सावरकर – अत्यधिक हिंसा को टालने के लिए की गई हिंसा भी तो अहिंसा ही है ना। गौतम बुद्ध, महावीर इन
सबका भी तो यही सिद्धांत था गांधीजी।
गांधीजी – लगता है तुमसे बहस करना बेकार है। लगता है तुम्हारे मेरे विचार कभी एक नहीं होने वाले। अब
मुझे चलना चाहिये।
सावरकर – ऐसे कैसे। कुछ खा पी कर तो जाइये।
गांधीजी – फिर कभी फुरसत से बैठेंगे। विचारों का आदान प्रदान करेंगे। आज नहीं।
(गांधीजी उठकर चले जाते हैं।)
सावरकर – (स्वगत) मुझे नहीं लगता गांधीजी हमें कभी समझ पाएंगे।
(सीन समाप्त)

सीन नं 9 (स्क्रीन पर)
पुरूष सूत्रधार – इधर भारत में सावरकर के बड़े भाई बाबाराव ने कवि गोविंद की एक कविता अपनी अखबार
में प्रकाशित की। अंग्रेजों को यह राजद्रोह महसूस हुआ। इतनी छोटी बात पर उन्हें गिरफ्तार
किया गया सज़ा देकर अंदमान निकोबार भेज दिया गया।
(सीन समाप्त)

सीन नं 10 (लाइव सीन)
(भारत में सावरकर के घर यमुनाबाई और येसूवहिनी के साथ महिला मंडल की महिलाएं आपस में बातें कर रही हैं। येशूवहिनी के पति बाबाराव को गिरफ्तार कर अंदमान निकोबार भेज दिया गया है।)
पहली स्त्री – येशूवहिनी अंग्रेज तो आपके परिवार पर जुल्म कर रहे हैं। विनायक भाऊ परदेस क्या गए आपके
पूरे परिवार पर जुल्मों का पहाड़ टूट पड़ा।
दूसरी स्त्री – इतनी छोटी सी बात की इतनी बड़ी सज़ा।
येशूवहिनी – घर में पुलिस वाले कभी भी आ सकते हैं। हमनेे घर की सारी चीज़ें छुपाकर रख दी हैं। पुलिस
वालों के हाथ जो लगेगा वो ले जाएंगे।
यमुना – सभी रिश्तेदारों ने भी हमसे मुहं मोड़ लिया। यहां तक कि वहिनी के मामाजी उनसे बात तक नहीं
करते।
येशूवहिनी – ना करे तो ना करें। मैंने भी कसम खाई है अंतिम सांस तक देश की सेवा करूंगी। अंग्रेजो के
जुल्मों से डरकर झुकूंगी नहीं।
दूसरी स्त्री – येशूवहिनी, लगता है भगवान ने आपके पूरे घर को देशभक्ति के लिए ही चुना है।
पहली स्त्री – कितनी तकलीफें उठाई हैं आपके परिवार ने।
येशूवहिनी – हां, उम्र के ग्यारह वर्ष में मेरी शादी हुई। स्कूल कभी नहीं गई। मेरे आने के पहले ही सासूबाई
गुज़र गई। भगुर में प्लेग फेलने की वजह से कुछ साल बाद ससुरजी का भी निधन हो गया। अग
बाई, अब तो तकलीफों की आदत सी पड़ गई है। भले ही खाने के भी लाले पड़ जाएं पर हम
नहीं घबराने वाले। क्यों यमुना।
यमुना – वहिनी मैं आपकी हर बात में आपे साथ हूं।
तीसरी स्त्री – कैसी बात कर रहे हैं वहिनी। हम लोग भी तो आपके साथ हैं ना। आपने ही तो हमारे महिला
मंडल की स्थापना की है।
पहली स्त्री – इस बात का पूरे गांव को गर्व है कि आपके घर के तीनों पुरूष देशभक्त है।
दूसरी स्त्री – वहिनी आपके कहे अनुसार महिला मंडल ने परदेशी माल का बहिष्कार किया। परदेश से आई
हुई शक्कर नहीं खाते हम लोग। कांच का बहिष्कार करने के लिए कांच की चूड़ियां नहीं पहनते।
वहिनी महिला मंडल में देशभक्त से ओतप्रोत जो कविताएं आप गाकर सुनाती हैं वो सब
हमने याद कर ली हैं।
तीसरी स्त्री – आप जिस दिन नहीं आते हो उस दिन हम सब मिलकर गाते हैं।
(सीन समाप्त)

सीन नं 11 (लाइव सीन)
(लन्दन स्थित भारत भवन (इंडिया हाउस) में 1857 के गदर के इक्कावन वर्ष पूरे होने पर वीर सावरकर
भारतीय छात्रों के बीच भाषण दे रहे हैं। मंच पर मैडम कामा, क्रांतिगुरू श्याम कृष्ण वर्मा तथा दो अन्य
क्रांतिकारी मंच पर बैठे हैं। सामने कुर्सियों पर छात्र बैठे हैं।)
सावरकर – साथियों स्वतंत्रता की लड़ाई जो 10 मई 1957 को शुरू हुई उसे इक्कावन वर्ष पूरे हो चुके हैं।
लेकिन ये लड़ाई अभी खतम नहीं हुई। मैं इस लड़ाई पर एक पुस्तक लिख रहा हूं। ज्ीम प्दकपंद
ूंत व िप्दकमचमदकमदबमण्
एक छात्र – मगर अंग्रेज तो कहते हैं कि ये अज़ादी की लड़ाई नहीं थी बल्कि सिपाहियों का बलवा था।
सावरकर – बिल्कुल नहीं। सन 1857 के विद्रोह के विभिन्न राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, सैनिक तथा सामाजिक
कारण थे। कंपनी भारतीयों का आर्थिक शोषण कर रही थी। कंपनी की नीतियों ने हमारे देश
की पारम्परिक अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त कर दिया था। इन नीतियों के कारण बहुत से
किसान, कारीगर, श्रमिक और कलाकार कंगाल हो गये। इनके साथ साथ जमींदारों और बड़े
किसानों की स्थिति भी बदतर हो गयी। 1857 के संग्राम को अंग्रेज भले सिपाहियों का विद्रोह कहें
लेकिन मैं इसे स्वतंत्रता की लड़ाई के संग्राम का प्रारंभ कहता हूं।
दूसरा छात्र – आपकी पिछली पुस्तक ‘‘जोसेफ मैज़िनी’ पर भी छपने से पहले ही बैन लग चुका था सावरकर।
सावरकर – हां लेकिन अब उसे मेरे बड़े भाई बाबाराव प्रकाशित कर रहे हैं।
तीसरा छात्र – कहीं ऐसा न हो ये पुस्तक भी……
सावरकर – मुझे उसका कोई डर नहीं है। मैं सच दुनियां के सामने लाना चाहता हूं कि अंग्रेज भारत पर
कितना जुल्म कर रहे हैं। किसी देश की स्वतंत्रता का हनन करना महापाप है।
वर्मा – सावरकर ने इस पुस्तक को लिखने से पहले 1857 के गदर पर गहराई में जाकर अध्ययन किया
है।
सावरकर – पुस्तक लेखन से पूर्व मेरेे मन में अनेक प्रश्न थे –
(1) सन् 1857 का यथार्थ क्या है?
(2) क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था?
(3) क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पडे़
थे या वे किसी बडे़ लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था?
(4) योजना का स्वरूप क्या था?
(5) क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बन्द अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवन्त यात्रा?
(6) भारत की भावी पीढ़ियों के लिए 1857 का संदेश क्या है?
तीसरा छात्र – लेकिन हम यह कैसे सिद्ध कर पाएंगे कि ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने नहीं हम
पर कब्जा करने आई है।
सावरकर – याद करो 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद कमजोर हुए पंजाब पर अंग्रेजों ने
अपना अधिकार जमा लिया। सन 1843 में सिन्ध क्षेत्र पर भी रक्तरंजित लडाई के बाद कब्जा कर
लिया। सन 1853 में आखरी मराठा पेशवा बाजी राव के दत्तक पुत्र नाना साहेब की पदवी छीन
ली और उनका वार्षिक खर्चा बंद कर दिया गया। उसके बाद बरार और अवध को भी ईस्ट इंडिया
कंपनी ने अपने राज्य में मिला लिया गया। इसका मतलब साफ था कि वे अब व्यापार नहीं कब्जा
करना चाहते थे।
दूसरा छात्र – इन बातों में तो सच्चाई नज़र आती है।
सावरकर – इसी के विरोध में हमारे वीर बांकुरों ने विद्रोह किया और चारों ओर संग्राम की ज्वाला भड़क उठी।
साथियों आइये हम सब मिलकर प्रण करें कि जब तक भारत माता को इन अत्याचारियों के चंगुल
से मुक्त न करा लें, जब तक अपनी माता को उसका खोया हुआ गौरव वापस न दिलवा दें तब
तक चैन की सांस नहीं लेंगे। इन अंग्रेजों को ईंट का जवाब पत्थर से देंगे।
सभी छात्र – हां, हां,ज़रूर देंगे।
सावरकर – वंदे मातरम
सभी छात्र – वंदे मातरम
सावरकर – वंदे मातरम
सभी छात्र – वंदे मातरम
सावरकर – वंदे मातरम
सभी छात्र – वंदे मातरम
(सीन समाप्त)

