लघुकथा

मदद

चिलचिलाती धुप से जूझती नेहा अपनी स्कूटी से घर जा रही थी। रास्ते में इक्का दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे।
तभी अचानक उसकी नज़र सड़क किनारे पड़े एक व्यक्ति पर पड़ी, वह पहले तो झिझकी और फिर उसने स्कूटी किनारे खड़ी कर दी।
उस व्यक्ति को पास जाकर देखा तो किसी दुर्घटना का कोई निशान नजर नहीं आया। किसी तरह उसने उस व्यक्ति को पास के पेड़ तक लगभग घसीटते हुए पहुंचाया।
फिर अपनी पानी की बोतल से पानी के छींटें उसके मुंह पर मारे। पानी पड़ते ही वह व्यक्ति कुनमुनाया। नेहा ने जैसे तैसे उसे जबरदस्ती पानी पिलाया। अब उस व्यक्ति की तंद्रा लगभग टूट चुकी थी।
नेहा को आत्मसंतोष हुआ कि उसकी छोटी सी मदद किसी के जीवन में हिलोरें पैदा कर गई।
उस व्यक्ति ने नेहा के पैरों में सिर रख दिया।
नेहा ने उसको कंधों के सहारे सीधा किया। ये क्या कर रहे हैं आप?
आपने हमारी जान बचाई है बेटा। साक्षात ईश्वर बनकर आई हो। वरना मेरी मौत ही हो जाती। प्यास के कारण मैं पिछले दो घंटे से पड़ा था, पर किसी ने मदद तो दूर झांकना भी मुनासिब न समझा।
अरे नहीं। मैंने तो बस मानव धर्म का पालन किया है।बाकी ईश्वर की इच्छा, अब आप ठीक महसूस कर रहे हों,तो मुझे इजाज़त दीजिए। नेहा ने सलीके से कहा
हां बेटा! अब मैं ठीक हूं। तुम्हारा क़र्ज़ है मुझ पर। ईश्वर ने चाहा तो जरूर उतार दूंगा। उस व्यक्ति की आँखों में आंसू आ गए।
ऐसा कुछ भी नहीं है। आप तो हमारे पिता जैसे हैं, फिर आपने मुझे बेटा कहकर सारा कर्ज उतार दिया। अपना ध्यान रखा कीजिए। नेहा की आँखों में नमी आ गई।
नेहा ने उस व्यक्ति के पैर छुए और अपनी स्कूटी पर सवार हो आगे बढ़ गई।
उस व्यक्ति को जब तक वो दिखाई दी, उसका हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उसे दुआएं दे रहा था।आँखों में आँसू अब भी बह रहे थे।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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