कविता

भरोसा

पल की खबर रखने वाले,
मुझको अपना कहने वाले ,
एक पहर में भुला दिया,
मुझको खुद से मिला दिया।
नई यादें नहीं बनेंगी,
काम चलाना पुरानी से,
सारा वक्त तुम्हारा था
मेरा होगा कहानी में,
साथ में रोने हंसने वाले
ख्वाबों में तुम बसने वाले
गुम होकर क्या सिला दिया
मुझको खुद से मिला दिया
रेत का एक महल बनाया
कुछ ही देर में बह गया,
मृग मरीचिका सा मन
व्याकुल होकर रह गया।
मोती जैसे चमकने वाले,
सोने जैसे दमकने वाले,
सोहबत ने क्या गिला दिया
मुझको खुद से मिला दिया
उन गलियों में मत जाना
जहां मेरा ठिकाना था,
कोई कर्ज बाकी नहीं,
जिसे तुम्हे चुकाना था।
कदम मिलाकर चलने वाले
मिश्री के जैसे घुलने वाले
खेल में हीरा खिला दिया,
मुझको खुद से मिला दिया।

— प्रणाली श्रीवास्तव

प्रणाली श्रीवास्तव

युवा कवयित्री व गीतकार जनपद-सहडोल,मध्य प्रदेश