सीन नं 12 (लाइव सीन)
(सावरकर, क्रांतिगुरू श्याम कृष्ण वर्मा,, लाला हरदयाल और मदनलाल धींगड़ा आपस में बातें कर रहे हैं।)
मदनलाल – सावरकर, मेरे मन में एक शंका है, क्या तुम उसका समाधान करोगे।
सावरकर – हां हां क्यों नहीं।
मदनलाल – कोई भी अपनी व्यक्ति अपनी जान की परवाह न करते हुए कुर्बानी के लिए कब तैयार होता है।
सावरकर – तूने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है मदन। जब भी कोई व्यक्ति अपने दृढ़ निश्चय पर अटल हो, दुश्मन
से बदला लेते हुए उसके कदम डगमगाएं नहीं तब समझो वह हर कुर्बानी देने के लिए तैयार है।
मदनलाल – फिर तो ठीक है। (जेब से रिवाल्वर निकालकर) कर्जन वाइली अब तू मरने के लिए तैयार हो जा।
भारत मां की कसम खाकर कहता हूं तुझे मारते समय मेरे कदम बिल्कुल नहीं डगमगाएंगे। वंदे
मातरम, वंदे मातरम।
(सभी एक दूसरे की ओर देखते हैं और फिर मदनलाल के सुर में सुर मिलाते हुए)
सभी – वंदे मातरम

(सीन समाप्त)

सीन नं 13 (लाइव सीन)
(भारत में सावरकर के घर पर पुलिस खड़ी है। यमुनाबाई और येसूवहिनी को घर से निकाला जाता है। गांव के लोग आपस में बातें कर रहे हैं। एक दो भूमिगत क्रांतिकारी भी उन्हें लेने के लिए आए हैं।)
इंस्पेक्टर – (हवालदार से) हवालदार लगा लो ताला घर को। पूरा घर जब्त कर दो।
पहला पुरूष – ये कैसा जुल्म है। बाबाराव को काले पानी की सज़ा दे दी और अब घर की जब्ती कर रहे हैं।
अब ये बेसहारा औरतें कहां जाएंगी।
दूसरा पुरूष – अगर तात्या यहां होते तो कभी ऐसा नहीं होने देते।
तीसरा पुरूष – (पुलिस की ओर मुखातिब होकर) तात्या तुम्हें छोड़ेंगे नहीं, एक एक से गिन गिनकर बदला लेंगे।
इंस्पेक्टर – चल बे किसको डराता है।
(इंस्पेक्टर और हवालदार जाते हैं। भीड़ में से दो भूमिगत क्रांतिकारी निकलकर आते हैं।)
पहला क्रांतिकारी – वहिनी।
येशूवहिनी – कौन?
दूसरा क्रांतिकारी – हम लोग विनायक के दोस्त हैं। हमें लंडन के इंडिया हाउस से पत्र आया है कि हम आपका
ख्याल रखें।
पहला क्रांतिकारी – हमने उन्हें अभी तक बताया नहीं है कि बाबाराव को पुलिस पकड़कर ले गई है या उनके
बेटे का निधन हो गया है।
येशूवहिनी – क्यों नहीं बताया?
पहला क्रांतिकारी – हम डर था कि ये सब बातें सुनकर कहीं उनकी देश सेवा के उत्साह में कमी ना आ जाए।
येशूवहिनी – मेरा बेटा है वो। मैं उसे अच्छी तरह जानती हूं। वो ऐसी बातों से नहीं घबराता।
यमुना – वहिनी हम आज ही उन्हें पत्र लिखते हैं और सब कुछ बताते हैं।
दूसरा क्रांतिकारी – आप हमारे साथ चलिए। आपके लिए घर की व्यवस्था हम करेंगे।
पहला क्रांतिकारी – ये कुछ पैसे हैं रख लो।
येशूवहिनी – पैसे।
दूसरा क्रांतिकारी – हां, मैडम कामा ने भेजे हैं आपके लिए।
पहली स्त्री – जा ग बाई। विनायक ची मित्र मंडळी ने तुमची चांगली सोय केली आहे।
(येशूवहिनी और यमुना गांववालों से मिलकर गांव से चली जाती हैं।)
(सीन समाप्त)

सीन नं 14 (लाइव सीन)
(जर्मनी के स्टुटगार्ड में 21 अगस्त 1907 में मैडम भीकाजी कामा के घर पर वीर सावरकर, क्रांतिगुरू श्याम
कृष्ण वर्मा, मैडम कामा तथा दो अन्य क्रांतिकारी आपस में बाते कर रहे हैं।)
मैडम कामा – (तिरंगा देखते हुए) बहुत सुंदर। सावरकर इस झंडे की डिज़ाइन आपने बनाई है?
सावरकर – जी हां।
मैडम कामा – बहुत सुंदर, केसरी रंग के अंदर ‘वंदे मातरम’ कितना सुंदर लग रहा है।
वर्मा – सावरकर के यहां आने से हमारे स्वराज आंदोलन में जोश भर गया है। छात्रों में एक अजीब
सा उत्साह नज़र आ रहा है। मैं आपको बताउं मैडम लंडन के भारत भवन के सभी विद्यार्थी
सावरकर को बहुत मानते हैं, उसका सम्मान करते हैं।
मैडम कामा – वर्मा जी कल यह तिरंगा स्टुटगार्ड के प्रमुख चौराहे पर फहराया जाएगा। मैं वहां उपस्थित सभी
लोगों से निवेदन करूंगी,‘‘ जेंटलमेन, स्टैंड अप एण्ड सैल्यूट द फ्लैग।’’
वर्मा – यूअर मैजेस्टिक। यह पहला अवासर होगा जब भारत से बाहर भारत का तिरंगा फहराया
जाएगा।
मैडम कामा – आप तो यूअर मैजेस्टिक मत कहो वर्मा जी।
सावरकर – आपने युवा छात्रों को आज़ादी की लड़ाई की प्रेरणा देकर उनके उत्साह में जान फूंक दी
है मैडम। आपको भारत में लोग काली माता का अवतार मानते हैं। बहुत इज्ज़त है आपकी वहां।
मैडम कामा – लेकिन भारत में राज कर रही ब्रिटिश सरकार ने तो मुझे भगोड़ा घोषित कर भारत से निकाल
दिया है। मैं जानती हूं। जैसे ही मैं भारत आउंगी मुझे काले पानी की सज़ा दी जाएगी।
सावरकर – वंदे मातरम
सभी – वंदे मातरम
मैडम कामा – आगे का क्या प्लान है सावरकर।
सावरकर – इंग्लैंड जाऊंगा। फिर वहां से भारत चला जाऊंगा।
मैडम कामा – मेरी बात को समझो सावरकर। अब फिर से इंग्लैंड जाने का बिल्कुल मत सोचो। अगर तुम वहां
की पुलिस के हाथ लग गए तो वे तुम्हें छोड़ेंगे नहीं।
सावरकर – हिंदुस्तान की परिस्थिति तो आप जानते हो मैडम। वहिनी का पत्र आया है।
वर्मा – (सीरियस होकर) विनायक के इकलौते पुत्र की मृत्यू हो गई है।
मैडम कामा – ओह माइ गॉड।
सावरकर – मेरे भाई बाबाराव को गिरफ्तार किया गया है। हमारे घर को जब्त करके येसूवहिनी और यमुना
को घर से निकाल दिया गया है। वो लोग कहां जाएंगे? क्या करेंगे। छोटा भाई नारायण भी
भूमिगत है। वो अभी बहुत छोटा है।
मैडम कामा – तुम्हारे परिवार का सुनकर बहुत बुरा लगा। लेकिन उनकी मदद करने के लिए हमारे कई
भूमिगत क्रांतिकारी आगे आए होंगे।
सावरकर – वो मैं जानता हूं। वो लोग अपनी जान की परवाह न कर मेरे परिवार की रक्षा कर रहे होंगे। पर
खुदीराम बोस के बमब्लास्ट के बाद और अनंत कान्हेरे द्वारा हत्या की घटना के बाद सरकार
क्रांतिकारियों के पीछे पड़ी हुई है। ऐसी स्थिति में मेरा पेरिस में रहना हालातों से मुहं मोड़ने के
समान है मैडम।
मैडम कामा – सेनापति शुरू में ही युद्ध में नहीं कूद पड़ता सावरकर। तू इन सबका सेनापति है।तेरे भाई को
गिरफ्तार किया है तो तेरा भी अरेस्ट वारंट निकाला ही होगा। लंडन में भी तो भारत में भी।
मैं तो कहती हूं यहीं रहकर भूमिगत हो जा। इंग्लैंड पुलिस को पता भी नहीं चलेगा।
सावरकर – देश की खातिर जान भी जाए तो परवाह नहीं मैडम। लेकिन मुझे भारत जाना ही होगा।
मैडम कामा – जो तेरी इच्छा। लेकिन संभलकर कदम उठाना सावरकर।
सावरकर – हां, मैं आपकी बातो का ध्यान रखूंगा।

(सीन समाप्त)

सीन नं 15 (स्क्रीन पर)
स्त्री सूत्रधार – मदनलाल धींगड़ा ने 1909 में भारतीय जनतापर अन्याय करने वाले सर कर्ज़न वाइली का इंग्लैंड
में गोली मारकर वध किया। भारत में 17 वर्षीय क्रांतिकारी अनंत कान्हेरे ने जैक्सन को यम के
पास पहुंचाया। इन दोनो घटनाओं से अंग्रेज सरकार हिल गई। बापट ने जो बम बनाने की विधी
लाई उसके पत्रक भारत में बांटे गए।
पुरूष सूत्रधार – कोर्ट की दलील थी कि पत्रक बांटने और कान्हेरे के पिस्तौल पहुंचाने में सावरकर का हाथ था।
दोनों घटनाओं की अलग अलग 25 वर्ष की उम्र कैद की सज़ा सावरकर को मिली। ब्रिटिश राज
में यह पहला मौका था जब किसी एक व्यक्ति को दो बार उम्र कैद की सज़ा मिली हो। 1910 में
पेरिस से लंडन पहुंचते ही अंग्रेजों द्वारा सावरकर को गिरफ्तार किया गया और काले पानी की सज़ा
देकर भारत रवाना किया। रास्ते में वे पानी के जहाज से फ्रांस के मार्सेलिस पहुंचे तो मौका पाकर
सावरकर जहाज के छेद से कूदकर भाग निकले। उन्हें फिर से ढूंढकर गिरफ्तार किया गया भारत
लाकर उन्हें अंदमान निकोबार की जेल में बंद किया गया।
स्त्री सूत्रधार – सावरकर को राष्ट्रीयता पर तो गर्व था ही वे हिंदी भाषा से भी बहुत प्यार करते थे।
‘अभिनव भारत‘ के कार्यकर्ता रात्रि को सोने के पहले स्वतंत्रता के चार सूत्रीय संकल्पों को
दोहराते थे। उसमें चौथा सूत्र होता था ‘हिन्दी को राष्ट्रभाषा व देवनागरी को राष्ट्रलिपि घोषित
करना‘। अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए भी उन्होंने बन्दियों को शिक्षित करने का
काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया।
उन्होंने हिन्दी की कई पुस्तकें जेल में मंगवा ली और राजबंदियों की कक्षाएं शुरू कर दीं।
इस प्रयास के चलते अण्डमान की भयावह कारावास में ज्ञान का दीप जला।
(सीन समाप्त)

