कविता

नया सवेरा

रात अंधेरी बीत गयी
खुशियों का बसेरा आया है
फिर चहक रहे हैं सब पंक्षी
तू, क्यों कर मुर्झाया है
लो नया सवेरा आया है।।

सब तरफ हैं खुशियां झलक रही
बागों में कलियां चटक रही
इन रंग बिरंगे फूलों ने
सारा गुलशन महकाया है
लो नया सवेरा आया है ।।

आंधी जो आई थी कुछ दिन
वह बीते दिनों की बात हुई
फिर झांझ मंजीरे बाज रहे
मन तेरा न क्यूं हर्षाया है
लो नया सवेरा आया है ।।

पेड़ों पर कोयल कूक रही
डाली डाली मदमस्त भयी
नदियों पर नौका दौड़ रही
आशाओं ने थाल सजाया है
लो नया सवेरा आया है ।।

फिर गांव की मिट्टी महक उठी
जीवन की बगिया चहक उठी
जो बिछड़ गए इस मेले में
दिल उनके लिए भर आया है
लो नया सवेरा आया है ।।

आओ हम भी घर से निकलें
इनसे मिल लें, उनसे मिल लें
कुछ सैर सपाटा, नृत्य करें
मौसम ने राग सुनाया है
लो नया सवेरा आया है।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई