कविता

पानी न हो

सोचकर देखिए अगर पानी न हो
इस भरी दुनिया में रवानी न हो।
दरख्तो की कोई कहानी न हो
तेरी मेरी जिंदगानी न हो
बस खुश्क पत्थरों की जबानी हो
विना मांझी की कस्ती हो
वियावान सूनसान नजारे हो
जीवन की कहीं निशानी न हो
झरने ताल तलैया समंदर दरिया न हो
सुन्दर -सुन्दर वन-उपवन न हो
आकाश में उड़ते परिंदे न हो
दिल को सुकून देने वाली
दिलकश नजारे न हो
बस सूरज से तप्ती धरती की कहानी हो
जीवन को तरसती धरती वीरानी हो।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P