सीन नं 16
(अब धीरे धीरे प्रकाश होता है। सावरकर और दूसरे सात आठ कैदी एक दिए के चारों ओर बैठकर साथ
मिलकर पुस्तक पढ़ रहे है। इतने में जेलर आता है।)
जेलर – हुं, लगता है सभी लोग मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कोई साज़िश रच रहे हो।
एक कैदी – हम तो पुस्तक पढ़ रहे हैं। शिक्षा मनुष्य को ज्ञान देती है। ज्ञान दुनियां में सबसे ताकतवर चीज़ है।
जेलर – ये तुम्हें किसने बताया।
एक कैदी – तात्या ने।
जेलर – इसके साथ मिलकर यहां से भागने का प्लान तो नहीं बना रहो हो ना।
दूसरा कैदी – (हंसकर) भागकर कहां जाएंगे। चारों ओर पानी ही पानी है।
जेलर – जबान लड़ाता है। तुझे तो मैं देख लूंगा। जानता है इस सावरकर ने पानी में कूदकर भागने की
कोशिश की थी उसीकी सज़ा भुगत रहा है। अगर ज्यादा होशियारी दिखाई तो इसी समुंदर में डुबा
के मगरमच्छों के हवाले कर दूंगा सबको।
सावरकर – बिहेव यूअरसेल्फ मि. बैरी। हम राजनीतिक कैदी हैं। पालिटिकल प्रिज़नर्स। और समुद्री जहाज से मैं
इसलिए भागा था कि अंग्रेज सरकार को बता सकूं कि उनकी सिक्यूरिटी में कुछ दम नहीं है। सिर्फ
चिल्लाते हो तुम, बुज़दिल हो बुज़दिल।
(जेलर सावरकर का गला पकड़ता है।)
जेलर – यू ब्लडी, यू डोंट नो व्हाट वी हैव डन इन यूअर कंट्री। तुम्हारे अपने कई लोगों को खरीद रखा है
हमने। वो तुम भारतीयों के खिलाफ बग़ावत कर रहे है। ओनली फॉर मनी।
(जेलर सावरकर का गला छोड़कर गुस्से में चला जाता है।)
सावरकर – (अपने आप से बात करते हुए) इस अनपढ़ की ये मजाल। अब तो इस जेल से निकलने के लिए
मुझे कोई न कोई योजना बनानी होगी। चाहे उसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े। देश की खातिर
मेरा बाहर निकलना ज़रूरी है। अगर मैं 50 साल यहां ज़ंजीरों में बंधा रह गया तो भारत मां की
सेवा कैसे करूंगा। कब तक भारत माता गुलाम रहेगी। कुछ न कुछ तो करना ही होगा।
(सीन समाप्त)

सीन नं 17 (लाइव सीन और स्क्रीन पर)
(अंदमान निकोबार के सेलुलर जेल में सावरकर कुर्सी पर चढ़कर बाहर का नज़ारा देखते हैं। स्क्रीन पर चारों ओर पानी फैला हुआ है। सावरकर को मातृभूमि की याद सताती है। वह अकेला एक कोने में बैठकर उदास मन से गीत गाता है। फिर उठकर पत्थर से दीवाल पर कविता लिखता है। नेपथ्यमें गीत बज रहा है।)

गीत – ने मजसी ने परत मातृभूमीला, सागरा, प्राण तळमळला
भूमातेच्या चरणतला तुज धूता, मी नित्य पाहीला होता
मज वदलासी अन्य देशी चल जाऊ, सृष्टिची विविधता पाहू
तइं जननीहृद् विरहशंकीतहि झाले, परि तुवां वचन तिज दिधले
मार्गज्ञ स्वये मीच पृष्ठि वाहीन, त्वरि तया परत आणीन
विर्श्वसलो या तव वचनी मी, जगद्नुभवयोगे बनुनी मी
तव अधिक शक्त उद्धरणी मी, येईन त्वरे, कथुन सोडीले तिजला
सागरा, प्राण तळमळला…

(गीत चलते हुए सावरकर को एक कोने में उदास बैठा हुआ दिखाया जाता है। थोड़ी देर बाद उठकर कोयले से दीवाल पर कविता लिखता है। बाकी कैदी नारियल फोड़ रहे हैं। जेलर आता है। सबसे क्रूरता का व्यवहार करता है। जंजीरों में बंधा सावरकर आगे बढ़कर काम में लग जाता है।)

शुक पंजरी वा हिरण शिरावा पाशी, ही फसगत झाली तैसी
भूविरह कसा सतत साहू या पुढती, दश दिशा तमोमय होती
गुणसुमने मी वेचियली या भावे, की तिने सुगंधा घ्यावे
जरि उद्धरणी, व्यय न तिच्या हो साचा, हा व्यर्थ भार विद्येचा
ती आम्रवृक्षवत्सलता रे, नवकुसुमयुता त्या सुलता रे
तो बाल गुलाब ही आता रे, फुलबाग मला, हाय, पारखा झाला
सागरा, प्राण तळमळला …

नभि नक्षत्रे बहुत, एक परी प्यारा मज भरत भूमिचा तारा
प्रसाद इथे भव्य, परी मज भारी आईची झोपडी प्यारी
तिजवीण नको राज्य, मज प्रियसाचा वनवास तिच्या जरि वनीचा
भुलविणे व्यर्थ हे आता रे, बहुजिवलग गमते चित्ता रे
तुज सरित्पते जी सरिता रे, तद्विरहाची शपथ घालितो तुजला
सागरा, प्राण तळमळला …

या फेनमिषें हससि निर्दया कैसा, का वचन भंगिसी ऐसा
त्वत्स्वामित्वा सांप्रत जी मिरवीते, भिऊनि का आंग्ल भूमी ते
मन्मातेला अबल म्हणुनि फसवीसी, मज विवासना ते देती
तरि आंग्लभूमि भयभीता रे, अबला न माझी ही माता रे
कथिल हे अगस्तिस आता रे, जो आचमनी एक क्षणी तुज प्याला
सागरा, प्राण तळमळला …
(सीन समाप्त)

सीन नं 18 (स्क्रीन पर)
पुरूष सूत्रधार – 1921 में अंदमान निकोबार की सेलूलर जेल से छूटने के बाद सावरकर को रत्नागिरी
के एक घर में नज़रबंद करके रखा गया। सावरकर को इस शर्त पर रिहा गया था कि वे पांच
वर्षों तक रत्नागिरी जिले से बाहर नहीं जाएंगे और न ही किसी राजनीतिक क्रियाकलाप में भाग
लेंगे।
स्त्री सूत्रधार – लेकिन क्रांतिकारी कहां चुप बैठने वाले हैं। इस घर में उनसे कई नेता मिलने आते थे। एक
बार गांधीजी भी सावरकर से मिलने आए थे। गांधी और विनायक सावरकर के संबंधों में एक
मार्च, 1927 का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जा सकता है जब उन्होंने सावरकर के बारे में
बहुत ही मार्मिक शब्द कहे थे ।
(सीन समाप्त)

