स्वास्थ्य

पाचन तंत्र के लिए वरदान: नौली क्रिया

यौगिक षट्कर्मोें के अन्तर्गत पाँच क्रियाओं की चर्चा हम पहले कर चुके हैं। छठी क्रिया नौली की चर्चा यहाँ की जा रही है। यह क्रिया पेट की माँसपेशियों को गतिशील करने के लिए की जाती है, जिसका पाचन तंत्र और मल निष्कासन तंत्र पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह क्रिया करना थोड़ा कठिन है, लेकिन कुछ दिनों के अभ्यास से भली प्रकार होने लगती है। अपने यौगिक अभ्यास क्रम में हमें इसका अभ्यास अवश्य करना चाहिए। नौली की पूर्व तैयारी के रूप में पहले उड्डियान बंध और फिर अग्निसार क्रिया का अभ्यास करना चाहिए। तब नौली क्रिया करना सरल हो जाता है।
उड्डियान बंध अनिवार्यतः खाली पेट ही किया जाता है। इसमें पेट की सारी हवा मुँह से बाहर निकाल दी जाती है और बाहर ही रोक दी जाती है। अब पेट को इतना पिचकाया जाता है कि वह पीठ से लगभग मिल जाता है। जिनके पेट पर चर्बी बहुत अधिक है, उनको ऐसा करने में कठिनाई हो सकती है, लेकिन वे जितना भी पिचका सकें उतना ही करें। साँस को जब तक सरलता से रोका जा सके, तब तक रोकना चाहिए, फिर पेट को छोड़कर नाक से साँस खींच लेनी चाहिए। यह क्रिया 3 से 5 बार करें। कुछ दिनों में ही उड्डियान बन्ध का अच्छा अभ्यास हो जाता है। यह क्रिया बैठकर या खड़े होकर की जा सकती है।
अग्निसार क्रिया करने के लिए पैरों को थोड़ा सा खोलकर खड़े हो जायें। नाक से गहरी साँस भरें। अब घुटनों को थोड़ा आगे झुकाते हुए दोनों हाथों को जांघों पर रखकर मुख से पूरी तरह साँस बाहर निकाल दें। अब श्वास को बाहर ही रोककर पेट की माँसपेशियों को जल्दी-जल्दी 15-20 बार अन्दर-बाहर करें। जब साँस और न रोकी जा सके, तो सीधे होकर फिर से साँस भर लें। इस क्रिया को 3 से 5 बार दोहरायें। यह क्रिया सुखासन या सिद्धासन में बैठकर भी की जा सकती है।
अग्निसार क्रिया के अभ्यास से कुछ सप्ताहों में पेट की मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं। तब नौलि क्रिया का अभ्यास शुरू करना चाहिए।
नौलि क्रिया के लिए भी अग्निसार क्रिया की तरह खड़े होते हैं और उसी तरह साँस को मुँह से बाहर निकालकर पेट को पिचकाया जाता है। लेकिन इसमें पेट की माँसपेशियों को अन्दर-बाहर करने के बजाय दायें-बायें चलाया जाता है या गोल-गोल घुमाया जाता है। पहले दायें-बायें चलाने का अभ्यास करें। दायें घुटने पर जोर डालने से नौली दायीं ओर जाती है, फिर बायें घुटने पर जोर डालने पर बायीं ओर जाती है। इस प्रकार बारी-बारी से उसे दायें-बायें चलाया जाता है। जब तक साँस सरलता से रोक सकें, तब तक इसे करने के बाद सीधे साँस भर लेनी चाहिए। इस क्रिया को 3 से 5 बार दोहरायें। यह क्रिया भी सुखासन या सिद्धासन में बैठकर भी की जा सकती है।
नौली दायें-बायें चलाने का अच्छा अभ्यास हो जाने पर उसे गोल-गोल घुमाने की अभ्यास करना चाहिए। कुछ दिनों के प्रयास से इसमें सफलता मिलेगी। नौली को घड़ी की सुई की दिशा में और उसके विपरीत भी घुमा सकते हैं।
नौलि के लाभ: नौली क्रिया पाचन को ठीक करने के लिए रामबाण है। पेट के जूस के स्राव में मदद करती है, अपच, देर से पाचन आदि दोषों से संबंधित सभी विकारों को दूर करती है तथा प्रसन्नता प्रदान करती है। नौली के दौरान पूरे पेट को घुमाने, नचाने और सिकोड़ने से पेट की सभी माँसपेशियों एवं अंगों की मालिश होती है तथा वे सुदृढ़ होते हैं। यह कब्ज, मधुमेह, अम्लता, रक्तचाप आदि लगभग सभी पेट सम्बंधी रोगों में लाभदायक है।
सावधानी: उड्डियान बंध, अग्निसार क्रिया और नौली क्रिया का अभ्यास प्रातःकाल शौच के बाद खाली पेट ही करना चाहिए। गर्भावस्था की स्थिति में या गुर्दे और पित्ताशय में पथरी हो तो इसका अभ्यास न करें। यदि नौली करना कठिन हो तो केवल अग्निसार का ही अभ्यास करना चाहिए। अग्निसार से नौली का तीन-चौथाई लाभ प्राप्त हो जाता है।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com