मुक्तक/दोहा

जीवदया

1]  जीवदया

गर्मी से बेहाल, पशु-पक्षी देखो सारे।

प्यासे घूमते ढोर, न ठौर, न पालनहारे।।

मिलती छांव न ठाँव, ढूंढते चारा-पानी।

जीवदया हो भाव, धर्म कर्म जिंदगानी।।
2]  माँ
परमात्मा का रूप, परम प्रभु-सी अनुरागी।

मखमल-सी मृदु धूप, धरा-सी माता त्यागी।।
प्रकृति सी दातार, नेह स्निग्धा लहराती।
ममतामयी दुलार, जगत जननी कहलाती।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८