सीन नं 19 (लाइव सीन)
(रत्नागिरी में सावरकर घर में बिस्तर पर लेटे हुए हैं। गांधीजी उनसे मिलने आते हैं। इस बार गांधीजी धोती पहने
हुए हैं और उनके हाथ में लाठी भी है।)
गांधी जी – कैसे हो सावरकर। अब तबियत ठीक लग रही है ना।
सावरकर – हां थोड़ा आराम है। मैं आपको खुद लेने आ जाता लेकिन तबियत के कारण नहीं आ पाया।
गांधीजी – आपको याद है हम लंडन में मिले थे। वो दशहरे का दिन था।
सवरकार – हां उस दिन मुझे आपके स्वागत करने का सुअवसर प्राप्त हुआ था।
गंधीजी – हां बहुत समय बीत गया। आपले रत्नागिरी में हरिजनों के लिए बहुत अच्छा कार्य किया है।
गांधीजी – आपसे मिलने की बहुत इच्छा थी। लंडन में मिले थे पहली बार। उसके बाद अब मिल रहे हैं।
सावरकर – क्या करें। आपके और हमारे विचारों में इतनी दूरी है कि दिलों में भी दूरी आ गई है।
गांधीजी – इस बीच तुम भी आज़ादी के आंदोलन का लंबा सफर तय करके आए हो। हां, लेकिन विचारों का
तीखापन नहीं छोड़ा।
सावरकर – वो तो कभी छूटेगा भी नहीं।
गांधीजी – इतनी सारी समस्याएं हैं। हम किस किस के लिए लड़ेंगे।
सावरकर – सबके लिए।
गांधीजी – चलो तुम्हारी बात मान भी लूं लेकिन क्या सभी लोग लड़ने के लिए तैयार होंगे। देश का सबसे बड़ा
वर्ग कमज़ोर है। रोज़ी राटी के लिए जूझ रहा है। परस्पर भेदभाव भी इनके ज़ख्मों पर नमक छिड़क
रहा है।
सावरकर – मैं जानता हूं। हमारे देश और समाज के माथे पर एक कलंक है अस्पृश्यता। हमारे समाज के, धर्म
के, राष्ट्र के करोड़ों लोग इससे अभिशप्त हैं। जब तक हम इसे दूर नहीं करेंगे तब तक हमारे शत्रु
हमें परस्पर लड़वाकर, विभाजित करके सफल होते रहेंगे। इस घातक बुराई को हमें त्यागना ही होगा।
अपने देश की स्वतन्त्रता हेतु प्रभु से की गई मूक प्रार्थना भी सबसे बड़ी अहिंसा की द्योतक है।
गांधी जी – हम आज लंबी बातचीत नहीं कर सकते क्योंकि आपकी तबियत ठीक नहीं है। परंतु आप जानते ही
हैं कि सत्यप्रेमी तथा सत्य के लिए प्राण न्यौछावर कर सकने वाले व्यक्ति के रूप में आपके लिए मेरे
मन में कितना आदर है। इसके अलावा हम दोनों का ध्येय भी एक है। मैं जानता हूं कि आप रत्नागिरी से बाहर नहीं जा सकते,
इसलिए यदि जरूरी हो तो उन सभी बातों के संबंध में जिनमें आपका मुझसे मतभेद है आप मुझसे
पत्र व्यवहार कर सकते हैं और दूसरी बातों के बारे में भी लिख सकते हैं। इन बातों पर जी भरकर
बातचीत करने के लिए मुझे दो-तीन दिन का समय निकालकर आपके पास आकर रहने में भी
कोई ऐतराज़ नहीं है।
सावरकर – आप स्वतंत्र हैं और मैं बंधन में हूं। मैं आपको भी अपनी जैसी हालत में नहीं डालना चाहता। फिर
भी मैं आपसे पत्र-व्यवहार अवश्य करूंगा।
गांधी जी – अब मैं चलना चाहूंगा। अपनी तबियत का ख्याल रखो।
(सीन समाप्त)

सीन नं 20 (स्क्रीन पर)
स्त्री सूत्रधार – रत्नागिरी में रहकर सावरकर ने कई सामाजिक सुधार किए। अछूतों के लिए लगभग पांच सौ
मंदिर खुलवाए। 1931 में पतित पावन मंदिर बनवाने में उनका विशेष सहयोग रहा। पतितपावन
मंदिर में सभी जातियों के लोगों कोे प्रवेश दिया गया। 1931 में ही बॉम्बे प्रेसीडेंसी अस्पृश्यता
उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने अनेक अंतर्जातीय विवाह करवाए, अनेक भोज
आयोजित किए, सभी के लिए एक सामान्य भोजनालय प्रारंभ करवाया।

पुरूष सूत्रधार – सावरकर को 10 मई, 1937 को बिना शर्त रत्नागिरी से रिहा कर दिया गया। रत्नागिरी से
सावरकर शिवाजी पार्क मुंबई जाकर रहने लगे और 1937 में अखिल भारत हिंदु महासभा के
अध्यक्ष चुने गए। 1938 में वे मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। 1943 में
नागपुर यूनिवर्सिटी ने उन्हें डी.लिट् की उपाधि से सम्मानित किया। आचार्य प्रल्हाद केशव अत्रे
ने उन्हें स्वातंत्रयवीर कहकर पुकारा था।
(सीन समाप्त)

