कविता

स्त्री : ईश्वर की खूबसूरत रचना

शीर्षक – स्त्री : ईश्वर की खूबसूरत रचना

स्त्री ईश्वर की वह खूबसूरत रचना है,
जिसके अंतर्मन की खूबसूरती,
केवल उसे ही दर्शित होती है,
जो स्वयं ही एक शिल्पकार है,
जिसे हर एक अंग, हर एक भाव,
उस देवी की अद्भुत प्रतिबिम्ब सा,
प्राकृतिक सौंदर्य समान दिखता है।

स्त्री की रचना जिस ईश्वर ने की,
उसने इसे एक ऐसा रूप दिया,
अद्भुत क़िताब बनाया जिसे,
पढ़ना तो हर कोई चाहता है,
किन्तु केवल अपनी रुचि अनुसार,
पढ़ता है, पढ़ता ही जाता है,
कभी किसी पन्ने को चित्रण देख,
कभी पन्ने की ख़ुशबू सूँघ।

नहीं कोई पढ़ता इस स्त्री के,
हर एक पन्ने को– पन्ने दर पन्ने,
किसी को भाता पहला पन्ना,
किसी को भाता मध्य का,
जहाँ दिखता पन्ना खूबसूरत सा,
उसे ही उत्सुकता में पढ़ने लगता।

जिस पन्ने में व्यथा लिखी हो,
स्त्री के उस जीवन की,
लगती है थोड़ी फ़ीकी सी,
छोड़ जाता है उस पन्ने को,
आँखें मीचे पलट देता है,
नहीं है पढ़ना उसे यह पन्ना,
कहकर उसे बदल जाता है,
जबकि वह पन्ना होता वास्तव में,
स्त्री जीवन की सबसे अहम,
सबसे कठिन जीवन की व्यख्या।

टूटी थी वह स्त्री जब जब,
जीवन की हताश से,
निराश और अंधकार में डूबी,
स्त्री जब काले अंधियारे में,
तब वह पन्ना गढ़ा था ईश्वर ने,
उस पन्ने की महक थी फ़ीकी,
जानने का प्रयास था ईश्वर का,
यह था एक नायाब तरीका,
जो पड़ता होगा संयम से,
और चाहे हर मोड़ को जानना।
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“स्त्री कैसी कहानी है तेरी,
स्त्री कैसी जीवनशैली है तेरी,
तू है एक महिमा किसी की,
या है बनकर गाथा किसी की,
नव युग की रोशनी बनकर,
दर्शाती सबको सही रास्ता,
बन जा अब तू देवी ज्वाला,
न रह बनकर शीतल जल,
कल तुझको जानेगा जग सारा,
आज को न तू ओझल कर,
तू ही शीतला, तू ही ज्वाला,
तू ही माता काली स्वरूपा,
अपनी शक्ति को जगजाहिर कर,
बन जा इस धरती की तारिणी।”
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गीतिका पटेल “गीत”

गीतिका पटेल "गीत"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)