सीन नं 21 (लाइव सीन)
(सावरकर के मुंबई वाले घर में कराची सिंध के डा. वाधवाणी उनसे मिलने आते हैं। दोनों आपस में बाते कर रहे हैं।)
वाधवाणी – आपकी सिंध यात्रा ने सिंध के नौजवानों के उत्साह में जान फूंक दी है। मैं कल मुंबई आया तो पता
चला कि आप यहीं है। मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूं कि मुझे आपसे मिलने का अवसर प्राप्त
हुआ।
सावरकार – स्वतंत्रता के आंदोलन में सिंधियों ने बहुत अच्छा योगदान दिया है। मैं जब लाहौर और कराची
आया था तो वहां के लोग सिंधी स्वतंत्रता सेनानियों की बड़ी तारीफ कर रहे थे। खासकर आपका
वो नौजवान क्रांतिकारी हेमू कालाणी। जिसे 20 वर्ष की छोटी उम्र में फांसी पर लटका दिया गया
था।
वाधवाणी – उसकी हिम्मत की तो दाद देनी पड़ेगी सावरकर जी। पता है हैद्राबाद के मार्शल कोर्ट के ऑफिसर
कर्नल रिचर्डसन ने उसकी उम्र कैद की सज़ा को फॉसी में बदल दिया। जेल में फांसी की सज़ा
सुनने के बाद भी उसका वजन सात पौंड बढ़ गया। कई राजनीतिकों और समाज सेवियों ने इसका
विरोध किया पर कर्नल ने किसी की नहीं सुनी। आखिर उस बालक को फांसी दे दी गई।
सावरकर – ये तो बहुत बुरा हुआ वाधवाणी जी।
वाधवाणी – जब आखरी दिन उसके मां बाप उससे जेल में मिलने गए तब भी वो मुस्करा रहा था और गीत गा
रहा था।
(सीन समाप्त)
फ्लैश बैक
सीन नं 22 (लाइव सीन)
(सिंध के सख्खर जिले की काल कोठरी का दृश्य। हेमू जं़जीरों से बंधा हुआ है। फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कराहट है। वो एक गीत गुनगुना रहा है।)
हेमू – मर जाएंगे पर देश को आजाद करेंगे, आबाद करेंगे, आबाद करेंगे।
भारत को नई ज़िंदगी इमदाद करेंगे, आबाद करेंगे, आबाद करेंग.े।
गुलज़ार वतन पर बहाकर खून बदन का,
सरसब्ज़ चमन हिंद का शमशाद करेंगे।
मर जाएंगे पर देश को आजाद करेंगे, आबाद करेंगे।
(एक सिपाही हेमू के माता और पिता को लेकर आता है)
सिपाही – ये रहा, देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाला आपका जांबाज़ सुपुत्र। देखो कैसे बहादुरी
के गीत गा रहा है। धन्य हैं वो माता पिता जिन्होनें ऐसे लाल को जनम दिया है। (हेमू से) हेमू
तेरे माता पिता तेरे से मिलने आए हैं।
हेमू – (माता पिता को देखकर) अम्मां? बाबा? कैसे हो आप लोग।
माताजी – हेमू? मेरे लाल।
हेमू – अम्मां?
(हेमू अपनी माता को गले लगाता है और पिताजी के चरण छूता है।)
माताजी – हेमू कितना दुबला हो गया है तू यहां आकर।
हेमू – तू यहां क्यों आई है अम्मा?
माताजी – देवर जी सेे कहा कि मैं हेमू को देखना चाहती हूं।
हेमू – डाक्टर चाचा को।
पिताजी – हा, उसी की पहचान की वजह से बड़ी मुश्किल से यहां आने का मौका मिला है बेटा।
माताजी – तुझे ज़ज़ीरो से क्यों बांध रखा है?
हेमू – भारत माता भी तो गुलामी की ज़ज़ीरोे से बंाधी हुई है अम्मां।
पिताजी – तू चिंता मत कर बेटा। देश जे समाजसेवियों और राजनीतिक नेताओं ने गवर्नर को क्षमा
याचना का पत्र भेजा है कि तेरी फॉसी की सज़ा माफ कर दें।
हेमू – ऐसा क्यों कर रहे हो बाबा। हमें फिरंगियों से भीख नहीं मांगनी है।
पिताजी – फिरंगियों के जुल्मो सितम तो बढ़ते ही जा रहे हैं। हम लोग चुपचाप सहते रहेंगे तो वे सभी
क्रांतिकारियों को फॉसी पर लटका देंगे।
हेमू – हम नौजवान देश के लिए जान नहीं देंगे तो देश कैसे आज़ाद होगा बाबा? (मां की ओर मुखातिब
होकर) अम्मां आप चिंता मत करो। भारत माता के जंगी सिपाहियों की कुर्बानी बेकार नहीं
जाएगी। देखना बहुत जल्द ही गुलामी की ज़ंजीरों से मुक्त होगी। इस देश का हर नागरिक
आज़ादी की खुली हवा में सांस लेगा।
पिताजी – तेरी उम्र कैद की सज़ा को बड़े साहिब ने फॉसी की सज़ा में बदल दिया है। उसका कहना है
कि तूने अपने साथियों का नाम नहीं बताया इसलिए….
हेमू – मंघाराम चाचा की उपस्थिति में अंजुली में जल भर कर हम सभी साथियों ने कसम खाई थी कि
अगर कोई भी पकड़ा गया तो अपने साथियों के नाम नहीं बताएगा। मेरे लिए चाचा जैसे महान
क्रांतिकारी को दिया वचन भारत माता को दिए वचन के समान है बाबा।
माताजी – मैंने तुझे जनम दिया है। नौ महीने पेट में पाला है। कभी सोचा ही नहीं था अपने कलेजे के टुकड़े
की ऐसी हालत देखनी पड़ेगी। (सिसकियां लेते हुए) तेरी फॉसी की सज़ा का सुनकर मेरा तो
दिल बैठा जा रहा है।
हेमू – रो मत अम्मा। तूने ही तो मुझे देश सेवा का पाठ पढ़ाया है। तूने ही मुझे रामायण, महाभारत के
किस्से सुनाए हैं, भगतसिंघ की कुर्बानी की दास्तां बताई है। तू ने ही कहा था कि जब भगतसिंग
को फॉसी पर लटकाया गया तो उसकी मां ने आंसू नहीं बहाए थे। फिर तू कैसे रो रही है? मेरी
माता मेरे गुरू, मेरे आदर्श भगतसिंग की माता से कम है क्या?
अम्मां, जब तक देश में स्वराज नहीं आएगा हम चुप नहीं बैठेंगे। मैं चला गया तो मेरे दूसरे साथी
इस काम को अंजाम देंगे। ‘‘भारत माता आज़ाद थींदी अम्मां तमाम जल्द आज़ाद थींदी।’’
माताजी – बस बेटा, अब मैं समझ गई। तेरा प्रण पक्का है। तू जान दे देगा पर भारत मां को दिया वचन
नहीं भूलेगा। आज मैं भी तुझे वचन देती हूं कि मैं अपनी आंखों से एक भी आंसू नहीं निकलने
दूंगी। गर्व से सीना तानकर सबको बताऊंगी कि मेरा बेटा देश के लिए कुर्बान हुआ है। अपनी मां
के लिए कुर्बान हुआ है।
हेमू – भारत माता जी।
पिताजी – जय।
हेमू – भारत माता जी ।
पिताजी – जय।
(जेल की सलाखों के अंदर से ही मां बाप दानों को गले लगाता है।)
(सीन समाप्त)
सीन नं 23 (लाइव सीन)
(सिंध के सख्खर जिले की काल कोठरी का ही दृश्य। दो तीन सिपाही मिलकर हेमू की फॉसी के तख्ते की ओर ले जा रहे हैं। हेमू ज़जीरों से बंधा हुआ मुस्कराता हुआ उनके साथ फॉसी के तख्ते तक आता है।
जल्लाद उसके मुंह काले कपड़े से ढंक देता है। जेलर मार्शल कोर्ट का फैसला सुनाता है।)
जेलर – हेमू, मार्शल कोर्ट ने ये फेसला किया है कि तुझे फॉसी पर लटकाया जाए। तूने सख्खर में हथियारों
से भरी रेलगाड़ी को गिराने के लिए रेल की पटरी की फिश प्लेट निकालने की कोशिश की है। तू
पकड़ा गया पर तेरे साथी पुलिस को चकमा देकर भाग गए। पुलिस ने तुझे बहुत मारा पर तूने
अपने साथियों का नाम नहीं बताया। अब भी तेरी फॉसी की सज़ा माफ हो सकती है अगर तू….
हेमू – हरगिज़ नहीं।
जेलर – अपनी ज़िंदगी बरबाद मत कर। सरकार तुझे इतना इनाम देगी कि सारी उम्र बैठकर
खाएगा।
हेमू – सारी उम्र क्या करना है
एक दिन भी जी,
पर सरताज बनके जी।
अटल विश्वास रखके जी,
अमर युग गान करके जी।।
ऑफिसर – बोल तेरी आखरी इच्छा क्या है?
हेमू – आप सब मिलकर मेरे साथ बोलो ‘वंदे मातरम्’ ‘ भारत माता की जय’
(हेमू की आखरी इच्छा पूरी करने के लिए सभी मज़बूरन कहते हैं।‘वंदे मातरम्’ ‘ भारत माता की जय’)
ऑफिसर – (जल्लाद खे) देखते क्या हो। तख्ता खींचो।
हेमू – ‘इन्कलाब, ज़िंदाबाद’ ‘भारत माता की जय’
फ्लैश बैक समाप्त
सावरकर – ऐसे वीर सपूतों पर भारत माता को गर्व है।
वाधवाणी – सिंधियों का इतिहास बहुत पुराना है सावरकरजी। समस्त सभ्यताओं में से प्राचीन और संसार में
सबसे उत्तम, महान और गौरवशाली ‘‘सिंधु घाटी की सभ्यता‘‘ ने सिंधू माता के तट पर ही जन्म
लिया। वेदों की रचना सिंधु नदी के किनारे पर ही हुई। लेकिन किसी भी सरकार ने कभी इस
प्रदेश की तरक्की ओर ध्यान ही नहीं दिया है।
सावरकर – मैं आपकी बातों का समर्थन करता हूं डाक्टर वाधवाणी। जब भी कभी मौका मिला तो मैं किसी बड़े
नेता से इस विषय पर बात करूंगा।
वाधवाणी – बहुत बहुत धन्यवाद।
(सीन समाप्त)

सीन नं 24 ( लाइव सीन)
(सावरकर के मुंबई वाले घर में सुभाषचंद्र बोस उनसे मिलने आते हैं।)
सावरकर – अरे सुभाषबाबू, क्या बात है? आज अचानक इस तरफ कैसे आना हुआ?
सुभाषचंद्र – आज मैं खास आपसे ही मिलने आया हूं सावरकर जी। कल मैं बैरिस्टर जिन्ना से मिलने गया तो
उन्होंने मुझसे खुलकर बात ही नहीं की और कहा कि अब आप ना ही कांग्रेस में हो और ना
ही हिंदुओं के नेता हो। हिंदुओं के नेता तो बैरिस्टर सावरकर हैं अतः आप उनसे मिलो।
सावरकर जी मुझे लगता है देश में शांति की स्थापना के लिए जिन्ना से आपका मिलना हिंदुस्तान
के हित में है।
सावरकर – मुझे उनसे मिलने में कोई ऐतराज़ नहीं है सुभाष जी। लेकिन उनका रवैया कुछ ठीक नहीं लगता।
जिसके सर पर अलग देश का भूत सवार हो वो मेरी तो क्या किसी की बात नहीं समझेगा।
सुभाषचंद्र – नागपुर से डा.हेडगेवार जी के निधन की खबर सुनकर बहुत दुख हुआ सावरकरजी।
सावरकर – हां सुभाष जी, हिंदू संगठन का एक महान नेता चल बसा।
सुभाषचंद्र – हिंदुत्व के बारे में उनके विचार बहुत ही सटीक थे ना।
सावरकर – हां, वे कई बार यहां आ चुके हैं। हमेशा कहते थे सावरकर हिंदू धर्म नहीं एक जीवन प्रणाली है। हिंदू
शब्द की परिभाषा किसी भी पुस्तक में या कानून के अंतर्गत दिए गए किसी फैसले मंे नहीं की गई
है। ब्रिटिश प्रशासन ने भारत के निवासियों के लिए इस शब्द का प्रयोग किया। इन्साकलोपीडिया
ब्रिटानिका के अनुसार हिंदुत्व का अर्थ है हिंदू संस्कृति। वेदों पर आधारित धर्म से उत्पन्न हुई संस्कृति।
सिंधू घाटी की सभ्यता से उत्पन्न हुई संस्कृति। क्योंकि ईरानी लोग स को ह कहते थे इसलिए सिंधू
का नाम पड़ा हिंदू। अपने देश हिंदुस्तान की उत्पति भी इसी शब्द से हुई है। हिंदुत्व विभिन्न सिद्वांतों
और पंथों का मिलन है। इसमें सभी तरह की पूजा पद्वितियों का संगम है।
सुभाषचंद्र – आप भी तो डा.हेडगेवार जी के पदचिन्हों पर चल रहे हैं ना।
सावरकर – मैं उनके विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूं। इतिहास, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करने वाला हमारा
दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है। धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मनुष्य धर्मातीत
रह ही नहीं सकता। देश के इतिहास, समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म
है। हिन्दू धर्म कोई ताड़पत्र पर लिखित पोथी नहीं, जो ताड़पत्र के चटकते ही चूर चूर हो जायेगा।
आज उत्पन्न होकर कल नष्ट हो जायेगा। यह कोई गोलमेज परिषद का प्रस्ताव भी नहीं, यह तो एक
महान जाति का जीवन है। यह एक शब्द-भर नहीं, अपितु सम्पूर्ण इतिहास है। अधिक नहीं तो चालीस
सहस्त्राब्दियों का इतिहास इसमें भरा हुआ है। हिंदुत्व के संबंध में हमें अपनी भूमिका स्पष्ट करनी
होगी। तभी हम देश के बारे में सही निर्णय ले सकेंगे। लेकिन क्या हम सचमुच ऐसा कर पा रहे हैं?
सुभाषचंद्र – नहीं
सावरकर – इसका कारण सिर्फ एक है। हममें राष्ट्रवाद की कमी है, कपड़ा, मकान, रोजगार और बिजली से
पहले ज़रूरी है राष्ट्रवाद। क्योंकि बाकी सब तो खुद मेहनत करके कमा लेंगे, राष्ट्र कमजोर रह
गया तो रातों रात सब छोड़कर भागना पड़ेगा। देश को मजबूत बनाना है तो देश के हर नागरिक
के दिल में राष्ट्रवाद की भावना जगाना बेहद जरूरी है। महान लक्ष्य के लिए किया गया कोई भी
बलिदान व्यर्थ नहीं जाता है। यहां तो सब एक दूसरे की टांग खींचने में व्यस्त हैं तो सोचोे राष्ट्र
कैसे मजबूत होगा?
सुभाषचंद्र – आपने तो आज मेरी आंखें खोल दी सावरकरजी। (हंसते हुए) काश आप वकालत करते तो अपनी दलीलों से अच्छे अच्छों के मुंह बंद कर देते।
सावरकर – एल.एल.बी. तो की थी ना लेकिन मुझे वकालत करने नहीं दिया गया। एक मजे की बात बताऊं
सुभाष जी अंदमान की जेल में सब कैदी मुझे बालिस्टर कहकर पुकारते थे क्योंकि जेल के
अधिकारियों से मैं सब के हक के लिए लड़ता था।
सुभाषचंद्र – चलो कहीं तो आपकी वकालत काम आई।
(दानों हंसते हैं।)
सावरकर – अब तो आपको कांग्रेस ने निकाल दिया है सुभाष जी। तो फिर अब क्या करोगे।
सुभाषचंद्र – कलकता जाऊंगा और लोक जागृति के लिए कार्य करूंगा। कलकता में हॉलवेल का जो स्टैचू है
उसे डामर पोतकर काला कर दूंगा। जनता में ब्रिटिश सरकार के प्रति नफरत जगाऊंगा।
सावरकर – मैं आपकी भावनाओं को समझ रहा हूं सुभाष जी। आप ये सब करोगे और सरकार आपको
बंदी बना लेगी। इतने छोटे से कार्य के लिए राष्ट्रनेता का जेल जाना उचित नहीं लगता। कुछ
बड़ा करने की सोचो। आप क्रांति का महत्व जानते हैं।
सुभाषचंद्र – इसके सिवाय मैं कर ही क्या सकता हूं सावरकर जी।
सावरकर – एक समय ऐसा था जब घर में छोटी सी छुरी भी मिल जाए तो सरकार कारावास भेज देती थी।
लेकिन अब अंग्रेज सरकार खुद शस्त्र विद्या पर जोर दे रही है। क्योंकि अब उसे भारतीय
बहादुरों की ज़रूरत है। हर एक के हाथ में बंदूक मिल रही है, उन्हें बंदूक चलाना सिखाया जा
रहा हे सुभाष जी। एक बार सीख गए तो बंदूक की नोक कहां मोड़ना है यह तो वक्त ही
बताएगा। युवकों से कहता हूं शस्त्र विद्या सीख लो। हमारे जिन युवकों को जर्मनी ने गिरफ्तार
किया है वे हमारी ओर से लड़ने के लिए तैयार है।
सुभाषचंद्र – मैं समझ रहा हूं।
सावरकर – क्रांति की दिशा ऐसी ही होती है। मैं तो कहता हूं आप हिंदुस्तान छोड़कर बाहर निकलो। क्योंकि
यहां आपकी गिरफ्तारी का वारंट कभी भी निकल सकता है। फिर भाग नहीं पाओग.े।
सुभाषचंद्र – हिंदुस्तान छोड़कर चला जाऊं। लेकिन कहां?
सावरकर – आप जापान जाओ। अपने क्रांतिकारी रासबिहारी बोस जापान में ही हैं। ठहरिए। ये देखिये उनका
पत्र। उनसे मेरा संपर्क है। कहो क्या कहते हो?
सुभाषचंद्र – आप जो कहोगे मैं वैसा ही करूंगा।
सावरकर – मां दुर्गा आपको शक्ति देगी।
(सीन समाप्त)

सीन नं 25 (स्क्रीन पर )
पुरूष सूत्रधार – 15 अगस्त 1947 को आज़ादी की शर्तों के अनुसार माउण्टबेटन योजना के आधार पर अखंड
भारत का विभाजन किया गया। विभाजन के बाद दोनों नये देश हिदुस्तान और पाकिस्तान के
बीच विशाल जन स्थानांतरण हुआ। पाकिस्तान में बहुत से हिन्दुओं और सिखों को बेघर कर
दिया गया। लाखों लोगों के मकानों पर कब्ज़ा कर लिया गया। करोड़ों लोगों को लूटा गया।
इस दौरान हुई हिंसा में कई लोग मारे गए।
स्त्री सूत्रधार – सरकार ने ऐलान किया कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। किसी का पलायन करने की ज़रूरत
नहीं है। लेकिन सीमा रेखाएं तय होने के बाद लोगों ने हिंसा के डर से सीमा पार करके
बहुमत संप्रदाय के देश में शरण ली।
पुरूष सूत्रधार – हालांकि सावरकार ने इन सब बातों का विरोध किया था लेकिन फिर भी आज़ादी के दिन
अपने घर पर भगवा झंडे के साथ साथ उन्होंनेे तिरंगा भी फहराया। उनकी इस बात से हिंदू
महासभा के कई लोग नाराज़ हो गए।
स्त्री सूत्रधार – आज़ादी के कुछ महीने प्श्चात् ही महात्मा गांधी का वध किया गया। जिसमें नौ अभियुक्तों में
से एक सावरकर का भी नाम आया और उन्हें प्रिवेंटिव डिटेक्शन एक्ट के तहत गिरफ्तार किया
गया। सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर बैन लगा दिया। इस अंतराष्ट्रीय संस्था के
सरसंघचालक गुरूजी गोलवलकर को गिरफ्तार कर लिया गया।
पुरूष सूत्रधार – लाल किले में अदालत बनाकर सभी नौ अभियुक्तों पर केस चलाया गया। सावरकर के विरूद्ध
कोई साक्ष्य नहीं मिलने के कारण उन्हें 1949 में छोड़ दिया गया।

(सीन समाप्त)
सीन नं 26 (स्क्रीन पर और लाइव एक साथ)
पुरूष सूत्रधार – हालांकि 1949 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर लगा बैन हटा दिया गया लेकिन इस घटना के
बाद सावरकर जी टूट से गए। 1962 में चीन की लड़ाई में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की
सेवाओं से प्रभावित होकर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 26 जनवरी 1963 को हुई गणतंत्र
दिवस की परेड में निमंत्रित किया। भारत के वीर जवान सैनिकों के पीछे हाथों में लाठियां
लिए हुए, सिर पर काली टोपी पहने हुए एवं सफेद शर्ट तथा खाकी रंग की हॉफ पैंट पहने
आर.एस.एस. के स्वयंसेवक परेड में शामिल हुए थे।
(स्क्रीन पर लता मंगेशकर को ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’ गाते हुए दिखाया जाता है। स्क्रीन पर लता मंगेशकर का गीत चलते हुए ही 26 जनवरी 1963 को गणतंत्र दिवस की परेड में भारत के वीर जवान सैनिकों के पीछे हाथों में लाठियां लिए हुए, सिर पर काली टोपी पहने हुए एवं सफेद शर्ट तथा खाकी रंग की हॉफ पैंट पहने आर.एस.एस. के स्वयंसेवक परेड करते हुए मंच के एक तरफ से दूसरी तरफ जाते हुए दिखाई देते हैं।)
(सीन समाप्त)

सीन नं 27 (स्क्रीन पर)
पुरूष सूत्रधार – सावकर ने अपने अंतिम दिनों में एकांतवास धारण कर लिया। वे किसी से भी नहीं मिलते थे।
ऐसा माना जाता है कि वीर सावरकर ने खुद अपने लिए इच्छा मृत्यु जैसी स्थिति चुनी थी।
अपनी मृत्यु से करीब एक महीने पहले से उन्होंने उपवास करना शुरू कर दिया था. माना जाता
है कि इसी उपवास के कारण उनका शरीर कमजोर होता गया और फिर 82 साल की उम्र में
26 फरवरी 1966 को सुबह 11 बजे उन्होंने अपनी जीवन यात्रा समाप्त की।
स्त्री सूत्रधार – सावरकर जिन्हें लोग प्यार से तात्या कहकर बुलाते थे, उनके अंतिम शब्द थे ‘‘आता कैचे देणे घेणे,
आता संपले बोलणे।’’ अब किसीसे से क्या लेना देना, अब तो सब खत्म हो गया है। कुछ लोगों
ने उनके इस निर्णय को वैज्ञानिक समाधि कहा ।
पुरूष सूत्रधार – सावरकर केे जीवन में विज्ञान और अध्यात्म का सुंदर संगम था। उनकी विज्ञान के प्रति भक्ति
उतनी ही प्रबल थी, जितना उनका अध्यात्म के प्रति समर्पण। उनका मातृभूमि प्रेम
उन्होंने इन शब्दों में व्यक्त किया है। ‘‘तुझ साठी मरण ते जनन, तुझ बिन जनन ते मरण’’
हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा ‘हिन्दुत्व‘ को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय
सावरकर को जाता है। सावरकर ने धर्म परिवर्तन करने वाले हिन्दुओं को हिन्दू धर्म में वापस
लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं इसके लिए आन्दोलन चलाये।

सीन नं 28 (स्क्रीन पर)
(स्क्रीन पर ही पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी को सावरकर के बारे में बोलते हुए
दिखाया जाता है। जिसकी यू ट्यूब लिंक नीचे दी जा रही है)
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स्त्री सूत्रधार – आज विश्व को भारत की नितांत आवश्यक्ता है। भारत को वीर सावरकर के सपनों का भारत
बनाना होगा। भारत को अपनी प्रकृति, संस्कृति की सुदृढ़ नींव पर खड़ा होना पड़ेगा। राष्ट्र का
गौरव मन में लेकर समाज में सर्वत्र सद्भाव,सदाचार एवं समरसता की भावना सुनिश्चित करनी
होगी।
पुरूष सूत्रधार – सावरकर मानवता के अग्रदूत थे। उन्होंने भारत की एक सामूहिक ‘हिन्दू‘‘ पहचान बनाने के लिए
हिंदुत्व का शब्द गढ़ा। उनके राजनीतिक दर्शन में सार्वभौमिकता, तर्कवाद, प्रत्यक्षवाद, मानवतावाद,
व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। सावरकर एक कट्टर तर्कबुद्धिवादी व्यक्ति थे जो सभी
धर्मों के रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे। वे वसुदैव कुटंबकम की धारणा में विश्वास रखने
वाले राष्ट्रभक्त क्रातिसूर्य थे। वे सच्चे देशभक्त थे। अगर वे देशभक्त नहीं तो कोई देशभक्त नहीं
है।
(बैकग्राउंड में फिर से एक बार गीत बजता है तथा सावरकर की मौत के समय और उसके बाद के फोटो दिखाए
जाते हैं।)
(समाप्त)

किशोर लालवाणी

फ्लैट नंबर 13, गुरू नानक सोसाइटी, नारा रोड, जरीपटका, नागपुर